नारद: June 2014

Wednesday, June 25, 2014

वर्कशॉप


स्वर्ग का अमरावती, कर्नाटक का हम्प्पी, और और ज्ञान का केंद्र ब एच यू को मिला के जो स्पेसिमेन कोपी बनेगा वो है गंगा के किनारे स्थित स्थित सामने घाट पर “ज्ञान प्रवाह”. 
भारत के इतिहास, कला का का औटोनमस् रिसर्च सेंटर. बेहद खूबसूरत. ओह्ह्ह, इतना खूबसूरत मुझे बी एच यु भी कभी नहीं लगा. 

नाथद्वारा पेंटिंग मे उदयपुर के प्रसिध्द चित्रकार राजाराम जी का वर्कशॉप था, और मै उत्सुक था. खड़ा था ब एच यू के गेट पर सुबह ९ बजे से, उन दिनों मैंने हॉस्टल मे ही रुकना सीख लिया था, हलाकि मै डे स्कालर था. गाडी ठीक समय पर आई सारे अनजान लड़के लड़किया बैठ गए. सभी के नजर चोर थे. एक बात खास थी की वो सारे ललित कला संकाय से थे और मै पर्यटन प्रबंधन का एकलौता छात्र. 

इस वर्क शॉप को करने के लिए मैंने बी एफ ए के प्रोफ़ेसर की स्पेशल सिफारिश की थी, नाम याद नहीं आ रहा उनका. वो भी पता नहीं क्या समझके मेरा नाम दे दिया “हम्म्म्म, पता नहीं क्यों मुझे लगता है की तुम्हे इस वर्क शॉप मे जाना दिया जाना चाहिए” कह कर मेरे फार्म पर साइन कर दिया.
तरह तरह के चित्रकार थे वहाँ जो नाथ्दारा स्टाईल सीखना चाहते थे, मै उनमे अपने आप को कही नहीं पा रहा था. वहाँ सभी एक दूसरे को जानते थे, सिर्फ मै था जिसे बस उसके ब्रश जानते थे.

“आप बी एफ ए के तो नहीं हो” एक लड़की ने मुझसे सवाल किया. 

मैंने सर हिला दिया, गजब का शर्मीला था मै उन दिनों, काँटा (असलि नाम- कांता) मुझे आज देख ले तो शायद वो विश्वाश न करे की ये मै ही हू. हालाकि आज भी मै खूब बोलता हू तो बस खास लोगो के साथ. 

“वोकल कार्ड खराब है क्या” – उसने कमेन्ट किया. 

मै फिर मुस्करा दिया बिना जवाब दिय्ये, जिससे शायद वो जल भून गयी होगी. 

कई दिन तक मै यू ही चुप रहा- स्वभावत: , बस गुरु राजा राम की अगुआई मे सीखता रहा. 
हाँ कभी कभी डाईरेक्टर प्रोफेसर आर सी शर्मा हमलोगों का हाल चाल ले जाते ( वो एक मूर्धन्य ग्यानी माने जाते है आज भी कला और इतिहास के, भारत कला भवन के डाईरेक्टर भी रहे वो- आज हमारे बीच नहीं है).

“यार तुम्हारा चेहरा जाना पहचाना सा लगता है”, अचानक एक दिन मैंने एक लड़के से मैंने पूछा, और शायद उस दिन पहली बार मेरी आवाज किसी ने उस वर्क शॉप मे किसी ने सुनी थी.

“पिछले जन्म मे तुम्हारा जीजा था” कह के वो हसने लगा, और मै कुढ़ गया. बेटा अब तो तू गया , पिटेगा तू ( मै शरीफ और शर्मीला था – कमजोर नहीं, और मै बनारस का ही हू तो जादा समस्या नहीं थी मुझे ये सब सांस्कृतिक कार्यकर्म का आयोजन करवाने मे) . 

ज्ञान प्रवाह की गाडी बी एच यू गेट पर छोड़ गयी. और मेरे दोस्त आ चुके थे, उनमे कुछ इंजीनयर थे, कुछ डाक्टर (सब आधा – यानी छात्र), कुछ उबन्तु शुध्ध बिरलाइट्स उस तथाकतित जीजा को पकड लिया, तो वो घबरा गया, उसे सपने मे भी गुमान नहीं था, की मेरे जैसा लौंडा की कोई बात भी सुनेगा. 

