नारद: 2013

Wednesday, October 30, 2013

बपौती



बपौती काई प्रकार कि होती है, एक तो  बाप का माल, हलाकि जो ये समझता है वो खुद भी अपने बाप का माल ही होता है भले वो अपने आपको बाप का माल समझे या नहीं या अपने बाप को ही घुड़क दे, लेकिन बाकी वस्तुवो को बाप का माल समझने वाला एक खास किस्म का दिमागी योध्धा होता है, जो बिना किसी से लड़े ही सबको अपने बाप का माल मानता है। 

जैसे किसी ज़माने सवर्ण दलित को अपने बाप का माल समझता था, मुसलमान कुरआन और मोहम्मद को अपने बाप का माल समझता है, आशाराम अपने महिला  भक्तो को अपने बाप का माल समझते है, बोस अपने मातहत को अपने बाप का माल समझता है, पुरुष स्त्री को अपने बाप का माल समझता है, स्त्री पुरुष  के माँ बाप को अपने बाप का माल समझती है,  दलित वाल्मीकि जी  को अपने  बाप का माल समझता है, सवर्ण परशुराम को अपने बाप का माल समझता है, कुत्ता तक दूसरों के जूठन को अपने बाप का माल समझता है। यानि सबके बाप के माल केटेगराईज्ड है। 

इसी कड़ी में नेता सबको धता बना अपना प्रथम स्थान बार बार लगातार कायम किये रखे हुए है, नेता मुसलमान के वोट को अपने बाप का माल समझते है। इसी परम्परा को को आगे  बढ़ाते हुए अपने प्रधान मंत्री मनमोहन जी मंद गति से  व्याख्यान दिया कि सरदार पटेल कोंग्रेस के थे, पहली बात मनमोहन जी जिस जनता को आप और आपके कोंग्रेस "आई" पिछले 40  सालो से बेवकूफ बना रहे है कि आप कोंग्रेसी हो  तो यही पे आपकी जबान लड़खड़ा जानी चाहिए थी . जिस कोंग्रेस का होने का दम आप भरते हो तो इंद्रा जी ने सिंडिकेट के खिलाफ हो कोंग्रेस से अलग हो कोंग्रेस आई बना डाली थी, यानि तलाक ले के एलुमनी लेने के बाद भी दौलत पे बारबरा नजर बनाये हैं आप जो गैर कानूनी है, इसी प्रकार से कोंग्रेस से अलग हो श्यामा  प्रसाद मुखर्जी ने इंद्रा से पहले ही आर एस एस बनाया था, तो सरदार पटेल, कोंग्रेस "आई" अर्थात आपके कैसे हुए ?  ? ये तो हुयी ओछी बात का जवाब ओछी बात से . 

अब आगे बढ़ते है, प्रधान मंत्री जी कुछ दिनों पहले मोदी ने अपने मंच से कहा था , आप से विचारो कि लड़ाई हो सकती है लेकिन आप अभी हमारे प्रधान मंत्री है, तो क्या आपने ये साबित नहीं  कर दिया कि आपका कद और दिल भी प्रधान मंत्री हो के भी मोदी से बहुत छोटा है जो कि महापुरुषो को खेमे में बाँट रहे है। क्या आप ये कह रहे है कि आपको प्रधान मंत्री इस देश का नहीं बल्कि कोंग्रेस का माना जाना चाहिए ? क्या आप ये कहना चाहते है  कि भाजपा, और गैर कोंग्रेस दल आपको प्रधान मंत्री मानने से इंकार दे ? 

आप इस देश के प्रधानमंत्री है, टी वी पे आके रात के अंधेरो के मालिक  सिंघवी ब्रांड टाइप का ओछा बयांन  देना कौन सा बड्डप्प्न है? 

खैर  इससे जादा आपसे जादा आशा कि भी नहीं जा सकती थी, क्योकि जिस राजीनीतिक दल से आप हो वहाँ सिक्का (खोटा  ही सही ) बस एक परिवार का चलता है, नकली गांधी परिवार का असली महात्मा गांधी के अभी जीवित चिराग तुसार गांधी किस चिड़िया का नाम है देश का अस्सी प्रतिशत युवा नहीं जानता होगा. नकली गांधी  पुरे देश को अपने बाप का माल मानता है, तभी इंद्रा देश कि बेटी हो गयी और राजिव देश का बेटा , सोनिया देश कि बहु हो गयी (कोंग्रेसियो कि नजर में ) और राहुल देश का पप्पू, राहुल को पता है कि वो पप्पू है फिर भी देश पे अपने अधिकार जताने से नहीं चुक रहे, मुसलमान तो उनके बाप के नौकर के  माल है
माना कि कोंग्रेस देश को अपनी बपौती मान  खूब ,कोयला , जमीं आसमान हवा सब बेच रही है,  आप लोग आपने राजीनीति के लिए कुछ भी करते रहिये कोई आपत्ति नहीं, कम से कम अब महापुरुषो पे एकाध्किार तो छोड़िये महाराज, नहीं तो गैर कोंग्रेसी दल आपको अपना प्रधान मंत्री मनाने से खारिज कर देंगे तब मत रोइएगा और न ही डुबियेगा,  चुल्लू भर पानी में। 

