विंध्य के वासी उदासी तपोव्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे
गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भे मुनिवृंद सुखारे।
ह्वै हैं सिला सब चंद्रमुखी, परसे पद मंजुल कंज तिहारे,
कीन्हीं भली रघुनायक जू जो कृपा करि कानन को पगु धारे!!
अर्थात - रामचंद्र जी विंध्य पर्वत पे आ रहे हैं , सुन सारे तपस्वी प्रस्सन्न हो गए ये सोच के की जब प्रभु एक पत्थर को नारी बना सकते ( शायद उस समय इंडिया टी वी रहा होगा जो राम वनवास का लाईव दिखा रहा होगा उन मुनियों को भी ) है तो यहाँ तो सब पत्थर ही पत्थर है . कौन जाने हम योगियों की भी चांदी हो जाये इस निर्जन वन में !!
ये कविता मैंने यू पी बोर्ड के हाई स्कूल में पढ़ी थी , भगवान जाने तुलसीदास ने ये वाली कविता क्यों लिखी , जबकि वो खुद भुक्तभोगी थे , पत्नी पीड़ित थे , फिर भी , !!शायद उनमे बदले की भावना आ गयी होगी , की "हम बर्बाद हुए तो क्या सनम सबको ले डूबेंगे"" .
उनको ये न समझ में की रामचंद्र जी नारी बनाने की फैक्ट्री नहीं थे , ऐसा होता तो क्या अपने लिए न बना लेते सीता जी के धरती में समां जाने के बाद ???, लेकिन नहीं बनाया ,
वास्तविक बात ये है की वो खुद भी पीड़ित थे सीता जी से कभी हिरन मांगती थी सोने का तो कभी कुछ ! दम कर दिया था एकदम से , सोचा चलो इसी बहाने जान छूटा , चुकी मर्यादा पुरुष थे , तो रोना धोना तो दिखाना ही होगा दुनिया को , ( होयिहे वही जो राम रूचि राखा)
अस्तु अस्तु , ये तो हुई तुलसी जी और प्रभु राम चंद्र जी की बात ,
आईये अब हम अपने एक मित्र की बात बताते है, कहने के लिए वो लेखक है, -
आईये अब हम अपने एक मित्र की बात बताते है, कहने के लिए वो लेखक है, -
मित्र कहींन :-
सुबह सुबह जब लिखने लगा तो पहली वाणी " सुनो डोसा खाना हो तो उडद की डाल लेते आओ " मै समझ गया की आज श्रीमती को डोसा खाने का मन है .
मेरा मन किया की मना कर दूँ की नहीं खाना है , लेकिन पिछला इतवार याद आ गया , जब मुझे बाहर जा के खाना पड़ा था .
खैर , वापस आ के दुबारा शुरूं किया तभी आवाज आयी , मम्मी दूध लेन के लिए कह रही हैं , जब माता जी से पूछ तो उन्होंने कहा नहीं , खैर मन मसोस के वो भी आ गया ,
फिर बैठा , फिर आवाज आयी , जो कर रहे हो जल्दी से निपटा लो , और जाओ टिकट ले आओ , सबको सिनेमा जाना है .'
. मै चुपचाप उठा अपने यंत्र ले के , और पार्क में बैठ गया सोचा जब वापस जाऊंगा तो बोल दूँगा की सीट फूल थी ..... तभी फोन आ गया , और मुझे अपने आप पे गुस्सा की ये मोबाइल तो घर ही छोड़ना था मुझे ,
बोला "आये क्यों नहीं अभी तक" ?? मैने योजनानुसार अपनी बात कह दी ! आवाज आयी , शाम की लेते आओ न,
मेरा दिल रो के रह गया अबकी बार , मरता क्या न करता ???
