नारद: July 2012

Tuesday, July 31, 2012

परेशानी मे ही एकता


इस दुनिया मे सभी परेशान है, क्या छोटा क्या बड़ा, वास्तव मे परेशानी भाई चारा का सन्देश देता है, एक दम उम्दा वाला, मुस्लिम हिंदू दोनों पे आता है, नेता जनता दोनों पे आता है, कुवारो विवाहित दोनों पे आता है इस  मामले मे मै "परेशानी" का फैन हूँ , कम से कम अन्ना टीम की तरह अकले खुद पे क्रेडिट लादने की कोई कोशिश नहीं करती. 

बाबा-मोदी और मिडिया, अन्ना टीम के फ़ालतू बयांन  बाजियों से परेशान है, बयानों के बाद अन्ना टीम जनता न आने को ले के परेशान है, अरविन्द चंदे और राजनितिक माहौल तैयार करने को लिए परेशान है, सरकार बाबा से  परेशान है और सरकार से जनता है परेशान है, अर्थात "परेशान" ही वह कड़ी है जो सबको आपस मे जोड़े रख रही है. 

मै तो कहता हूँ भाई चारा और सद्भावना लाने के लिए "परेशानी" को रास्ट्रीय धर्म घोषित कर देना चाहिए. इसमें सरकार सहयोग कर सकती  है, सरकार तो इसके लिए वैसे भी वचनवद्ध है. कोई ऐसा कानून बनाये, की सभी परेशानी को इज्जत की नजर से देखे, भारतीय नारी की तरह. सब परेशान होना चाहे, "अबे वो बड़ा नकारा और खतरनाक है, परेशान ही नहीं है" "वो सांप्रदायिक है, परेशान ही नहीं है". 

अब विवाद न करिये की परेशानी को धर्म का दर्जा दिया जाए या भारतीय  नारी का, वास्तव मे दोनों एक ही है, सिवाय एक के की धर्म किसी भी परिस्थिति मे किसी को परेशान नहीं करता और भारतीय नारी विशेष, अन्वाशेष परिस्थिति मे  किसी को भी परेशानी कर सकती है, अर्थात परेशानी को धर्म की संज्ञा देना जादा तर्क संगत है.  

जिसको देखो वही परेशानी को कोसने मे लगा है, अरे भाईयों, जरा अकबर दूरदर्शी से सबक लो. अकबर ने एक धर्म चलाया था "दीन -ए इलाही " .. दीन - अर्थात परेशान  आत्मा, निश्चय ही अकबर महान था, उसका पता था, सारे परेशान लोग एक हो सकते है, सद्भावना के लिए पहले सबको परेशान युक्त  बनाओ , फिर उनके लिए पैकेज निकालो , "दीन - परेशान " टाइप का , खुद बा खुद सब एक होने लगेंगे .  शायद इसी कारण वो महान कहलाया होगा. 

ब्रम्हा एवं अन्य देवता ने मिल कर राम के लिए "परेशान विव्युह" की रचना की, जिससे राम को पर्यटन का अवसर प्राप्त हुआ, सीता से कुछ दिन दूर होकर स्वंत्रता का अनुभव भी लिया. अंततोगत्वा रावन जैसे पापी को निर्वाण दिया, और वाल्मीकि तुलसी को लिखने के लिए नया मैटर दिया.  

मोहम्मद भी तडीपार हुए, खुदा को भी अंगुल कर कुरआन लिखवाया, जेहादी पाठ डलवाया, अरब मे जिहाद करवाया, जो पुरे दुनिया मे फ़ैल गया, अब देखिये कैसे सारे आतंकवादी एक होकर एक दूसरे से प्रेम पूर्वक आपस मे रहते है, जिससे दुनिया की सरकारे परेशान होती है, और वहाँ के देशवासी एक होते जाते है. 

अंग्रेजो ने पुरे भारतीय जनता को नाको चना चबवा रखा था, सिवाय कोंग्रेसियों के, जिससे वो एक न हो पाए, जिन्ना और नेहरू अलग अलग खेमे मे हो गए, और पकिस्तान बन गया. जबकि पूरी जनता परेशान हो कर एक हो गयी. 

अकबर, राम मोहम्मद से किसी ने सीख ली हो या न ली हो, लेकिन सरकार ने "ले ली", सबको परेशान करके एक करने की शपथ. लेना भी चाहिए, आखिर देश की एकता का सवाल है. कभी टैक्स लगा के जनता को एक कर सड़क पर उतरवा देती है, तो कभी पेट्रोल मे आग लगा के,  आज सरकार जनता को परेशान करने के लिए  बैठके करती है, सभाएं करती है, करोडो के प्रोजेक्ट लाती है, सवाल आखिर एकता का है. 

जो काला धन या लोकपाल दे दिया तो जनता  क्यों परेशान होगी ?? सो रोक के रखा है, सवाल आखिर एकता का है.  जनता को भी इस बात को समझना चाहिए, देश की एकता,अस्मिता बनाए रखने के लिए, परेशानी एक आवश्यक तत्व है. परेशानी खत्म होते ही नेता की आयु छोटी होने लगती है, जनता के एकता के कण बिखरने लगते है, तो भाइयो परेशान रहो और एक रहो, सरकार हमारे साथ है. 

Monday, July 30, 2012

अन्ना अनशन असफल क्यों ??


कोई साल भर पहले जमीनी कार्य और जनता  में अलख जगाने के बाद बाबा रामदेव ने काली सरकार के खिलाफ जंग छेड़ने की तिथि की घोषणा जून २०११ निर्धारित कर दी तो महीनो पहले से जनता उस दिन का इन्तजार बेसब्री से करने लगी, क्योकि जनता सरकार के काली करतूतों से अजीज आ चुकी थी. परेशांन थी, हैरान थी, उसको चाहिए था तो किसी का नेतृत्व, ये कमी बाबा राम देव ने पूरी कर दी तिथि  घोषणा के साथ. चुकी बाबा रामदेव  जमीनी तौर से कई वर्षों से हर प्रकार के देश सेवा में लगे है, चाहे वो स्वदेशी  हो, योग हो, आयुर्वेद  हो, या व्यापार में शिर्षता हो, इसलिए जनता  का भरोसा बाबा के ऊपर निश्चय ही था . 

अब देखिये घटना क्रम कितनी तेजी से बदलता है. 

बाबा के तिथि घोषणा के बाद है एक ऐसे गुमनाम शक्श को रातो रात भारत की जनता का मसीहा बनाया जाता है जिसको पिछली सुबह तक कोई जानता तक न था, जो शायद किसी महारष्ट्र के अनाम गाँव से था... वास्तव मैंने खुद भी इनका नाम कभी नहीं सुना था, और मेरी ही तह करोड़ोयुवावों ने भी, जो महारष्ट्र से नहीं थे. 

एक सभा बुलाई, बाबा राम देव को बुलाया, बाबा ने उसका परिचय अन्ना हजारे के नाम से इस देश को कराया. शायद ये सब पहले से सोची समझी योजना थी (अभी मै शाजिश नहीं कह सकता). शायद इसके पीछे केजरीवाल का दिमाग रहा हो.. केजरीवाल का इतिहास खंगाला  जाए तो केजरीवाल वास्तव में बहुत ही महत्वाकाक्षी व्यक्ति रहें है, एक बार इनसे  किसी टी वी वाले ने पूछा की अपने सरकारी नौकरी क्यों छोड़ दी, तो इनका जवाब था, यहाँ न नाम है न इज्जत, मुझे और जादा चाहिए ... यानि ये दिल मांगे मोर... 