मेरा इस तरह का कुछ भी लिखने का रत्ती भर मन  नहीं था मनमोहन जी, लेकिन आप अपने आपको शायद देश का प्रधान मंत्री बाद, पहले कोंग्रेसी मानते हो, तो इस तरह का कुछ तो बनता ही था. 

आज सादर भी लिखने का मन नहीं कर रहा, यूँ ही लिख देता हूँ नीचे अपना नाम .

कमल कुमार सिंह 

Saturday, September 28, 2013

देहाती औरत न्यूयार्क मे


मनमोहन जी न देश कि जनता का मन मोह पाए न ही अपने युवराज का. एक तरफ जहाँ वो यू एन ओ मे अपने रोबोटिक्समय अंदाज मे अटलजी का पुराना भाषण दोहरा कर कुछ नया करने कि जहमत उठाने कि कोशिश नहीं कि, वहीँ दूसरी तरफ भारत मे  राहुल जी उनके मसौदो को नोंसेंस कह के कह उनका सम्मान बढ़ाया. जी हाँ सम्मान ही है, क्योकि कोंग्रेस मे "राहुल सत्य और सब मिथ्या"  है.
  • राहुल जी अब "दोनों हो गए है" पक्ष - विपक्ष दोनों" अभी तक पब्लिक इनको बीच का समझती थी. राहुल जी मस्त मौला आदमी है, उनकी पार्टी है उनकी सरकार है और उनकी सरकार क्या करती उससे उन्हें सरोकार नहीं रहता, अब उन्हें अपने चुटकुलों से फुर्सत मिले तब न. उनकी हरकते देख लगता है वह एक  जल्द ही "फाडू गैंग बनायेंगे" जगह जगह जा के फाडते रहते हैं, लेकिन इस बार के बयां से उन्होंने कोंग्रेस कि ही फाड़ दी है लेकिन कोंग्रेसी खी खी खी कर के मस्त हैं, कोइ नहीं अपने मालिक है, फाड़े या चीथे उससे क्या, लेकिन बेशर्मी कि हद तब हो जाती है जब  इस "फाडू एक्शन" को लोकतंत्र का नाम दिया जाता है. 

    खैर कोंग्रेस मे कुछ भी हो सकता है. एक तरफ जहाँ राघव जी जैसे लोग बी जे पि से भगाए जाते हैं, वही  दूसरी तरफ अपने संवैधानिक पदका दुरूपयोग कर  ग्रांड मस्ती फिल्म बनाने वाले मनु सिंघवी को प्रवक्ता बना दिया जाता है. कोंग्रेस अनन्त, कोंग्रेस कथा अनन्ता. 

    युवराज के इन हरकतों से मनमोहन जी का छोटा सा कद और लिलिपुटमय हो गया है , यहाँ तक इंटरनेशनल मिडिया भी उन्हें झंडू समझ कर कुछ भी कह रही है. और ये गलत भी नहीं, क्योकि  जिस लुगाई का घर मे ही न इज्जत हो उसको बाहर वाले क्या समझेंगे आप लोग ही बता सकते है. 

    मनमोहन जी जब  यू एन ओ मे पूर्व प्रधान मंत्री अटल जी का पक्ष रखने के बाद पाकिस्तान के  प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ ने मनमोहन को "देहाती औरत" कहा. जो काना फूसी करने कि आदत रखती है. निश्चित ही नवाज को पता है कि मनमोहन कि इज्जत भारत कि जनता मे ही नहीं बल्कि उनके पार्टी मे भी दियो कौड़ी कि है जिसका एक्शन नॉन सेन्स कह के कूड़े मे डालने का सुझाव उन्ही के पार्टी के मालिक कहते हैं. ये देहाती औरत वाली बात  इंटर नॅशनल मीडिया मे उछला है ये इनदिन मिडिया नहीं दिखाने वाली, क्यों ? आप समझदार है समझ जाईये, हाँ सोशल मिडिया जरूर बता रही, शायद इसीलिए सरकार  शोशल मिडिया पे इतना भन्नाती रहती है. 