घर वापस आया , डिमांड पूरी करके , फिर शुरू किया लिखना ,
बोलीं - मम्मी का फोन आया था मेरे , जरा तुमसे बात करनी थी उनको , अभी फोन कर लो ,
"अभी कुछ कर रहा हूँ" मैंने कहा इतना सुनते ही
" बड़ा गोलमेज सम्मलेन कर रहे हो , बाद में कर लोगे तो भारत जीत नहीं जायेगा मैच में .आप मेरे मा पिता जी की इज्जत नहीं करते हो , कही ऐसा भी होता है क्या ?? पिछली बार भी आप मेरे फूफा के मौसे के साली के बहन से भी बात नहीं किया था, पता नहीं क्या समझते हैं अपने आप को, आपके किसी का ....................
( इसके बाद के शब्द मै सुन नहीं पाया था , कान में रुई भर ली थी )
" उफ्फ्फ" ( मन में - सामने तो उफ़ तक न किया जाता )
खैर चलो ये भी हुआ , अब हो गयी शाम , तय शुदा प्रोग्राम के तहत सिनेमा देख के वापस आ गया .
ये तो रही मेरी बात , अब आपको एक मेरे मित्र सुरेश की बात बताता हूँ , सुना है पिछले सप्ताह वो गूंगा और बहरा हो गया है . उसको देखने गया उसके घर , इशारे से हाथ हिला के पूछा ये क्या हुआ ??? उसके शकल से लगा की वो खुश है, गूंगा- बहरा बन के, मैंने कहा यार तुम पहले इंसान हो जो गूंगा बहरा बन के भी खुश है, भला ये क्यों ??? उसने इशारे से इशारा किया, ऊँगली को तरफ देखा तो वो भाभी जी की तरफ इशारा कर रहा था जो किसी से बात करने में मशगुल थी .
मैंने कहा भाई ऐसा क्या हुआ की सब खो बैठे , हमें भी बताओ , वो मुस्कराया , तभी भाभी जी आयीं , और सुरेश को कागज का टुकड़ा पकड़ा कही बाहर चल दी शायद किसी पडोसी के घर !
पुर्जे में लिखा था , "शाम को शोपिंग चलेंगे" ! अब समझ में आया की इनकी स्तिथि और भी खराब थी .
मैंने उससे हसंते हुए कहा , गूंगा , बहरा तो हो गया , लगे हाथ यादाश्त भी खो देता , कम से कम पढ़ना तो न पडता .
" अगले हफ्ते वो भी खोने वाला हूँ " वो बोला , मै चौंक पड़ा ... यानि सब नाटक है ???
बोला "तू भी कर ले , दो चार महीने तो ढंग से रहेगा "
" यार जब से शादी हुई है मै किसी दोस्त के घर नहीं जा पाता, पार्टी तो मै आजकल बस सपने में ही करता हूँ , किसी का फोन आने पे फालो अप शुरू हो जाता है, और दुनिया भर का क्लारिफिकेशन, न्यूज देखे महीने हो गया, मज़बूरी में सास बहु देखना पडता है, हर शाम घुमाने पार्क न जाओ तो रात दूभर, हफ्ते में शोपिंग न जाओ तो हफ्ता दूभर, महीने नयी जगह न ले जाओ तो महीना दूभर, हे भगवान कोई "अन्डू " का या कंट्रोल जेड का बटन लाईफ में भी दे दो " वो तब तक बोलता गया ,जब तक मेरी भी आँख में आंसू न आ गए .
मै उसके मन की अवस्था को समझ रहा था , आखिर " जाके पावँ फटे बिवाई , वही जाने है पीर परायी " .
भारी मन से वापस लौटने लगा , तभी एक कार वाले ने टक्कर मार दी !! होश आया तो अस्पताल में पाया श्रीमती बैठी थी खुश हो के कहा , " भगवान का लाख लाख शुक्र है , चलो दो दिन बाद सही होश में तो आये , मैंने मन्नत मांग ली थी , की आप होश में आ जाओगे तो अगले महीने तिरुपति बालाजी चलेंगे "
और मै दुबारा बेहोश हो गया .
मित्र मेरी सहानुभूति है आपके साथ ............
मित्र मेरी सहानुभूति है आपके साथ ............
कमल
१८ / ०९/ २०११