 अब चुकी अन्ना सज्जन आदमी थे, सीधे थे भोले थे, अरविन्द की नजर इनपे गयी, लेकिन लांचिंग के लिए  किस पैड का इस्तमाल हों ?? अरविन्द  के आर टी आई लाने के बाद भी अरविन्द आम जनता में इतने लोकप्रिय न थे जितना बाबा, वास्तव में बाबा आज इस देश में  किसी भी व्यक्ति से लोकप्रिय  है, भारत ही नहीं वरन विदेशो में भी.. चाहे वो गूंगा प्रधान मंत्री हो या भ्रष्ट का कलंक लेने वाला राष्ट्रपति. तो अरविन्द अन्ना को खड़ा आगे कर बाबा को लांचिंग पैड बनाया, और अन्ना हजारे  को लांच कराया, उस समय तक बाबा भी  शायद पूरी बात नहीं समझ पाए थे, उन्होंने सोचा काम देश का है तो एक से भले दो... 

बाबा के द्वारा लांचिंग के बाद अन्ना और टीम को आम जनता जानने लगी तभी आना को जंतर मन्त्र पर बिठा दिया गया, और माया से  उनको भारत का हीरो, डुप्लिकेट गाँधी, और न जाने क्या क्या  बता दिया गया, जनता भी खुश, की चलो अब क्रांति हो के रहेगी, उधर बाबा और इधर अन्ना.. सो जनता ने पुरे जोश वो खरोश से अन्ना का समर्थन किया, इसके कई कारन थे , पहला,  वेश्यावों के को रखने वालो, ब्लू फिल्म बनाने वालो और अवैध बच्चो के पिता जी लोगो से जनता तंग आ चुकी थी... दूसरा अन्ना को बाबा रामदेव ने लांच किया था इसलिए बाबा को मानने वाले एक बड़ी संख्या अन्ना के साथ थी, तीसरा भाजपा कोंग्रेस के खिलाफ मौका ढूंढ रही थी,  अब तक सभी चाहे वो संघ हो या भजपा या बाबा खुद, टीम अन्ना सरकार के विपक्ष में जोरदार ढंग से खड़े हुए जो जनता भी चाहती थी .    

अब मुझे ए समझ नहीं आता की मुद्दा यदि देश का ही था, तो जून में क्यों न रख लिया बाबा के साथ ही ?? दो अलग अलग आन्दोलन क्यों ?? दोनों मिल के एक क्यों नहीं ??  इसका कारन  ये था की शायद अन्ना तो मान भी जाए, लेकिन अरविन्द का छिपा हुआ एजेंडा कुछ और ही था...इसलिए  इसने एक नहीं होने  दिया  बल्कि उलटी पुलती बयान बाजियां भी की, जो आजतक जारी है...  

सरकार ने सान्तवना दी अप्रैल खत्म हुआ इस आन्दोलन से अन्ना टीम के साथ बाबा वादी भी खुश संघ भी खुश की चलो परिवर्तन होने की रह में पहला भूख हड़ताल सफल रहा, लेकिन इनमे से कोई एक था जिसके चहरे पे कुटिल सोच के साथ कुटिल  मुस्कान थी, और वो था अरविन्द. 
अब जनता की नजर थी बहु प्रतीक्षित बाबा के विशाल आन्दोलन पर जो बाबा ने जमीन पर काम कर के खड़ा किया बजाय की सिर्फ  भाषण बाजी और सिर्फ अनशन के.  सरकार समझ गयी की जितने भी उसने ब्लू से ले के ब्लैक फिल्म बनाये जनता के सामने एक एक कर के सामने आ रहे हैं, और जनता अबकी इनकी रेटिंग कर देगी... सो बाबा को फेल करने के लिए सारी तैयारिया की गयी... 

बाबा का आन्दोलन हुआ, और उम्मीद से कई गुना जादा समर्थन मिला, सरकार के हाथ पाँव फूल गए, उसी समय जनरल डायर की आत्मा ने सरकार के शरीर में प्रवेश किया,  और डायर की आत्मा ने खूब उत्पात मचाया,  बाबा का हल भी लाजपत राय वाला हो जाता यदि उन्हें खुद कुछ पुलिस वाले न बचा के ले हाय होते तो.   ये दबाया हुआ  आंदोलन  भी सफल रहा, लेकिन जनता सरकार के रवैये से एक दम क्षुब्द थी, जनता की हालत हो उस इंसान की तरह हो गयी जिसका हाथ पाँव बाँध के समुन्द्र में फेंक दिया जाए, पूरी जनता बाबा का बदला लेने की ताक में थी,.

इसी समय अन्ना का दुसरा आंदोलन की घोषणा हुयी, अब जनता के हाथ पाँव की रस्सियाँ  खुल चुकी थी, वो तैरने लगा, फिर से सांस और शक्ति जुटा बाबा का बदला लेने अन्ना के समर्थन में शामिल हो गया... अबकी सरकार सचेत थी, अच्छी तरह से समझती थी, की अबकी कुछ किया तो जनता का हाथ पाँव  भी न बाँध पायेगी बल्कि जनता की लात खायेगी...मामला अब यही से घूमता है..यहाँ से अन्ना टीम गर्व में चूर हो जाती है और समर्थन वाले कारणों को भूलते हुए बाबा पे प्रहार होता है.. ...  सरकार समझ चुकी थी की  आंदोलन अहिंसक जरुर है लेकिन नपुंसक नहीं... सो चुपचाप आश्वाशन का पॅकेज दिया, और बला चलती कर दी... अन्ना का ये आंदोलन बस जनता के लिए सेफ्टी वाल्व का का काम किया जिसका दबाव बाबा ने बनाया था... यही से जनता शक की नजर से टीम अन्ना को देखने लगी , कही ये कोंग्रेस समर्थक तो नहीं ?? 

लेकिन जनता को एक और  झटका लगा जब अन्ना को खड़ा करने वाले बाबा ही अन्ना टीम के निशाना बने. 
दूसरा झटका जनता को तब लगा जब उन्होंने संघ को दूर रहने के लिए कहा, इतिहास गवाह है, चाहे वो जे पी आन्दोलन हो या गाँधी का  चम्पारण,  खोंग्रेस के खिलाफ सफल तभी हुआ जब उसमे राष्ट्रवाद शामिल हुआ... अब अन्ना टीम की असलियत जनता को धेरे धीरे समझ तो तो आने लगी  थी लेकिन फिर भी जनता शंका में थी, 

 लेकिन जल्द  ही बादल  हट गए, कुमार विश्वाश की बाबा के ऊपर विभत्स सल्वारी कुंठा वाली टिप्पड़ियों ने मामला साफ़ कर दिया और ये बता दिया की बाबा रामदेव का बस इस्तमाल हुआ था..उसके बाद तो एक एक बाद एक हमले ने चाहे वो सिसोदिया द्वारा किये गए हो या अन्य जनता ने सुनी और मंथन किया . बाबा ने तो माफ कर दिया, लें उनके समर्थक और संघ ने ये बात गाँठ बाँध ली.. और मुंबई में हुए अनशन में अन्ना को भागने पर मजबूर कर दिया जिससे टीम अन्ना को करारा झटका लगा.. एक है जो गोलि चलने पे उसको जबरजस्ती भगाया जाता है और दूसरा जो ठण्ड की मार तक नहीं झेल पाता, जनता सब देख रही थी, सो अन्ना से उनके खुद के गृह राज्य में समझा दिया.. 

