नारद: 2015

Saturday, September 19, 2015

रविश के महाभक्त

रविश का मर्यादित ट्वीट
                                                                   
आजकल रविश का फेसबुक और सोशल मिडिया से चले जाना एक राष्ट्रीय मुद्दा बना हुआ है, रविश के भक्ति में वही डूबे है जो विरोधी विचारधारा को मानाने वाले को भक्त कहते है, अजीब है. 
रविश कैसे पतरकार है ये मुझे कुछ ख़ास नहीं मालुम, क्योकि उनके किसी भी रिपोर्ट या बहस से देश को कोई फायदा  नहीं हुआ है न ही उनसे कोई भी औसत बुध्धि का प्रभावित हो सकता है और विचार धारा बना सकता है,  उनसे वही प्रभावित हो सकते है जो पहले से ही भाजपा विरोधी है. टीवी रूम में बैठ के जब विभिन्न पार्टियों के लोग बहस के लिए आते है तो रविश का भाजपा और संघ विरोध साफ़ साफ़ दीखता है, ये क्यों है एक रिसर्च का सब्जेक्ट है. मै ये नहीं कह रहा है की रविश की पार्टी से सहनुभितु करते है या किसी पक्षपात करते है, लेकिन हाँ ये जरुर कहता हु या कोई भी जो उन्हें देखता है उसे मालुम है की भाजपा व संघ के अंध विरोधी जरुर है, एक अजीब किस्म की तल्खी है उनके दिल में न जाने क्यों ? और जब उन्ही के चैनल के बरखा दत्त जैसी पत्रकारों को लोग बाग़ कोंग्रेस के पार्टियों में देख चुके है तो उनके बारे मे क्या धारणाये बनायेंगे कोई भी औसत बुध्धि का ये बात समझ सकता है.
भाजपा के प्रति उनकी तल्ल्खी उनकी घृणा  देखने के बाद भी भाजपा और आर एस एस के प्रवक्तावों ने न ही NDTV का विरोध किया न ही इस चैनल का बायकाट किया बल्कि आज भी जाते है और मुस्करा के रविश की कुटिल तल्खी झेलते है, अपने प्रति पक्षपात पूर्ण रवैया जानने के बाद भी. 
कुछ दिन पहले ही प्राइम टाइम पे रविश भाजपा के एक प्रवक्ता पे अमन पे इतना झल्ला गए की पुरे देश ने देखा होगा उनकी तल्खी, जब रविश जैसे संजीदा पत्रकार की भाजपा विरोधी तेवर और तल्खी इतनी साफ़ झलकती है की वो अपने आप को टीवी रूम में संयत नहीं रख पाता और मर्यादा तोड़ के चीखने चिल्लाने लगता है, जिसके विरोधी तेवर किसी से छुपे नहीं है, वही सोशल मीडिया पे विरोधियों और उनके समर्थको मर्यादित होने की अपेक्षा रख रहा है जो की उनकी तरह संजीदा पत्रकार तो क्या बहुत तो विद्यार्थी होंगे कुछ दूकानदार और प्रोफेशनल या इसी तरह के. रविश सोशल मिडिया आपका टीवी रूम नहीं है जहाँ लोग आपके हिसाब से चलेंगे, आपकी लोकप्रियता और तथाकथित उम्दा निष्पक्ष(?) पत्रकारिता किस लेवल की है देश की जनता ने आपको बता ही दिया है जिसके कारण आप भगोड़े हो गए है, सच तो ये है आप उस बदतमीज लड़की (सिर्फ बदतमीज लड़की ही) की तरह व्यवहार कर रहे जो पहले खुद जा किसी को पकड़ के झगड़ती है उकसाती है, प्रवोक करती है, काँव काँव करती है, लड़ती है, झगड़ती है, लेकिन जब लड़का उसी तरीके से उसको जवाब देना शुरू करता है तो कहती है " तुम्हे लड़की से बात करने की तमीज नहीं ? मैनर लेस, रास्कल, रुको पुलिस बुलाती हूँ ”  ब्ला ब्ला, . 