“महाराज जरा मटन बनाना” एक मटन को धोने के बाद दूसरा खायेंगे. बिरला होस्टल के मेस मे उसको पटक के किसी ने खानसामा से आवाज लगाई थी. उसका चेहरा फक पड़ चूका था, उसे नहीं समझ आ रहा था की उसे क्या क्या करना चाहिए या कहना चाहिए, क्योकि गलत तो वो कह चूका था. 
“भोसड़ी के तुम्हारा नाम क्या है ? “ एक एम् बी बी एस ३र्द इयर के लौंडे ने पूछा, जाहिर सी बात है की मेरे टोली का था.

“रामधनी” उसने रोवासा चेहरा बना के कहा. अब सच मे मुझे भी उस पर दया आने लगी थी. कलाकार का दिल कोमल होता है. . 

“कहा के रहने वाले हो ?” फिलोसफी के लड़के ने कुहनी मारी. 

“खमरिया – भदोही” – अब तक वो रो चूका था बस आँख मे आसूं नहीं थे. 
इतना सुनते ही मेरा पारा ठंडा हो गया.

वो इसलिए की वहाँ के ही कोलेज से मैंने दसवी की थी. रामधनी मेरे कान मे ये नाम दुबारा कौंधा, इस लडके के बारे मे ये कहा जाता था, की उस उम्र मे (जब वो ८ वि मे था) किसी का भी चेहरा देख कर दिन भर का कोमिक्स बना डालता था, ये नाम मैंने सुना था. 

अबे क्या हुआ ? – मेरे एक दोस्त ने मुझे सर पे हाथ रखे देख पूछा,

छोड़ यार इसको तुमलोग, मै बात करता हू. मैंने कहा. पता नहीं क्यों मुझे लगा की ये वही है जिसके बारे मे मै उस समय सुन चूका हू. 

अभी तक श्योर नहीं था मै, - कहा से पढे हो ? 

शहीद नरेश विद्या मंदिर . उसने जवाब दिया. 
हाँ ये पक्का वही है, बी एफ ए मे भी है, खमरिया का है, शाहिद नरेश से भी पढ़ा है. ये वही है. 

राहुल को जानते हो ? अमरनाथ को , मैंने एक साथ पूछा .

हाँ – उसने कहा . 

हाँ ये वही था . 

यार तुम चित्रकार आदमी ऐसी बदतमीजी करते है ? मैंने कहा . तब तक हमारा मटन आ चूका था, 

अरे यार इसका भी प्लेट लगवावो , हमारा गुरु भाई है . मेरे सारे दोस्त मेरा चेहरा देखने लगे थे. 

दूसरे दिन से हम ज्ञान प्रवाह साथ जाने लगे थे. अब हम अच्छे दोस्त थे. काई सालो तक दोस्ती रही. 

मै देल्ही आ गया, बनारस जाता रहा जब तक ओ डिपार्टमेंट मे रहा, मै जब भी बनारस जाता फैकल्टी आफ विजुअल आर्ट मेरा अड्डा रहा, हलाकि अपने डिपार्टमेंट कभी नहीं गया. जब भी जाता उसके साथ एक पेंटिंग जरूर बनाता . उसके बाद वो पुणे चला गया. 

अंतिम, समय मेरी उससे बात सन २०११ मे हुई, हाय हेल्लो हुआ , फिर उसने एक लड़की से भी बात कराई संभवतः वो उसकी गर्लफ्रेंड होगी. 

फिर मै अपने कामो मे व्यस्त हो गया. एक बार उसके नम्बर पर फोन किया तो “सेवा मे नहीं है “ की आवाज आई. मुझे लगा वो खुद मुझसे संपर्क करेगा. लेकिन उसने नहीं किया. 

कुछ दिनों बाद फेसबुक पे मुझे श्याम मिला, अब वो एन आई डी- अहमदाबाद मे था, “यार रामधनी का नंबर नहीं मिल रहा” मैंने उसे मसेज किया. 

“HE IS NO MORE” FLU ATTACKED HIM “ – उसने जवाब दिया और मेरी साँस अटक गयी. हाथ से ग्लास छूट गया. जितना पिया था अब वो आँख से बाहर आ रहा था,. ओह्ह . 