 इसी बीच अन्ना टीम की कई  कार गुअजारियां सामने आई,  चाहे भूषण के जमींन का मामला हो या, प्रशांत के कश्मीर को लाग करने का बयां बाजी, जनता चक्कर खा गयी की हम इन देश द्रोहियों का साथ दे रहे हैं ?? जनता को पता चला की ये वही भूषण है जो आतंकवादियों के केस लड़ रहे हैं.. ये वही अरविन्द है जो जागरूकता तो फैलाते हैं लेकिन खुद वोट देने नहीं जाते.. ये वही किरण है जो छोटी मोटी रकम के लिए भी घोटाला कर देती है.. अब टीम अन्ना की जमीन खिसकती चली गयी.. 

अब अन्ना टीम को उसकी भूल में  आया. उसने फिर से कुटिलता पूर्वक अन्ना को बाबा से जोडने की पुरजोर कोशिश की बाबा जुड भी गए क्योकि बाबा  अन्ना टीम की विभत्स टिप्पडी से बड़ा देश को मानते थे.. और उनको पता था की उनका कार्य जमीनी है बजाय  की सिर्फ भाषण बाजी और अनशन के... जैसा का टीम अन्ना का था.. .. लेकिन जनता अब भी सचेत थी, शायद वो समझ चुकी थी अन्ना बस एक मुखौटा भर है, आंदोलन का असली कारन कोंग्रेस को सहयोग करना है जिससे शायद अन्ना खुद भी अनजान हो.

आंदोलनों के बहाने जम के चंदा उगाही की गयी, जब ठीक ठाक रकम हो जाता तो घोषणा की जाती की सरकार ने हमारी बातें मान ली है, अब हम अनशन खत्म कर  रहे हैं, और जब पैसे खत्म हो जाते तब घोषणा की जाती की सरकार ने धोखा किया है हम फिर से आन्दोलन करेंगे, निश्चय ही इन सब में अन्ना का कोई हाथ नहीं है, लेकिन वो बिचारे क्या करे ?? उनकी हालत भी मनमोहन से कुछ  भिन्न नहीं है, मनमोहन भ्रष्ट मंत्रियों से घिरे है और अन्ना अपने कुटिल टीम से...लेकिन ये पब्लिक है सब जानती है.. 

और अब अन्ना टीम के संजय सिंह बाबा से स्पष्टीकरण मांग रहे हैं की बाबा मोदी से क्यों मिले?? ये भी जनता देख रही है, और अरविन्द का बयांन की मोदी सांप्रदायिक है, यही नहीं भ्रष्ट भी है , ये भी जनता देख रही है ... जनता समझ चुकी है की अन्ना को अँधेरे में रख अरविन्द कोंग्रेस का पूरा साथ दे रहा है. शायद उनकी कुछ राजनितिक आकांक्षाएं भी हो. 

अब  निश्चय ही अब टीम अन्ना का आन्दोलन वेंटिलेटर पर है जिसकी साँसे कभी भी उखड सकती है, जनता भी समझ चुकी है उन्होंने लंगड़े घोड़े पे डाव खेला, और हार गए... 

 अब सबको इन्तजार है, बाबा के अगस्त क्रांति का, शायद बाबा ही अब एक मात्र विकल्प रह गए हैं.. 

सादर 

कमल 

Saturday, July 28, 2012

अन्ना की फ़ौज मे हिजड़ों की मौज


मुसलमानों और संघियो को दूर कर अन्ना टीम एकदम अलग थलग पड़ गयी है.. खैर ये भी होना था.. अब नमक हरामी करोगे तो यही होगा, पहले आंदोलन मे जहाँ संघ का समर्थन था, तो आंदोलन हिट हुआ, लेकिन नमक हरामी की हद तब हो गयी जब अरविन्द ने कहा की संघ दूर हो जाओ,  खैर अन्ना टीम कुछ भी संघ को कह ले लेकिन फिर भी संघी अन्ना टीम की इज्जत करते हैं, एक बार मे ही बात माँन अपने आप को अलग कर लिया, नमूना तो मुंबई मे ही दिख गया था, और आज देल्ही मे इसका असर साफ़ देखा गया..आखिर अन्ना टीम देश हित मे काम कर रही है और संघियो ने उनकी बात मान उनका सहयोग किया है, देश हितों के लिए कार्य करने वालो की बात न मानी जाय ये बड़ी राहुल जैसी बात होगी .. 

पुराने ज़माने मे योगी जंगल मे, अकेले जाके चिंतन मनन करते  थे जिससे सिध्धि प्राप्त होती थी, और उसका उपयोग वो समाज और देश की भलाई मे करते थे... लेकिन आज ???? आज भीड़ जादा हो गयी तो चन्दा जादा, और कम हो गयी तो कोई बात नहीं अकेले हैं तो क्या, सिध्धि प्राप्त कर के रहेंगे.. लेकिन भाई उसके लिए जंगल या हिमालय  मे जाओ, जंतर मंतर पर नहीं. अन्ना का कहना है भीड़ मन की आँखों से देखो, जैसे कोई प्रेमिका अपने प्रेमी या इसके उलट देखता है..वाह !! क्या रंगीला अध्यात्म है... खैर आंदोलन मे श्रृंगार रस का मजा न हो तो कोई मजा है??? 
अन्ना कहते हैं भीड़ दिव्य दृष्टि से देखो जैसे  महाभारत का संजय देखता था, इस प्रकार के दिव्या दृष्टी से देखोगे तो सारा देश  हमारे साथ है, अरे अन्ना जी , ये संजय वाली दिव्या दृष्टी से देखोगे तो देश भर मे कुछ और ही नजर आएगा, कोई बाथरूम  मे नहा रहा होगा, कोई घूम रहा होगा,  और वही द्रस्टी जो अपने आस पास कोने मे लगा दी तो आपके ही टीम वाले गुठ्का, बीड़ी, सिगरेट का सेवन करते, आपको गलियां देते मिल जायेंगे, और जो इस प्रकार की दिव्य दृष्टि किसी नवविहाहित के कमरे मे डाली तो आपके अरमान जाग जायेंगे.

वैसे सच यदि इस प्रकार की कोई दिव्य दृष्टि आपके पास है तो एक दिव्य वीडियो कैमरे का भी इंतजाम कर लीजिए, क्योकि साधारण कैमरा सामान्य  आँखों से दिखाई देने वाला भीड़ कैद करती है न दिव्या दृष्टि वाला... फिर आप जहाँ भी किसी चोर नेता को अंड- संट करते देखे पटाक दिव्या कैमरे से कैद कर लें.. फिर वही मिडिया वालो को बेंच दे, बेचना खोचना आपसे न हो सके तो प्रशांत भूषण को लगा दे , वो कश्मीर का भी सौदा कर सकता है तो मिडिया से भी बिचौलियापन भी कर लेगा.. इससे आपको अछ्छे पैसे मिल जायेंगे, फिर न चंदा लेने की जरूरत पड़ेगी न ही चंदा के लिए आन्दोलन करने की... 

खैर अब आज की बात करते हैं, मै पंहुचा होऊंगा कोई ४ बजे के आस पास, हालाकि  मै संघी हूँ न कि उनका समर्थक, लेकिन मै शाजिया जी के स्माईल का फैन हूँ, बार बार उनकी एक झलक के लिए ही जाता हूँ, जैसे बचपन मे सुंदरता मे एश्वर्या जी मेरी आदर्श थी वैसे आज शाजिया जी मेरे लिए हैं... 