    मनमोहन कि  स्थिति उस लडकी कि तरह हो गयी है, जो अपने प्रेमी के साथ मा बाप के खिलाफ  घर से भाग चुकी है लेकिन प्रेमी भी दगाबाज निकला और  नॉनसेन्स कह उसे करनी को दुत्कार दिया. 

    अब देखना है इंटरनेशनल देहाती औरत भारत के एक पार्टी के "रखैल" बनते है या  या गरिमा बचाने के लिए अपने मर्द के मुह पे एक जोरदार तमाचा मार अपना गौरव वापिस लाते है. हालाकि  मुश्किल ही दीखता है. 

    सादर 

    कमल कुमार  सिंह 

Wednesday, September 18, 2013

नक्सलियों की तरह घात लगा के हमला किया

जगह : मुजफ्फर नगर का एक गाँव, 

आयोजन , एक महापंचायत , 

कारन ? : एक शोहदे ने एक लड़की को छेड़  दिया था,हालाकि  ये उसका रोज का काम था. लड़की ने ये घटना  अपने भाईयों को  बताया, भाईयो की उन शोहदों से कुछ कहा सुनी हुयी, मार पिट हुयी. नतीजन, उन शोहदों ने उन दोनों लड़को सचिन और गौरव की पिट पिट कर हत्या कर दी.  पीड़ित के माँ बाप पुलिस स्टेशन जाते हैं,  पुलिस कोई एक्शन नहीं लेती, वो सिर्फ इसलिए इस शोहदे मुसलमान थे. फिर एक पीड़ित की की तरफ से एक पंचायत करने का विचार हुआ, जिसको प्रशाशन ने रोक दिया. वही जुम्मे की नमाज के बाद मुसलमानों ने पंचायत का आयोजन किया ( ध्यान  रहे सारे दंगे जुम्मे की नमाज के बाद ही होते है, क्योकि वह एक उपयुक्त समय होता है एक साथ "अड्डे " पर जुटने का ), जिसमे सरकार के लोग भी शामिल थे . पीड़ित पक्ष को नाराजगी  हुयी, फिर उन्होंने भी पंचायत करने की ठानी, अब चुकी प्रशाशन ने "दंगाईयो की पंचायत होने दी थी ,सो वो इसको नहीं रोक पाए. 


 पंचायत से वापसी के समय , जुम्मे वाली पंचायत ने रंग दिखाया, निहत्थे पीड़ित पक्ष के पंचायती जब लौट रहे थे, तब उन पर अल्लाह के बन्दों ने मस्जिदी आदेश  की तामिलो के तौर पर, हमला बोल दिया, हमला ठीक वैसा ही जैसा  किसी ज़माने में कह्स्मिर में हुआ था, इस हमले में एके ४७ तक का इस्तमाल हुआ, हिंदुवो को काटकर नाहर में फेका जाने लगा, उस दिन उस नहर में पानी की जगह हिन्दुवों का खून बहा. शायद ये खून अल्लाह के काम आये या न आये लेकिन आजम खान इसी ताक में थे की अपने वोट की खेती इन्ही हिंदुवो के खून से सींचेंगे, मुसलमानों के गुस्से की खाद डालेंगे, फिर फल पकेंगे, और वही चक्र. 

लेकिन आजतक वालो ने गुड गोबर कर दिया. अब आजमखान साहब अपना सा मुह ले के कालिख से बचाने की कोशिस कर रह है. 

लेकिन इसमें गलती किसकी ? मुसलमानों की ? तो हाँ है, लेकिन इसमें आश्चर्य क्या ? ये उनका स्वभाव है.  इसलिए मई उनका कोई दोष नहीं देता. 

प्रशाशन की : बिलकुल, लेकिन आश्चर्य होता है, की एसा क्यों ? क्यों कोई प्रह्सश्निक अधिकारी इस तरह की बात मान सकता है , लें शायद उनके भी हाथ में कुछ नहीं रहा होगा, ट्रान्सफर होने के बाद कोई कुछ नहीं कर सकता कम से कम उस स्थान पे . 

मिडिया की : सबसे जादा और १००% ,  मुल्ला- यम की पूत्र की सरकार  जब से पुत्तर प्रदेश में आई, तब से कोई छोटे बड़े ५० से भी जादा दंगे हो चुके है. लेकिन  मिडिया इसको खाती रही. चुप रही, भगवान् जाने किस सौहार्द्य बिगड़ने के डर से ?  और इससे कुरानी फरिश्तो की  हिमाकत बड़ी , नतीजा सामने है. 