आज बरबस सब कुछ याद आ गया, जब मकान शिफ्ट करने के चक्कर मे उस वर्कशॉप का सर्टिफिकेट हाथ आया. 

और दोस्त तुम याद आ गए, ये फोटो मुझे कभी नहीं भूलती, तुमने जबरजस्ती करके मेरी ये एक्शिबिशन लगवायी थी. 

कमल

Tuesday, June 24, 2014

नौजवानों का चिंतात्मक शौक

नौजवानों ने अपने दिल को लुभाने के लिए नया नया शौक अपनाया, कभी सर के बाल खड़े कर झाड़ना मानो चिड़िया चुग गयी खेत, कभी सर पर भारत का नक्शा, कभी अपनी नयी मोर्डन लंगोट का ब्रांड स्ट्रिप पेंट से ऊपर दिखाना, कभी कण छिदाना मानो “नारी पुरुष सामान है” के आन्दोलन कारी, कभी कोलेज की लड़की पटाना तो कभी कोलेज की टीचर (विपरीत लिंगी अपने हिसाब से सब कुछ विपरीत कर लें), कभी सर तोडना, और मौका मिल जाय छिनैती करना.

खैर नौजावानो के के पास काफी समय है, नए नए शौक बना सकते है उसको पूरा करने के के लिए समय साधन खर्च कर सके है, दिमाग लड़ा सकते है. हैसियत हो समाज लडवा सकते है.

इसी चक्कर में एक नौजवान लगा है की उसे देश की चिंता करना जरुरी है, नहि करेगा तो देश अब बिका या तब बिका, ये नौजवान चिंता न करे तो देश किसी मंडी में बिक जाएगा, चिंता करना जरुरी है आखिर देश के नौजवान है, लेकिन ये नौजवान देश बिकने की चिंता में घुले जा रहा वो खुद बिकने की कगार है. ये नौजवान पनवाड़ी की दूकान से उधारी की सिगरेट मुह में लगा धुएं के गोल छल्ले जब ऊपर की और छोड़ता है तो उसे इस पुरे गोल पृथ्वी की भी चिंता हो जाती है. ओह्ह ये धरती, प्यारी धरती, वसुधैव कुटुम्बकम, दुसरे देशो में हुए युध्ध माहौल खराब कर रही है, इसका असर हमारे देश होगा या नहीं होगा? वो अपने जेब एक मात्र पड़े सिक्के को उछलता है, फिर तय करता है की पहले देश की चिंता की या विश्व की?

मेरा देश, हाय देश, बिक जाएगा, क्या होगा इसका, ये उधार की बीडी पि चिंता न करेंगे तो कौन करेगा? इसी चिन्तालय में वो पनवाड़ी से दूसरा उधार की सिगरेट मांगता है, पनवाड़ी मना कर देता, अब ये एक नयी चिंता ओह्ह बिना इसके देश की चिंता कैसे करू? कैसा छुद्र आदमी है, देश बिक रहा है और इसको अपने धंधे की पढ़ी है, ओह्ह्ह, क्या होगा मेरे देश का भविष्य, जब ऐसे ऐसे ग्रास रूट लेवल के पनवाड़ी न समझेंगे. फिर वो पनवाड़ी को देश के बारे में बताता है, पनवाड़ी मुस्कराता हुआ, तगादे के साथ एक और सिगरेट पकड़ता है, लो जी पार हुआ चिंता का पहला पडाव, फिलहाल देश की चिंता करने के लिए हुयी सिगरेट की चिंता का निदान हुआ, अब पनवाड़ी उसे अपना दोस्त लगता है, जो कुछ देर पहले छुद्र लग रहा था.

फिर वो उससे देश के बारे में बात करने लगता है. उफ़ देश को बिकने से कैसे रोकू, चलो उस मंडी को ख़त्म कर दें जिसमे ये देश बिकेगा, फिर वो उस मंडी को खोजने की चिंता में घुल जाता है, कहा है ये मंडी? किधर मिलगा? दिल्ली आजाद मार्केट या बनारस का चनुवा सट्टी, कौन लेके जाएगा बेचने? ये एक नयी आफत? ये कौन को कैसे ढूँढा जाय? किस रास्ते से जाएगा. कौन सी गाडी पे? या लम्बी करियर वाली सायकिल पे? ये एक नयी चिंता.