वहाँ सब मस्ती से बैठे थे, बैठने  की काफी अच्छी व्यवस्था थी क्योकि एक एक आदमी १० -१० फूट दूर बैठा था शायद भीड़ कम थी सो सबने जगह का आनंद उठाया, सभी को बिस्कुट बांटे जा रहे थे, एक तो  बिस्कुट के लिए लड़ पड़ा (कृपया चित्र देंखे) सब मस्त झूम रहे थे, एक नौटंकी वाला नौटंकी दिखा रहा था बीच बीच मे रावन की तरह अट्टहास भी कर रहा था, थोड़े देर बाद वो भी बिस्कुट पानी के लिए लडने लगा (कृपया चित्र देंखें ). कुमार विश्वाश दूसरों से चुराई गयी कविता का पाठ कर रहे थे (उनमे से अधिकतर  डा सौरभ या मदन जी की थी) कोई अपने बगल वाली लडकी ताड़ रहा था.  खैर जो भी हो माहौल एक दम बढ़िया था. 

लेकिन मुझे इससे क्या लेना देना, मै तो बस शाजिया जी की एक स्माईल के लिए गया था. लेकिन ये क्या ???????? ये तो कोई किन्नर थी जो मंच से भाषण दे रही थी , मै गश खा गया .. अन्ना पे बड़ा क्रोध आया , क्यों शाजिया जैसी सुन्दर युवती से छेड़ छाड कर अपनी दिव्य शक्तियों से  उसको बीच का बना दिया, मेरा दुखी चेहरा देख एक ने कहा अरे ये शाजिया नहीं किन्नर नरेश सोनम है , तब जा के मेरी जान मे जान आयी .
लेकिन जान के साथ एक सोच भी, की क्या अन्ना टीम इस हद तक निराश हो गयी हो की ताली पिटने के लिए भीड़ कम पडने लगी तो प्रोफेशनल ताली पिटार ले आया... खैर प्रोफेशनलिज्म का जामाना है, आजकल हर काम प्रोफेशनली होना चाहिए, शायद यही पे अन्ना की दिव्य शक्तिया खत्म हो गयी नहीं तो उन्ही दिव्य शक्तियों के सहारे ताली भी बजवा लेते..  तभी मुझे दिव्य स्माईल लिए हुए दिव्य शाजिया जी दिखी और मेरा मनोरथ पूरा हो गया.. सो रवानगी ... 

बाकी खबर कल, अब कुछ तस्वीरे देख लें, जो की मेरी मोबाईल से हैं, कार्यालय से सीधे अन्ना दिव्य स्थल पर गया था कैमरा न ले सका.. 
                                                भीड़ कम , सो दिव्य दृष्टि से बड़ा लो
                                                  बिस्कुट मैन (कई बार लड़ाई करवाई इसने )
                                            रावण जी, बड़ी लड़ाई के बाद बिस्कुट पानी मिला इनको

किन्नर नरेश सोनम जी (ताली पीटो प्रभाग)

Thursday, July 26, 2012

लोकपाल मिले न मिले - समर्थन दे दो प्लीज


अन्ना के तस्वीरी मुह मे अन्न डालता बालक (पेट की हालत बच्चे भी समझते हैं) 

पिछले साल के अप्रैल की गर्मी ने उसे बहुत सताया, फिर उसने ठण्ड का दामन पकड़ा, लेकिन कमबख्त ठण्ड ने भी अपनी दादागिरी जोर शोर से दिखाई, एसी कमर तोड़ी की मोर्डन गाँधी को मुंबई  से तडीपार होना पड़ा, उसके बाद शायद  जनता कुछ चेती, "ओफ्फ्हो, ये क्या ?? देश को एक नया मंत्र देके भाग गया.". ये थे अपने अन्ना जी, लेकिन एक बात साफ़ कर दूँ अन्ना जी मे कोई दोस् नहीं है, उनको पता है कि कभी कभी भागना स्वास्थ्य के लिए परम लाभदायक होता है. ये भागते हैं हैं तो इनके साथी भागते हैं, अतः सबका स्वाथ्य ठीक रहता है, चाहे वो अरविन्द हो या सिसोदिया... अतः अन्ना को पी टी अध्यापक भी कहा जा सकता है.. भ्रस्टाचार के साथ -साथ अब रोग को भगाएंगे अन्ना टीम वो भी भाग भाग के. 

मेरा बस चले तो मै गिनीज बुक वालो को आमंत्रित कर लूँ, कि आओ भईया,  तुम लोग अजूबो का नाम अपने किताब मे लिख के अमर बना देते हो न, तो आओ और फ्री मे दो चार नाम हमारे देश मे से भी लेते जाओ बिलकुल ताजा ताजा.... एक से बढ़ कर एक खासियत है इनमे, एक बुला के भाग जाता है, तो कोई मतदान करने की जागरूकता फैला के खुद वोट नहीं देने जाता. किसी ने सही कहा हैं, भारत मे नमूनों कि कमी नहीं. 

वैसे इसमें अरविन्द की कोई गलती नहीं है, वास्तव मे  वो भारतीय साहित्य का सम्मान करते हैं, हमारे भारतीय साहित्य मे लिखे एक लाइन से इतने प्रभावित हुए कि उसको जीवन मे ही उतार लिया  "पर उपदेश कुशल बहुतेरे"  हम कोर्ट का सम्मान करने के लिए लोगो से कहेंगे लेकिन खुद समय पे नहीं पहुचेंगे,  तो क्या हुआ ?? सम्मान तो करते हैं, इतना क्या कम है.. भ्रस्टाचार हटाने के लिए हम जागरूक तो करेंगे लेकिन खुद अपना टैक्स देने मे हीला हवाली करेंगे. कोई नहीं ये सब भारतीय साहित्य का असर है, यदि कोई पूछे तो एक लाइन सूना दो,"पर उपदेश कुशल बहुतेरे". 

शुरू शुरू मे मै भी बड़ा प्रभावित था, अन्ना का भोला चेहरा, रोगन बादाम खाए हुए गले से जब ओजस्वी आवाज मे भारत माता कि जय निकलता था तो लगता था जैसे भारत माता अभी झंडा ले के प्रगट हो जायेगी, और कौन जाने हो भी जाती है, लेकिन उनकी तस्वीर भी हटा ली, तो शायद भारत माता ने भी समझ लिया होगा, अरे सम्मान तो करता है इतना ही बहुत है, क्या हुआ जो मुए ने जो मुझे मंच से भगा दिया..आखिर है तो मेरा बेटा न.  खैर इससे पता चलता है की सम्मान करना कहने और और करने मे कोई खास फर्क नहीं है, सब चलता है.

अबकी की अन्ना टीम ने बहुत बुध्धिमानी से काम लेते हुए अनशन बरसात मे रखा, न गर्मी के थपेड़े न हड्डी तोडक ठण्ड की गुंडा गर्दी, वास्तव मे पिछली गलतियों का मौसमी अनुभव बहुत काम आया है, "बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले"  यदि कोई जुगाड होता बादल मे  विटामिन  और पोषक तत्व मिलाया जा सकता था खैर ये तो मेरी बस कल्पना है, लेकिन सुना है की वैज्ञानिक अब मनचाहे ढंग से बारिश कर सकते हैं, लेकिन इस विटामिन युक्त बरसात के लिए अन्ना टीम को इविज्ञान  बुध्द्जिवियों  से संपर्क करना पड़ेगा. 

वैसे भी कहा जाता है की टीम अन्ना मे  बुध्द्जिवियों  की भरमार है, बुध्द्जिवि अर्थात यदि आप उन्हें  दड़बे के मुर्गे गिनने को कहें तो पहले मुर्गे की टांग गिनेंगे फिर उसमे दो से भाग देंगे.... अरे विचारशीलता इसी को तो कहते हैं... बिना विचार वाले तो सीधे सर गिन लेते हैं..  