रविश आपके ट्वीट,  या टी वी पे सादगी के पीछे छुपा कुटिल मुस्कान देख कोई बच्चा भी समझ सकता है की आप  भाजपाईयों और संघियों से कितना चिढ़े हुए है, कितना जहर भर के रखते है, और आपके ट्वीट ये भी बताते हैं की प्रधान मंत्री यदि भाजपा का हो तो उसे हत्यारा और लुटेरा भी कहने से नहीं चुकते और आप को ये भी चाह है की उनके समर्थक आपको दलाल भी न कहे, क्या आप देश के संविधान या देश के प्रधानमन्त्री से बड़ा समझते है? आपको अपने द्वारा प्रधानमन्त्री के लिए इस्तमाल किया गया शब्द संयत और मर्यादित लगता है जबकि आप एक जिम्मेदार पत्रकार है, और एक आम नागरिक जो आपके विचारों, मंशावों को को अपनी समझ के हिसाब से जो की जाहिर है की आपकी तरह बड़ा फिगर नहीं, जो आपकी तरह पढ़ा लिखे होंगे भी या नहीं, की भाषा गुंडई भरी लगाती है?  वास्तव में आपको भी पता है की आप दोहरे है, मानसिकता से, तर्क से, सच तो ये है की कोई आपका चरित्र भी आपको बताये तो आपको गाली ही लगेगी, तो बेहतर है की दूसरों को कोसने या गाली देने से बेहतर है की आप अपना चरित्र सुधारें ताकि आपका चरित्र आपको गाली न लगे यदि कोई आपकी ही भाषा में अपने हिसाब से बताये तो. 
आ जाईये वापिस, आपके जाने से बहुत लोग दुखी है, लोग “रविश के साथ खड़ा हु” टाइप का मुहीम चलाये है,  रविश भक्त उनके संग खड़े है, कहाँ खड़े है ? बिस्तर में, टायलेट में या बाथरूम में? ये नहीं पता बस खड़े हैं, एक टांग पे. और इनमे जो भी उनमे  आपके हुनर से प्रभावित भक्त लोग कम बल्कि वो लोग जादा है जो संघ या भाजपा के अंध विरोधी है, आपीए हैं, कोंग्रेसी है, छुपे हुए नक्सली या यों कह ले एनजीओ कुछ तथाकथित समाज सेवक है,  जिनका दिल तोड़ दिया है आपने है, इनके समर्थन को अपनी लोकप्रियता मानते है तो आपका भ्रम है, जबकि आपके पक्ष में खड़ा रहने वालो की सबसे बड़ी जमात भाजपा विरोधी होना है न की आपके भक्तो की संख्या, बात जो भी हो, आपके भक्त आपका इन्तजार कर रहे है, और आपके विरोधी के भक्त भी , कम बैक प्लीज. 

आपका के भक्त तो नहीं पर अभिलाषी 

कमल कुमार सिंह. 