कौन सी कृतघ्न कम्पनी ऐसे वाहन बना सकती है? दुष्ट कम्पनी? कम से कम ऐसे लोगो के हाथो में अपना वाहन तो न देती, पहचान करना भी जरुरी नहीं समझती? उफ्फ्फ ये दुष्ट कम्पनिया, क्या किया जाय इनका? ये एक नयी चिंता.

सुनो इस कम्पनी को ही जला दिया जाय, फिर देखते है वो कैसे बेचता ऐसे लोगो को अपना साधन जो देश बेचते है. उसका दूसरा सिगरेट भी खतम होने वाला है. वो वापिस अपने जड़ चिंता में लौटता है, अबकी उसको पता है की पनवाड़ी जादा कृतघ्न है, देश की चिंता के लिए उसे सामन भी मुहैया न करवाएगा.

कहाँ मर गया ये दिनेश, आज पैसे देने वाला था? साले ये एन टाइम पे धोखा दे जाते है, इनको नहीं मालुम की देश की चिंता के लिए कितने साधन की जरुरत होती है, सीने में आग जलानी पड़ती है, गला तर करना पड़ता है, साले ये आजकल के नौजवान भी न बस यु ही है, ठीक टाइम पे उधार भी नहीं दे सकते, लानत है इनकी जिंदगी पर जो एक देश भक्त को उधार देने की भी हैसियत नहीं रखते.

तभी उसके मोबाईल की घंटी बजती है.वो ख़ुशी से हकलाता हुआ “एस डार्लिंग कहा हो? हाँ मिलते हैं न, अरे वही कालेज वाले गार्डन में”. 
अब उसके पास एक नयी चिंता है, गार्डेन में एक सहूलियत वाली जगह ढूढने की.


सादर 
कमल कुमार सिंह 

Sunday, June 22, 2014

ईराकी -इस्लामी आतंकवाद और भारत पे प्रभाव


ईराक में जो खुनी खेल चल रहा है उसका तो अल्लाह ही मालिक है, वो मालिक इसलिए की सारा खेल ही उसी के नाम पर हो रहा है, इस्लाम.जिसकी वजह से लिबरल मुस्लिम पूरी दुनिया में शर्मशार होते है, और दुसरे सम्प्रदाय के कट्टरपंथियों का निशाना.
  
पहले ये जान ले की ईराक में क्या हो रहा है और क्यों हो रहा हैतो सीधा सीधा वो कह रहे है की "इस्लामिक राज्य" पत्रकार या मिडिया इसके पीछे अमेरिका का हाथ बताते नहीं थकते, अगला जोर जोर पुरे गले फाड़ कर कह रहा की वो ये सब इस्लाम के लिए कर रहा लेकिन कमाल है किस वहाशियाने ढंग से "अमेरका छाप" दलील द्वारा डिफेंड किया जा रहा है की दिमाग फेल हो जाए. लेकिन ध्यान दें अमेरका क्या सरोकारसद्दाम को ख़त्म कर उसने अपनी ताकत दिखा दी थीईराक में वर्तमान सरकार रहे या इन सुन्नियो की फिर भी अमेरिका को तेल की की कोई चिंता नहीं उसके लिए तो सब बराबर है यदि हम इस "अमेरिका छाप" दलील माने तो. इसलिए उसने दखल देने से फिलहाल हाथ खड़ा कर लिया है, उसे अच्छी तरह मालुम है की दो बंदरो के बीच के लड़ाई में उसे नहीं पड़ना है बल्कि फायदा उठाना है. कुछ मुस्लिम ये भी दम भरते है की बराक हुसैन मुस्लिमान है, फिर जब भी कहीं विश्व में कुछ भी मुस्लिम में खिलाफ हो तब भी बड़ी चालाकी से अमेरिका के मथ्थे चढ़ा दिया जाता है. मुस्लिमान अपने फेवर में ओबामा का चरित्र (मुस्लिम होंना) जैसे चाहे बताते है, मुस्लिम ताकत दिखानी हो तो वो भी मुसलमान है, और जब बिना कारन इस्लाम के नाम पर लड़ाई हो तो तो वो इस्लाम का दुश्मन है.