अन्ना और उनकी टीम अब जोर शोर से समर्थन मांग रही है, कोई समर्थन के लिए  मिस काल करने का नंबर देता है तो कोई कुछ, अरे समर्थन दे दो न भाई, वैसे भी बुखारी ने इन्हें भगा दिया, ओफ्फ्हो, अन्ना ने एक गलती कर दी गाँधी टोपी कि जगह यदि "क्रोसिये" से बुने हुए धागे का टोपी पहन जाते तो कौन जाने मिल जाता, लेकिन कोई बात नहीं, फलाँ  नो पे मिस काल करिये न --प्लिज , प्लीज , समर्थन दीजिए, हम दिमाग से हाथ हटा  दिल पे रख इन्तजार कर रहे हैं.... अमाँ मिया दे भी दो,... 

अब दिल्ली मे दिल डूबता - उतरता देखते हुए सूरज को भी गलतफहमी होने लगी है की वो सूरज ही है या अन्ना टीम का दिल. 
काश कोई एसी व्यवस्था हो जाय कि सूरज भी एस एम् एस  या मिसकाल से डूबने - उतरने लगे तो मजा आ जाये....  कम से कम मजनू लोग तो खुश हो ही जायेंगे .... 

सादर 

कमल 

Tuesday, July 17, 2012

भ्रस्टाचार

जीवन को चलाने के लिए भी कुछ संविधान बनाए गएँ है जिसको कई अनुच्छेदों मे बांटा गया है जैसे आचार, विचार, सदाचार, ये अधिकारिक तौर पर मनुष्य को निर्देशित किये गए कि जाओ इस मार्ग पर चलो और जीवन   रूपी खाई को सफलता पूर्वक पार करो.

नियम बनाने वाले सफल होने कि गारन्टी नहीं दी इससे पता चलता है उस समय मे कोचिंग सेंटर नहीं था  नहीं तो जरुर कुछ सीख लेता. इससे कोचिंग का इतिहास पता चला है की अचार विचार सदाचार के ज़माने मे इसका अस्तित्व नहीं था. 

अब आगे बढते हैं. इस सविंधान को बनाने वाला निश्चय ही दूरदर्शी नहीं था, और बहुत ही दुबला पतला रहा होगा, उसने ये नियम मार्ग इतने पतले बनाए कि चौड़ा आदमी बिचारा दिक्कत महसूस करने  लगा. पतला आदमी तो ये सविंधान मान भी ले लेकिन मोटा इस रास्ते को देखते ही डर जाता. वह मोटा आदमी उस दुबले आदमी के पास गया. "भाई यह रास्ता चौड़ा क्यों न बनाया चलने मे आसानी होती ?? यह तो  पतला सा जोखिम भरा, मेरा बैलेंस जरा भी बिगड़ा नहीं कि कि सीधे खाई मे"

पतलू ने कहा " भाई रास्ता पतला है लेकिन मजबूत है, खाई पर कर जाओगे, जो चौड़ा बनाया तो माल मजूरी सिमित है, आकार बढ़ जायेगा, लेकिन कमजोर हो जायेगा, पार  क्या बीच मे ही गिर पड़ोगे."

समस्या यह कि रास्ता चौड़ा करने का माल खत्म, मजूरी खत्म. और मोटे आदमी कि समस्या सुन दुबला बोला भाई खाना कम कर दे पतला हो जायेगा. मोटा बिदका "तुमसे खाई पार करने का रास्ता पूछा है, आचार विचार वाले को आहार के बारे मे सुझाव देने का अधिकार नहीं.  इससे यह पता चलता है कि उस ज़माने मे रामदेव जैसे योगी नहीं होते थे, नहीं तो जरुर वह मोटे आदमी को रेफर करता. और योगी उसको समझता कि जितना है उसी मे संतोस करो, अपने को पतला करो और चौड़े मार्ग से बचो. 

धीरे धीरे मोटे समाज मे असंतोष फैला, और मोटो की सभा बुलाई गयी. जिसको वो पतला मनुष्य दूर से सुन रहा था.
अध्यक्षीय भाषण शुरू हुआ  " मित्रों जैसा की सभी लोगो को मालूम है, हम यहाँ क्यों इकठ्ठे हुए है, हमें खाने कि आदत पड़ी है, उसक असर स्वास्थ्य पे भी पड़ा है, हम मोटे जरुर हुयें हैं , लेकिन इसका मतलब ये नहीं की हमें जीवन मार्ग पार करने अधिकार प्राप्त नहीं, रास्ता चौड़ा बनाते , लेकिन क्यों बनाए , ये संयम वालो कि शाजिश है , जिसके विरोध हम एक नया रास्ता बनायेंगे, इन्ही के तर्ज पर...हमें रास्ता चौड़ा करना है माल किसी भी प्रकार हो.....बस  चार लगा होना चाहिए क्योकि हम भी इनसे अलग नहीं आखिर इन्ही कि वजह से तो हम आगे बढते है, ये पतले होते हैं तभी तो हम मोटे होते हैं, ये इनकी जिम्मेदारी है कि ये पतले क्यों है , सब जेम्मेदारी इनकी है.. ये सचेत क्यों नहीं ??(शायद यही भाषण मुंबई के युवावों ने सुन लिया था, जो ए सी पि के विरुध्ध मोर्चा खोले हुए थे) 

इनके सदाचार , आचार के विरुद्ध हम एक नए रास्ते कि घोषणा करते है "भ्रस्टाचार"  इन पत्लुवों  को कम से कम हमें शुक्रिया देना चाहिय की इनका "चार"  सफिक्स शब्द हमने भी समाहित किया है.  और इस चार मे हम चार चार जोडते है, दुराचार, बुराचार, मुल्ला चार  और अंतिम महान शब्द नेता चार... 


जोरो कि तालियाँ बजी, मोटा सभा ने जय जय कारे लगाये, सब प्रसन्न ...

वो पतला मनुष्य एकाकी एक कोने मे खड़ा था, जो सब कुछ सुन रहा था वो बस सोचता रहा, "रास्ता पतला है तो क्या मजबूत तो है",  लेकिन था तो अकेला,

वो आज तक सिसक रहा है.. शायद रो भी रहा है ...मोटे अभी भी  चौड़े रास्ते पे  चल रहें हैं,  शायद अभी बीच मे है, उन्हें हाशिया तो मिल जाएगा लेकिन किनारा नहीं. 



Wednesday, July 4, 2012

मुसलमानों ने किया बदनाम

जब मै छोटा था तो एक गाना बड़ा सुनने मे आता था, "लौंडा बदनाम हुआ नसीबन तेरे लिए" कालांतर मे इसी गाने को दबंग मे बोल बदल कर प्रस्तुत किया गया, मुन्नी बदनाम हुयी " के नाम से. 

भाई बदनाम  होना  बुरा नहीं है या यों कहिये कि क्या नाम न होगा बदनाम होके .... लेकिन तकलीफ तो तब होती है जब सिर्फ बदनामी मिलती है और कुछ नहीं. कुवां खोदने पे पानी भी न निकले और हाथ अईंच जाए सो अलग. 