Saturday, June 20, 2015

हम न सुधरब, खाली रोवब

२१ जून को योग का जो आयोजन हो रहा है वो सबके लिए अनिवार्य है? जबरजस्ती है? कोई नहीं करेगा तो क्या उसे सजा होगी? नहीं ..... फिर कुछ विशेष लोगो द्वारा योग का विरोध समझ में नहीं आता .. आपको योग नहीं करना मत करिए, की कम्पलसरी नहीं है ...लेकिन जो विरोध कर रहे हैं वो आने वाले दिनों में “आ बैल मुझे मार” वाली स्थिति पैदा करेंगे, और गेंहू के साथ घुन भी जाने वाली स्थिति बना रहे. और बैल जब मारना शुरू कर देंगे तो ऐसे आप जैसों के साथ-साथ वो घुन भी पिसेग जो यहाँ की संस्कृति भी मानता है। फिर आपके वोटों के पेटेंट मालीक, मिडिया और आपके गुरु आदि का रंडी रोना शुरू हो जायेगा, कैसे ?? ओके ... हिन्दू भी नमाज नहीं पढता, प्रेयर नहीं करता..और उस पर कोई कम्पल्सन भी नहीं है .. कल वो नमाज/प्रेयर का विरोध करने पर उतारू हो जाए तो आप क्या करेंगे?, जिसके लिए आप स्वयं उन्हें उकसा रहे है तो आप कहाँ भागेंगे ? या रंडी-रोना रोयेंगे की आप भारत में सुरक्षित नहीं हैं.
हाँ ये अकाट्य सत्य और तथ्य आप बदल तो नहीं सकते है न की योग हिन्दू और हिन्दुस्तानी संस्कृति ही है, भारतीय संस्कृति है, आपका मजहब कुछ भी हो सकता है लेकिन संस्कृति नही, मजहब और संस्कृति दो अलग चींजे है, आप अपना मजहब मानने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन उस देश की संस्कृति जिस देश का वो मूल धर्म/ संस्कृति है, को आप भारत पे थोप नहीं पा रहे जैसा की आपका का रवैया होता है, तो उसका फ्रस्टेशन भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग-योग का विरोध कर साफ़ दिखा रहें हैं जो आने वाले दिनों में आप पर घातक सिद्ध होगा. आप बहुसंख्यको को अपने खिलाफ भड़का रहे है।
आप जैसे देश के नहीं होते ये भावना आप जैसे कुछ लोगो ने ही भारतीय बहुसंख्यको के दिमाग में भरा है उन्होंने खुद नहीं भरा, अन्यथा आप भी इसी देश के हैं, आपको भी इस देश के संस्कृति से विरोध होने का कोई मतलब नहीं बनता था.
ये आप ही जैसे लोग है जो पानी भर भर के हम जैसे शांत लोगो को भी भड़का दिया आप लोगो को जवाब देने के लिए, पहले किसी शांत को बैल बनाते हो, फिर आ बैल मुझे मार कहते हो, फिर बैल मार देता है तो रंडी रोना रोते हो .. आप ही लोग जैसे थे बर्मा के रोहंगीया, आज अपने धर्म को दाख्खिन लगा के जहाज पे खुदी का मूत पि रहे है, जिन्दा रहने को मोहाल है... जो पहले आप ही लोगो की तरह आग मूतते थे किसी समय बर्मा में, और हाँ वो भी उसी देश के थे, लेकिन लगे वहां भी वहां की मूल संस्कृति को अपमानित कर अपने उस धार्मिक संस्कृति को भी पेलने की कोशिश करने लगे जो उस देश की थी ही नहीं, और खुद पेला गए कोई भी यहाँ तक की तताकथित सम-संस्कृति वाला देश भी पनाह नहीं दे रहा .
भाई जिस देश में हो उसी देश की संस्कृति की इज्जत करो, मजहब चाहे जो हो, दुसरे के धर्म की भी इज्जत करो साथ ही उस देश के “मूल संस्कृति” की. नहीं जब फसोगे त कोई आने नहीं वाला बचाने, और नहीं तुम्हारे दुनिया भर के भाई के कुछ नहीं कर पायेंगे, इसलिए पानी सर से ऊपर मत होने दीजिये. 
जैसे दुनिया टेक्नोलॉजी के लिए जापान, दूध के लिए डेनमार्क, बेहतरीन उन के लिए न्यूजीलैंड की ओर देखती है, उसी तरह बेहतरीन योग और योग टीचर के लिए दुनिया भारत की तरफ देखेगी।
मोदी की दूरदर्शिता सिर्फ भारत को स्वस्थ ही नहीं करेगी बल्कि योग के जरिये लाखो ग्लैमरस जॉब भी दिलवाएगी.. वैसी ही जैसी सॉफ्टवेयर इंजीनियर.. अब नौजवान योग सीखेंगे और दुनिया भर घूमेंगे..आर्थिक रूप से भी सम्पन्न होंगे.. योग भी अब एक जरिया बनेगा भारत के आर्थिक विकास में..भारत के लोगो को एक नया अवसर मिलेगा आगे बढ़ने का..फिर भारत का का नौजवान दुनिया भर योग सीखा के आर्थिक रूप से भी.. अपने और भारत को मजबूत करने में योगदान रहा होगा। ..
भारत का नौजवान? सारे? ..कुछ लोग भी..? नहीं.. ये न कुछ सीखने के लिए बने न सिखाने के लिए..ये बस विरोध के लिए बने है..रंडी-रोना के लिए बने है....तो उस समय ये अपना फेवरेट काम करेंगे जिसमे ये स्किल्ड है ...रंडी-रोना का..ये रंडी-रोना मचाएंगे.. कि इस देश में हम पिछड़े है , गरीब है, हमारे लिए कोई मौके नहीं है.. आगे बढ़ने का अवसर नहीं..हमारे साथ भेदभाव होता है.

सादर 
कमल