चलो मान लेता हु इसके पीछे अमेरिका का हाथ है, तो फिर बर्मा में क्या हो रहा है? श्रीलंका? वहां अमेरिका का क्या हित हो सकता है? ये तो छोडिये जनाब पकिस्तान और अफगानिस्तान पर नज़ारे इन्यायत कीजिये. हिन्दुस्तान में मोदी और विश्व में अमेरिका को मीडिया/पत्रकार? ने कुछ इस तरह का गढ़ा है मानो मोम के हो, जहाँ चाहे थोडा सा गरम कर फिट कर दो.शुक्र मनाईये दोनों ही अपनी अपनी जगह मजबूत है नहीं तो पता नहीं दोनों का इस्लामिस्ट क्या कर बैठते.

भारत में भी मुलमानो का पर्सनल ला अलग है? तो जरा ये बताएं की ये इस्लाम के नाम पर है की इसके पीछे भी अमेरिका का हाथ हैजब इसके पीछे अमेरिका नहीं तो कहीं भी कुछ भी हो मुह उठा के अमेरिका वाले दिशा में थूक देने से सच्चाई तो नहीं बदलेगी न? कुछ अधिकार चाहिए किसी भे देश के कानून से अलग तो इस्लाम की वजह से, और इस्लामी कहीं कुछ उत्पात करे तो अमेरिका की गोद है न, फेंक दो गलती? गजब का तर्क है यार.

चलो मान लिया की इसके पीछे अमेरिका है, तो उसका सिक्का बस इस्लामी देशो में ही क्यों चलता है ? सोवयत के पास भी अब तेल के बड़े भण्डार है, साथ कुछ अन्य यूरोपियन देशो के पास भी उनके तेलों में क्या कीड़े पड़े हैनहीं, अमेरिका को अच्छी तरह मालुम है की कौन से धर्म के नाम पर किसको आसानी से भडकाया जा सकता है.

चलो जी अब कुछ कह रहे है ये सत्ता की लड़ाई है. जी हाँ, इस्लाम का उद्देश्य ही क्या है फिर?मोहम्मद साहब के बाद इस्लाम का दुरुपुयोग बस सत्ता के लिए ही किया गयायहाँ तक की इस्लाम के नाम पर उनके पुरे परिवार की हत्या कर दी गयी ताकि सत्ता हथियाया जा सके. हर जगह हर तरफ, पुरे विश्व में.

बेवजह अमेरिका, सऊदी अरब या ईराक के सुन्नियों को दोष क्यूँ दें, सीरिया में तो 2 लाख से ज्यादा मुसलमान मरा है , वहां इस नरसंहार का दोष शियाओं पर था. जहाँ जिसका दाव लगा उसने सामने वाले को  मार दिया पर एक बात पक्की है , जिसने भी मारा मारा इस्लाम के नाम पर, जेहाद के नाम पर,  न सुन्नी, न शिया और न वहाबी, इन सभी हत्याओं का दोष जिहाद पर है, इस्लाम पर है.

क्या इन सब का भारत पर प्रभाव पढ़ेगा? क्या यहाँ भी कुछ सुगबुगाहट होगीजबकि आई एस ई एस के लोगो ने विडिओ बना भारत के मुसलमानों का भी आव्हाहन किया है. क्या यहाँ कोई/ कोई संघटन उनके साथ हो के भारत के खिलाफ जेहाद छेड़ने की तयारी कर सकता हैध्यान रहे हमारे यहाँ सिमी जैसे प्रतिबंधित संघठन भी है, और एक पुराना  तथा वर्तमान इतिहास भी.