एक दिन मैं किसी कार्यवश कही जा रहा था, रास्ते मे एक औरत किसी मर्द से झगड़ रही थी. धीरे धीरे भीड़ बढती गयी, लोगो से पता चला की झगडने वाली औरत एक वेश्या  वेश्या थी और वह आदमी उसका ग्राहक, जो पैसे देने मे हिला हवाली कर रहा था. भीड़ से पता चला कि वह औरत किसी जमाने मे सभ्य थी, उसका खानदान भी साफ़ सुथरा था, लेकिन कालांतर मे आचरण गिरने कि वजह से मोहल्ले मे बदनाम हो चली थी, जितने लोगो को पता चला कि औरत पथभ्रष्टा हो चुकी वैसे वैसे सभ्य लोग उससे दुरी बनाते चले गए, कोई भी उसकी मदद करने से कतराने लगा. धीरे धीरे उसके घर वाले भी अन्य अपराधों मे फसते चले गए. सब मिला के एक दम छीछा लेदर हो चुका था. तब इस औरत ने इस बदनाम पेशे को अपनाने से  नहीं चुकी या यों कहिये उसको इसी को तुष्ट करने मे संतुष्टी मिलती गयी. अब ये तुष्टिकरण का धंधा अन्य व्यापार जैसे तो सम्मान जनक नहीं जहाँ ढंग के ग्राहक पहुंचे, जाहिर सी बात है जब धंधा ही गलत चुना है तो ग्राहक भी वैसे ही होंगे... खैर मुझसे क्या लेना देना, मैने चुपचाप अपना रास्ता पकड़ा, उसकी हालत वो जाने. 

आज शाम को किसी मित्र ने बताया की गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला ने कहा कि वो गुजरात मे मुसलमानों के लिए बदनाम हो गए है फिर भी उन्हें  वोट नहीं मिलता.. खैर मुझसे क्या लेना देना उनकी हालत वो जाने. 


Tuesday, July 3, 2012

गुरु का ज्ञान


गुरुर्ब्रह्मा गुरूविष्णु गुरुर्देवो महेश्वर,
गुरु साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः 

अर्थात, ज्ञान देने वाले को ही सर्वोपरि माना गया है, एक सच्चे  शिष्य के लिए उसका गुरु  ही उसके लिए  ब्रम्हा, विष्णु और समस्त देवता होता  है.  लेकिन ये ठहरे वेद - पुराण  वाक्य, पुराने हो और  बूढ़े हो चुके हैं, आजकल बुजुर्गो की बात कौन सुनता है ? बुजुर्गों को बस घर की शान के लिए घर के द्वार पर बैठा कर हुक्का थमा दिया जाता है, लो गुडगुडाओ, इसी की आवाज निकले, इसी प्रकार वेदों को भी शो पिस बना के घर के किसी कोने में रख दिया जाता, मूड हुआ तो कभी कभार उठा के धुप में रख दिया या कोई कीड़ों वाली गोलि को  वेद का पडोसी बना दिया जाता है एक शशक्त पहरेदार के रूप में, की कहीं कीड़े - चूहे वेद ज्ञान आत्मसात न कर के शेर न बन जाये नहीं तो मोहल्ले में मारा मारी हो जायेगी. 

आजकल मामला उल्टा है,पहले एकलव्य जैसे शिष्य हुआ करते थे जो मूर्ति प्रतिस्थापना  के एवज में अंगूठा दान दिया करते थे, लेकिन आज एक अलग देसी श्लोक है "गुरु गुड रह गया और चेला चीनी हो गया" आज का एकलव्य मंत्र ज्ञान सीख के गुरु को अंगूठा देने की कौन कहे उल्टा अंगूठा दिखा देते हैं, इसमें भी गुरु प्रसन्न रहता है की कम से काम लात तो नहीं पड़ी. 

बचपन में गुरु जी लोग बड़ा तंग किया करते थे, कभी गृह कार्य देते कभी पी टी कराते, जिससे कभी कभी बच्चों की टोली गुरु जी को ही मंतर सूना देती थी, पंडि जी पंडि जी गुड खाब्यअअ, मारब धनुसिया से उड़ जाबअअ, खैर लड़कपन था, बच्चो को तो भगवान भी माफ कर देते हैं ये तो ठहरे इंसानी गुरु, दूसरे जो माफ न करे तो अगले दिन कुर्सी का कौन सा पाया टूट जाए कुछ पता नहीं, गुरु थे, ज्ञानवान थे, उन्हें अपने शिष्यों की कुशलता का भान था, अतः बिना कुछ कहे माफ कर दते थे. 

जब मै हाईस्कूल में था लगभग सभी विषय में अछ्छा था, सिवाय गणित के,  साप्ताहिक और महिन्वारी टेस्टो में सभी विषयों में उत्तम प्रदर्शन था, लेकिन गणित के पास रेखा के पास जाते जाते मेरी हिम्मत जवाब दे जाती अंतत मै  फेल हो जाता. शुरू में गणित वाले गुरु जी ने सोचा की लड़का ही गदहा है, सो कुछ नहीं बोलते थे. गदहों की कहाँ पूछ भला किसी भी जमाने में? निश्चय ही उनके मन में बड़े नकारत्मक व्यक्तित्व था मेरे पढाई लिखाई को ले के. कद में चार फूट आठ इंच रहें होंगे. कक्षा में जैसे ही प्रवेश करते बच्चे टिंगू जी टिंगू जी करने लगते. कौन बोला ?? गरजते,  लेकिन इतनी दुर्लभ जानकारी कौन दे  ??, सभी एक सुर में बोलते आचार्य जी हम लोग त्रिकोण मिति का पेट नेम रख दिया है टिंगू जी. 

एक दिन उन्होंने मुझे बुलाया, पूछ तुमने मेरा नामकरण किया है?? मै आश्वस्त हूँ की तुमने ही किया है लेकिन फिर भी तुम्हारे मुह से सुनना चाहता हूँ. एक तो तुम पढाई में में कमजोर दूसरे ये सब हरकते?? एक तो तित लौकी दूजा नीम चढ़ा? बिना मेरा जवाब सुने मेरा कान पकड़ प्राचार्य  कक्ष की और चल दिए, मै भी अपने कान के पीछे पीछे चल दिया. 

प्राचार्य कक्ष में हिंदी और समाज शास्त्र, और विज्ञानं  के अध्यापक भी थे, मेरी दयनीय अवस्था देख उन्हें आश्चर्य हुआ, उनको शायद ये पता नहीं था की मेरी ये दयनीय अवस्था गणित में दयनीय होने की वजह से हुई है.  

अरे इसे क्यों पकड़ लाये शास्त्री जी ये तो भला बच्चा है. हिंदी वाले गजानन आचार्य  ने कहा. 
हाँ इसी भले बच्चे ने आपका भी कोई भला नाम रखा होगा, नहीं पता तो आप खुद इसके मुह से सुन लो, चल  रे बता क्या नाम रखा है बाकियों का ?? गणित वाले आचार्य अपने गणित के आधार पे बोलते गए.  एक तो इसका पढाई लिखाई में मन नहीं लगता ऊपर से एक नंबर का शैतान है. 

 मै चुप चाप अपने ऊपर लगाये जा रहे महाभियोग को सुनता रहा, 

उसको जाने दीजिए बात करते हैं, विज्ञान वाले आचर्य जी ने कहा. 
मै चुपचाप अपने कक्षा में चला आया, सहपाठी आँखों से सहानुभूति बरसाने लगे, कान छु के बोले बड़ा गरम हो गया है यार. 