क्यों की इस्लाम को मानने वाले पुरे विश्व में है जैसा की हर मुस्लिम ८६ इंच का सीना तान के कहता है लेकिन पुरे विश्व को देखिये क्या हो रहा है वहां. मुझे बड़ा अजीब लगता है जब भारत में भी मुस्लिम कहते हैं "हम पुरे विश्व में है"  तो जब भी कहीं पुरे विश्व में इराकी घटना हो तो आपसे क्यों न जोड़ा जाए ? फिर ये कहाँ कहाँ तक जायज है की ये हिन्दुस्तान है यहाँ ऐसा कुछ नहीं हो सकता ? जबकि हुआ है, कश्मीर में कश्मीरी सेना बस इसीलिए पाकिस्तानियों से मिल गयी थी की वो मुसलमान थे, और ठीक यही ईराक मे हो रहा है, सुन्नी समुदाय इन इस्लामी आतंकियों के साथ इसलिए हो गया है की ये इस्लामी आतंकवादी सुन्नी है. चलिए जी माना सत्ता की लड़ाई है, तो ये जो आम इराकी सुन्नी इन इस्लामी आतंकियों के साथ मिल रहे उन्हें तो सत्ता का भागीदार बनाने से रहे ये इस्लामी आक्रमणकारी ? तो फिर ?? तो जाहिर ये बस इस एहसास के उनके साथ है की वो इनके जमात के हैं. नहीं तो १० -२० हजार के इस्लामी दहशत गर्द किसी भी देश को बंदी बना लें ये असम्भव है, जब तक वहां की अवाम साथ न हो. 

जब भी कहा जाता है भारत में इस्लाम तलवार के बल पर फैला तो मुस्लिम तिलमिला जाते है अरे मानिए न की सत्ता की लड़ाई थी मुस्लिमो दवारा न की इस्लाम के लिए, तो साहब खरबूजा चाक़ू पे गिरे या चाक़ू खरबूजे पर कटता खरबूजा ही है. इस्लाम को कुछ इसी तरह का हथियार बना गया.  

विश्व में कहीं कुछ भी हो  तो भारतीय मुसलमान ये आशा करते है की उन्हें उसमे न घसीटा जाय, और ये उनकी आशा वाजिब  भी जिसका हमें सम्मान करना चाहिए, लेकिन तभी याद आता है, इस्लाम ब्रदरहुड के नाम पर मुंबई में तोड़ फॉर जो की कही दूर बर्मा में हुआ था, कही श्रीलंका में हुआ था, अब ईराक के लिए भी पर्चे साइन कराये जा रहे है तो भाई अब सोचो की आपकी आशा जायज है या ना जायज. मुझे नहीं याद है की पाकिस्तान में हुए हिन्दू उत्पीडन के मामले में किसी भारतीय मुलिम को कोप झेलना पडा हो, किसी बंगलादेशी मुस्लिम की सजा यहाँ हिन्दुस्तान में मिली हो, अफगानिस्तान में बुद्ध की मूर्तियाँ तोड़ने पर किसी बुद्धिस्ट का कोप भाजन किसी देश में कोई मुस्लिम हुआ होजबकि बाबरी गिरने के ठीक बाद हर इस्लामी मुल्को पर हिंदुवो के उपर भयंकर गाज गिरी, खून के आंसू रुलाया गया, उनको पाकिस्तानी, बांग्लादेशी नहीं बल्कि हिन्दू माना गया. भारत के मुसलमान भी अमेरिका को गरियाते है लेकिन याद है की इन्ही लोगो ने अमेरिका को मोदी के लिए वीसा ना देने का पत्र लिखा था, और यदि आज भी बस चले तो मोदी को कुचलने के लिए किसी दुसरे देश की सेना माँगा ले. 


इस इराकी इस्लामी आतंकवाद में भी भारत के मुसलमान पर्चे साइन करा रहे है"शहादत" के लिए, जिनका उस अरब कंट्री से कुछ लेना देना भी नहीं है, तो जरा सोचिये, किसी खुरापाती तत्व की वजह से इश्वर न करे उंच नीच हो गयी या मुस्लिम और गैरमुस्लिम में जरा सा भी तनाव हुआ तो क्या यही पत्र इस्लामी देशी में नहीं जाएगा की भारत आओ हमारी मदद करो, गैर मुस्लिमो को ख़त्म करो. और वो तो तैयार बैठे हैं, विडियो भी बनवा के भिजवा दी की करो भाईयो हम बैक अप देते है. सरकार को तत्काल ऐसे लोगो पर लगाम लगनी चाहिए जो इंसानियत नहीं बल्कि मुसलमानियत के नाम पे ऐसी हरकत कर रहे है, यदि ये इंसानियत के नाम पे पहल करते तो सबसे आव्हाह्वाहन करते, मुस्लिम गैर मुस्लिम सभी से और सबको मिलकर सरकार पर दबाव बनाते की ईराक में कुछ करो इंसानियत के लिए, ये पर्चे साइन करा शहादत के लिए आह्वाहन करना "डाइरेक्ट एक्शन" जैसा कुछ नहीं लगता ? किसी देश में कुछ भी हो तो वो वैश्विक स्तर और राजनैतिक स्तर पर बात चित होती नहीं की इस्लामी विचार धारा के अनुरूप. 


होना तो ये चाहिए की इस्लाम के नाम पर होना विश्व में कहीं भी कुछ गलत हो आप मुस्लिम आगे आयें और सबका साथ मांगे, सोचिये हम भारतीयों का सर गर्व से कितना ऊँचा उठेगा, हम सीना ठोक के दुसरे मुल्को के ऊपर लानत भेज सकते है की हमारे मुल्क का मुस्लिम पहले इंसान है उसे विधर्मियो से भी परहेज नहीं मानवता के लिए काम करने को, लेकिन नहीं, आप तभी एक्टिव होते है जब विश्व में कही मुस्लिमो पे गाज गिरी हो और एक्टिव भी बस मुस्लिम ही होते है, क्या मुस्ल्मानियत इंसानियत से ऊपर है ? क्या इस्लाम ये सिखाता है की जब मुलमान परेशान है तभी आप परेशान हो, क्या इस्लाम ये सिखाता है की कोई गैर मुस्लिम चाहे कितना भी जहीन हो और वो परेशान हो तो आप इन्तजार करो की कब मुस्लिम परेशान होता है ?  क्या आप लोग लगता है की गैरमुस्लिम आपका साथ नहीं देगा तो, लानत है आपके सोच पर. भारत की बहुसंख्यक जनता इस इन्तजार में बैठी है की वो कब अपने को भारतीय माने और हमारे गले लगे बजाय की काफिर कहने के. हम ये मानते है की मस्जिद का गिरना गलत था, मस्जिद हो या मंदिर हो, चर्च हो गुरुद्वारा जो भी चींजे भारत में है वो हर भारतीय की विरासत हैउसे सम्हालने की जिम्मेदारी सभी भारतियों की है, न  की किसी हिन्दू, मुस्लिम सिख्ह इसाई की. 

विश्वाश कीजिये मेरा इरादा किसी का दिल दुखाना नहीं है, लेकिन मेरे मुआज्जिज दोस्त इस पर कुछ बोल नहीं रहे तो लिखना पढ़ रहा है, इसकी वजह से किसी का दिल दुखे तो मै माफ़ी मांगता हु, क्यों की कोई मेरे  लिए हिन्दू - मुस्लिम इसाई सिख्ख बाद में है पहले वो मेरे लिए इंसान है.

सादर 
कमल कुमार सिंह 

Saturday, June 14, 2014

केजरीवाल जी, नॉट योर व्यू लगाविंग -नो उल्लू बनाविंग

नोट : आपियो ने मिलके इसको स्पाम कर दिया है शायद, आप नॉट स्पाम पे क्लिक करके आगे बढ़े. 


कालीबाड़ी में हुए मोहल्ला सभा में केजरीवाल ने स्वीकार किया की उन्हें लगा की वो सरकार पूर्ण बहुत से बना लेंगे इसलिए इस्तीफा दिया. केजरीवाल राजनीति को अपने "लगने"और "न लगने" के चश्मे से ही तय करते है. 
उन्हें "लगता है" की गडकरी भ्रष्ट है, उन्हें  "लगता है की" संविधान भ्रष्ट है, उन्हें लगता है की जमानत मागने वाला "जज" गलत है. 

चुनाव से पहले उन्हें  बटाला काउंटर  पुलिस वाले पहले गलत लगते थे, चुनाव के बाद उसी पे कोर्ट का निर्णय सही लगता है.  

पहले उनको कुर्सी छोड़ के भागना राम के त्याग के बराबर लगता था, और अब उस त्याग पे माफ़ी मांगते है यानी उनकी नजर में राम गलत बना दिया.  

देल्ही विधानसभा चुनाव से पहले कोंग्रेस  भ्रष्ट लगती थी, चुनाव के बाद उसी के साथ सरकार बना ली.

पहले उन्हें लगता था की उन्हें राजनीति में नहीं आना चाहिए, फिर उन्हें लगा की आना चाहिए.