दिन बिता छुट्टी हो गयी, हम सब साईकिल स्टैंड की तरफ जाने लगे, "रुको"  पीछे मुड के देखा तो आचार्य जी की आवाज थी. "आज मै भी तुम्हारे साथ चलूँगा मै भी उधर ही जाता हूँ"   कह के साईकिल मेरी हाथ से छीन मुझे डंडे पे बैठने का इशारा किया.  वास्तव में बताऊ तो मुझे डंडे पे बैठने पर असह्ह्य पीड़ा होती थी, मन मार कर बैठ गया.  भगवान से प्रार्थना करता की देव गुरु जी का घर जल्दी आ जाए और ये मेरा पिंड छोड़े, कही रास्ते में रोक कर पिटाई न कर दे, प्राचार्य कक्ष में मौका न मिला, कसर कही रस्ते में न उतार दे. मन में बड़ा उतार चढ़ाव चल रहा था, इसी अनुभव से आज मै नेताओ के मन की स्थिति का आंकलन लगा सकता हूँ वोटिंग के समय की .   

थोड़ी दूर चले थे की तालाब आ गया जहाँ की दूकान से हम रोज सोमोसे खाया करते थे, समोसे खाने के बाद कुछ देर तालाब के मेढको का हल चाल पूछते फिर घर की और रवाना  होते. सबने अपने पने मेढक छांट रखे थे, पीला बड़ा वाला मेंढक मेरा था, इसी तरह से किसी का गहरे हरे रंग वाला, तो कोई हम दोनों के मेंढक को पसंद करता, जब तक हम लोगो को अपना अपना वाला मेंढक न दिख जाता हम हिलते नहीं थे वहाँ से. खैर उस समय की उम्र शायद मेंढक ही छांटने की होती है, संस्कार वश या कहिये उम्र का तकाजा उस वक्त कुछ और नहीं छांटा जा सकता था.  

गुरु जी भी उसी समोसे वाले से चार समोसे ले के आये, मै चौंका, उस समय तक मै अंगुलिमाल की कहानी पढ़ चूका था, सोचने लगा इनको कौन से बुध्ध मिले आज जो ह्रदय परिवर्तन हो गया. 

अरे घबराओ नहीं समोसे मुझे भी पसंद है, कह मेरी तरफ दो समोसे बढ़ा दिए. मैंने भी मन के डर को समोसे की रिश्वत दे ढांढस बधाया. 

"मैंने आज तुम्हारे सभी विषयो की जांच की, उत्तर पुस्तिका देखि". आधा समोसा मुह में भर के गुरु जी ने कहना शुरू किया.  मुझे लगा की लगता है ईद का बकरा बनाया है, समोसे खिला खिला के कोसेंगे.  

"विज्ञान हिंदी  और अन्य विषयों के अध्यापक ने मुझे झूठा बना डाला, मानने को तैयार ही नहीं की तुम मेरे विषय में कमजोर हो" आगे कहा. 

मैंने एक फिल्म देखि थी जिसमे गुंडा हीरो का की आँख की पट्टी पे आँख बाँध किसी घने जंगल में ले जा के कोई झूठा अपराध कुबूलने को कहता है . मुझे लगा की शायद कल स्कूल में  मुझे भी ये कुबूलना पड़ेगा की मै पढाई में फिसड्डी हूँ. अच्छा बनाया गुरु ने समोसे खिला के. 
बेटा देखो मै अपना अपराध मनाता हूँ जा कक्षा में आज हुआ लेकिन मुहे तुम्हारे बारे में पता न था, जब अन्य लोगो ने तुम्हारे बारे में बताया तो पता चला की तुम सिर्फ गणित में ही कमजोर हो. मान लो यदि तुम हर विषय में प्रथम भी आ गए लेकिन गणित में फेल हो गए तो बोर्ड में तो फेल ही हो जाओगे, बेहतर है की तुम गणित सुधारों. गणित के बिना न तुम बोर्ड पास कर सकते हो न दुनिया दारी. भिन्न भिन्न रूपों में हर जगह गणित का ही बोला है, बिना गणित के कहीं भी गणित नहीं लगती, कल मै तुम्हे रोज दो घंटे शाम को पढाया करूँगा आशा है की तुम अन्य विषयों की तरह गणितबाज भी बन जाओगे. 

अब मै खुश भी था साथ में रोने भी लगा था. उसके अगले दिन से गुरूजी ने निशुल्क मेरी कक्षाए लेनी शुरू कर दी, महीने के अंत में  फीस पूछा तो मना कर दिया.  उनका वास्तविक नाम मुझे याद  नहीं आ रहा, लेकिन उनके लिए आज भी मेरे मन में अपार श्रध्दा है. 

आजकल शायद इसे गुरुवों का अभाव हो गया, या शायद कहीं कहीं होते होंगे .  

सादर 
कमल 

Monday, July 2, 2012

बाल्त्कारी को मुवावजा


राम चंद्र कह गए सिया से, 
एक दिन कलयुग आएगा, 
हँस चुगेगा दाना, 
कौवा मोती खायेगा . 

तुलसीदास कि ये पंक्तिया आज जीवित हो चुकी है. आज  भारत मे अपराधियों को बिरियानी, तालिबानियों को सुरक्षा और बलात्कारियों को मुवावजा दिया जा रहा है, लो और खाओ , और पैसे लो और करते रहो बाल्त्कार पे बालात्कार. 

कोसीकला के उपद्रव पे अभी पानी भी न पड़ पाया था कि कुछ दरिंदों ने प्रतापगढ़ के अस्थाना गावँ को भी अपना शिकार बना लिया. एक नाबालिग हिंदू दलित कि मासूम बच्ची जिसको दुनियादारी क्या होती है अल्लाह पाक के नापाक लोगो ने अपनी हवस का शिकार बना इस्लाम को बदनाम करने कि कड़ी मे एक और नग जोड़ दिया. 

उत्तर प्रदेश के इलाहबाद और लखनऊ के बिच स्थित प्रताप गढ़ में ४ मुसलमानों ने एक कक्षा ४ में पढने वाली ११ साल की छोटी बच्ची का २० जून २०१२ को उसके घर से अपहरण किया गया और ३ दिन तक सामूहिक बलात्कार करने के बाद उस मासूम बच्ची की दर्दनाक रूप से हत्या कर दिया|.

घटना कि जानकारी  मिलते ही  गुस्साई भीड़ ने प्रतिक्रिया स्वरुप जो की  एक नियम है उनके घर जला डाले शायद भीड़ के मन मे फिर भी दया बाकी थी सो जान से नहीं मारा. 

 गांव में गैंगरेप व हत्या के बाद हुए बवाल की आग इतनी बढ़ गई है कि हालात बहुत नाजुक होते जा रहे हैं। सरकार भले ही हालात सुधारने का प्रयास कर रही है, लेकिन अपने सामने जलते घर देखने वाली खाकी रात में लोगों पर कहर बरपा रही है। नामजद हुए लोगों के अलावा उधर से निकलने वाले लोगों को भी पकड़कर अज्ञात में नाम बढ़ा दे रही है। अस्थान गांव के समीप स्थित राजा का पुरवा, कड़रौ, गोलहन का पुरवा, अब्दुल वाहिद गंज, दयामऊ, अदलाबाद समेत कई गांवों के लोग वर्तमान में घर छोड़कर फरार हैं। कुछ रिश्तेदारों के यहां तो कुछ बागों, जंगलों में शरण लिए हैं। कब कौन घर आता है और कौन जाता है, इसके संबंध में परिजनों तक को पता नहीं होता। चप्पे-चप्पे पर लगी पीएसी और पुलिस भले ही लोगों की सुरक्षा का दावा कर रही है लेकिन हकीकत कुछ और ही है। दिनभर सुरक्षा के नाम पर तैनात पुलिस रात होते ही कहर ढाने लगती है। पुलिस की दहशत लोगों के चेहरे पर साफ देखी जा सकती है। गांव में मौजूद महिलाएं तो पुलिस की करतूत बताते-बताते फफक पड़ती हैं, लेकिन शायद उनका रोना किसी को नहीं दिख रहा है।

उपद्रव के बाद पहुचें समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने बाल्त्कारियों के परिजनों को ५०-५० हजार का मुवावजा देने कि घोषणा की. सबसे चौकाने वाली बात ये कि जो इस्लाम जो बाल्त्कार को नापाक मानता है, के धर्मगुरु इमाम बुखारी बाल्त्कारियों के लिए मुवावजे कि मांग कर अति कर दिया बजाय कि बालात्कारियों को सजा दिलवाए. सरकार भी वोट बैंक कि राजनीति मे साथ पूरी तरह उन बालात्कारियों का सहयोग कर रही है.