पहले किरण बेदी उन्हें ठीक लगती थी, बाद में भाजपा की एजेंट हो गयी,पहले विक्रम सिंह उन्हें ठीक लगते थे, बाद में वो भी भाजपा के एजेंट हो गए,पहले राम देव उन्हें महान लगते थे सो उन्ही के गोद से आन्दोलन शुरू किया, बाद में उन्हें लगने लगा की  रामदेव उनके राजीनीतिमें आने वाले प्लान के रास्ते के रोड़े है, सो बाद में वो भ्रष्ट हो गए. 

उन्हें लगता है की अदानी मोदी को जहाज देते है, जरुर गड़बड़, लेकिन उन्हें ये भी लगता है की आजतक वाले उन्हें चार्टर्ड में लाते है तो ठीक है. 

उन्हें लगता है की ५०० रूपये जेब कहने से बनारस की जनता मुर्ख बन जाएगी, जबकि वापसी चार्टड में हुयी तो लगता था ये बात जनता को पता नहीं चलेगी. 

लोकसभा चुनाव से पहले केजरीवाल को  लगता था की बनारस में "सत्यमेव जयते" होगा और बनारस की जनता बुध्धिमान है, अब उन्हें लगता है की बनारस की जनता बेवकूफ है.  

पहले उन्हें लगता था की सरकार छोड़ कर जनता की सहानुभूति मिलेगी तो सरकार छोड़ने का स्टंट किया, अब उन्हें वो गलती लगती है. 

उन्हें लगा की उनकी धरना देने वाले या वैसे ही कुछ  विकट हरकत से वो मिडिया में छाये रह सकते है, और छाये भी, लेकिन अब जब मीडिया उन्हें नहीं पूछता तो उन्हें भ्रष्ट लगता है. 

पहले इनको कोंग्रेस भ्रष्ट लगती थी, बाद में इन्हें बेदाग़ मोदी भ्रष्ट लगने लगे, पहले इनको भ्रस्टाचार एक सही मुद्दा लगता था, बाद में साम्प्रदायिकता लगने लगी.  


फिर इनको लगाने लगने लगा की पुरे देश में सभी पार्टियों का जमानत जब्त करवा देंगे, लेकिन जनता फिर लगा के जूता मारा मुह पर और ४०० से जादा सीटों पर जमानत जब्त करवा दी. 

इनको लगता है की नेतावो को इनका जवाब देना चाहिए, और इनको ये भी लगता है की इनको किसी का जवाब नहीं देना चाहिए, इनको लगता है की इनसे सवाल पूछने वाला या तो भ्रष्ट है या भाजपा - कोंग्रेस का एजेंट. 

इनको लगता है सब पर इल्जाम लगाना चाहिए, लेकिन इनको ये भी लगता है की इनकी आलोचना न हो. 

केजरीवाल जी इस लगने लगाने वाले चक्कर से बाज आईये, आपके इसी लगने लगाने वाले व्यवहार से जनता ने आपको दख्खिन लगा दिया, अब कितनी बार लगवावोगे ? 

आपका और आपियो का वही हाल है "अबकी मारो  तो जाने " "अबकी देख लेना" ये "आपीए"  (चुतिया x 1000= 1 आपिया)  पहले डेल्ही के विधान सभा में सबकी जमानत जब्त करवाते थे, दुसरे नंबर पर आये तो मुह काला कोंग्रेस के साथ किया जिसको ये एड्स से पीड़ित मानते थे. अब वही कोंग्रेसी बिमारी इन आपियो को लग गयी है. जानलेवा है धीरे धीरे आपियो और आपा को खत्म कर देगी. लेकिन फिर भी रोगी जब तक मर न जाए लड़ता है, जूझता है ऐसी ही हालत इन आपियो की है. 

सब मिला के उन्हें अब भी लगता है की वो जनता को उल्लू बना सकते है, वो बात अलग है की जनता ने उन्हें उल्लू मान के बैठी है, जो रात के समय अपने हिसाब से "लगने" के  वातावरण में निकलता है. 

जनता समझ चुकी है आपीए गुलेल से जहाज मार गिराने की बात करते है - तो प्लीज नो मोर उल्लू बनाविंग. 

सादर 
कमल कुमार सिंह.