  यही है इस्लाम ??? यही है मोहम्मद का रास्ता ??? यही है कुरआन का प्रकाश ???  यही है इस्लाम का मतलब ?? यही है जन्नत पाने का रास्ता ??

कुछ लोग कहते हैं कि संघ और कट्टर वादी हिंदू समाज मे जहर घोलने का काम कर रहे हैं, तो मै मुसलमान भाईयों से पूछना चाहूँगा कि बालात्कार और दंगे कि शुरुवात कर इस्लामी क्यों संघियो और कट्टरवादियों इसका  को प्रमाण पत्र देते हैं कि वो जो कह रहे हैं वो वास्तव मे सच है. क्या  बालात्कार और दंगे कि शुरुवात करना भाईचारा बढ़ाना है ??? वास्तविक बात ये है की जहर घोलने का कुकृत्य कुछ विकृत मानसिकता वाले मुसलमानो को  ही करते देखा गया हमेशा.  चाहे गोधरा हो या कोसीकला  या अब प्रतापगढ़ यदि इन सब घटनाओं को जोड़कर देखा जाए तो हर जगह शुरुवात मुसलमानों ने ही की, प्रतिक्रिया स्वरुप हिन्दुओ ने जब जवाब दिया तो हर जगह शाशन कि मार  झेलनी पड़ी और हत्यारों, बाल्त्कारियों को मुवावजा और सहयोग.
  
मै सारे मुसलमानो भाईयों से अपील करता हूँ, इस प्रकार के कुकर्म छोड़ ईश्वर का रास्ता अपनाए, बाल्त्कारियो  को ढूंढ उन्हें सजा दिलाने मे प्रयास करे ये समय धर्म मे पदाने का नहीं है, इंसानियत मे पडने का है.

शायाद  सरकार ने भी  बलात्कार और हत्यायो को बढ़ावा देना अपनी योजनावो मे शामिल कर रखा है ??? 
शायद यही है कलियुग..

Sunday, July 1, 2012

कोल्हू के बैलों का पत्र एन बी टी संपादक के नाम


सेवा मे , (फ्री मे ) 
संपादक महोदय, (जो भी हों समझ जाए ) 
नवभारत टाईम्स, (कोल्हू-फ्री सेवा सेक्शन) 

विषय : पूरा पत्र पढ़िए समझ आ जाएगा, 

प्रिय संपादक महोदय, 

आपको ज्ञात हो कि आज श्री अपलम चपलम जी के  "आ बैल मुझे मार" नामक फतवे के अनुसार उनके निवास स्थान कीर्तिनगर मे  बैलों कि सभा  सफलता पूर्वक संपन्न  हुयी. 

बैलो कि सभा कि अध्यक्षता का जोखिम स्वामी श्री चंद्र मौली जी ने उठाया,  और दक्षता पूर्वक  बिना किसी स्व क्षति के निभाया. 

कुछ देर इधर हुंकारने के बाद नाद लगने कि पारी आई, जिसका बंदोबस्त अपलम जी के गृहमंत्रालय ने दक्षता पूर्वक निभाया, दबा के  स्वादिष्ट मध्यान भोजन के बाद आज पता लगा कि बैलो कि भी आत्मा होती है.  मुह से तो कहने मे अशिष्टता लगती थी लेकिन मन ही मन अपलम जी ने लाखो साधुवाद पाया, बैल भी साधुवाद देते हैं कभी कभी यदि उनकी आत्मा तृप्त हो जाए तो ... 

इसी कड़ी मे  यहाँ उपस्थित सारे बैलो ने आपको भी साधोवाद देने का दृण संकल्प लिया है, संपादक के केस मे आम तौर पर कोई भी बैल किसी संपादक को साधुवाद नहीं देता,, जब तक वो आदमी न हो जाए.

अब आपकी ये नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि आप हमें बैल से आदमी  बनाए,  कैसे ?? बड़ा  आसान सा तरीका है, आप जब तक अपने ब्लॉग के हम ब्लोगर को बैल बना के फ्री कि सेवायें लेते रहेंगे तब तक आपको हमारा दुर्लभ साधुवाद मिलना मुश्किल है. 

आजादी से पहले अंग्रेज पुरे हिंदुस्तानियों को अंग्रेजो का बैल मानते थे, अपने अपने हिसाब से उनको आकृष्ट कर अपने कोल्हू मे जोत देते थे, कृपया आप उस परम्परा पे न चले.बड़ा आभार होगा.

कभी कभी लगता है आपने वेदव्यास जी के गीता के श्लोक का गलत मतलब निकाल लिया है "कर्मन्येवाधिकारस्त ,मा फलेसु कदाचन " एसी लाइन तो बैलो के लिए ही इस्तमाल कि जा सकती है, कोल्हू मे जुतते रहो आदमी बनने कि इक्षा मत करो ..  

यहांके बैल बड़े विचित्र किस्म के हैं, आपके आकर्षण भी विचित्र है, हम खुद ही बैल बनने चले आते हैं, उस पर भी मेहनत कब और कैसे करनी है आप निर्धारित करते हैं ये बैलो के साथ अन्याय है. ये कुछ इसी तरह से लगता अहि  जैसे हिन्दुस्तानी विदेश नौकरी कोझते जाता है, उनकी सेवा भी करता और और उनकी आँखे भी देखता है, आशा ही नहीं पूरा विश्वाश है कि आप इसका संज्ञान लेंगे. बदले मे आप चाहे तो स्वामी जी के आश्रम मे  योगा क्लासेस ले सकते है बिना शुल्क के. हम तो मख्खन पानी लगा के अपना रास्ता साफ़ कर आये.  

हमारी समस्यायों पे गौर कर हमें बैल  से आदमी बनाने कि कृपा करे, बड़ा आभार होगा.. 

सादर , 
बैल समाज 
स्वामी चंद्र मौली ( पैट्रन, सम्पूर्ण क्रांति - अब होने वाली है ) 
अपलम जी ( अध्यक्ष, अपलम चपलम कि डायरी - सब कुछ नोट हो रहा है) 
केशव ( आक्रोशित मन- आदमी बनाओ नहीं आक्रोशित मन कुछ भी कर सकता है) 
विजय बाल्यान जी ( दिल कि बात - जो आज कह दी ) 
कमल कुमार सिंह, ( नारद-सन्देश वाहक  ) 

चेतावनी : बैल भी कभी चेतावनी देते हैं ??? 

नोट : ऊपर लिखी बाते बस हास्य विनोद के लिए हैं, हमे पहले ही पता है संपादक ह्रदय विहीन होते हैं, कृपया गंभीर न हो, यदि  हो जाए तो आपसा दयावान पूरी पृथ्वी पे नहीं )