मीडिया आज भी यह नहीं बता रही की की  वह ए के ४७ का क्या हुआ ? कहा से बरामद हुआ ? उस पर कोई कार्यवाही हुयी या नहीं ? या मिडिया भी मानती  है की समुदाय विशेष के घर में ए के ४७ पाया जाना मामूली घटना है ठीक वैसे है जैसे किसी के घर में चमच्च, कढाई या पौना -कलछुल पाया जाना, यदि मानती तो शायद बताती. लेकिन मिडिया को अछ्छी तरह से मालुम है. 

हमें नहीं  चाहिए  एसा सामजिक सौहार्द्य, नहीं चाहिए हमें भाई चारा जब कीमत सिर्फ एक तरफ़ा चुकानी  हो, हर जगह , हर तरह से और हमेशा. क्योकि  भाई चारा इंसानों में की जाती है, डाकुवों और आतंकवादियों से नहीं, 

पागल कुत्तों  ने घात लगा कर शेर को काट लिया है,  देखते हैं शेर के पंजे से कब तक बाहर  रहता है. 

 कुछ जादा पढने के लिए डी एन ए का लिंक क्लिक करे .
http://www.dnaindia.com/india/1888043/report-dna-special-jolly-canal-killings-triggered-the-muzaffarnagar-riots

सादर
कमल कुमार सिंह 

Sunday, September 8, 2013

सेकुलरों का राजधर्म



मैंने टी वी पे कई फिल्मे एसी देखि जिसमे डाकू का एक गिरोह होता है, और इन डाकुवो का एक अड्डा भी होता है, वो सारे डाकू हफ्तों तक भेस बदल कर इधर उधर लूट, पाट हत्या करते है, लेकिन सरदार के नियम के अनुसार एक निश्चित दिन इकठ्ठा हो सरदार को सब कुछ अर्पित करते है, फिर उनका हिस्सा बाटा जाता,

 कभी कभार उसी "अड्डे"  पे कई योजनाये बनती है, कहाँ कब कैसे लूट पाट  करनी है ? कहाँ कब किसकी हत्या करनी है , कौन कौन उसके रास्ते मे आ रहा है? और अड्डे से निकल कर होता है हमला. लूट पाट, मार काट, बालात्कार, आगजनी. और ये सब करने के बाद जब पुलिस दौडाए तो वापीस अड्डे मे घुस जाना और वही से गोली बारी करना. 

 इनके सरदारों को सेट्टिंग भी होती थी, गाँव के कुछ सांपो जैसे विषैले लोगो से  सांठ गाँठ, डाकू उसको प्रधान बनाने मे मदद करते और और ये उन डाकुवो कि पुलिस इत्यादि से बचाने संरक्षण देने मे. इनकी मंशा पुरे इलाके - क्षेत्र मे अपना अधिकार जमाना होता है, डाकुपन फैलाना होता है जिसमे हार्डकोर का काम सम्हालते है "अड्डे वाले" डाकू और सोफ्टकोर यानि जनता जनार्दन के बीच कि कड़ी होते हैं संपोले  विषैले जैसे इंसान दोनों कि मंशा एक ही होती है राज करना., जब कभी जनता संपोलो से गुहार लगती है कि आप तो चौधरी है हमने  आपको जिताया है आप हमरी रक्षा करें तो संपोले दलील देते हैं , वो डाकू भी हमारे भाई है, हम उन्हें मुख्य धारा मे लाना है, आदि आदि, गाँव वाले बिचारे अपना सा मुह ले के चुप होते है, वही डाकू अपना डाकूपण दिखाते हुए न जाने किस प्रकार कि "हक" कि बाते करते है. 

और ये खेल चलता रहता है, गाँव के सीधे साधे लोग इन मुठ्ठी भर  डाकुवों और संपोले के खेल मे पिसते रहते हैं, लेकिन उनका सीधापन ही उन्हें खाता रहता है, वो जादा होने के बावजूद भयग्रस्त रहते हैं,  क्योकि उनका स्वभाव लुट पाट, हत्या बलात्कार नहीं होता, न ही वो कर सकते है,  तभी कहीं से कोई बागी बनता है, वो गावँ वालो को एक करता है, फिर भी उसके खिलाफ प्रपंच चलाये जाते है, परेशानियां खड़ी कि जाती है, गाँव वालो को डराया धमकाया जाता है, लेकिन फिर भी विजय उसकि होती है क्योकि वो  सत्य के साथ होता है 

एसी फिल्मे आपने भी कई देखि होंगी, और इस तरह के कई कहानिया सुनी होंगी,  होंगी ??  अरे होंगी क्या ? अभी लाईव देखिये न .. अभी भी तो दिख ही रहा है.. नहीं ?? 

साम्प्रदायिकता का सांप ऐसा है जो किसी भी विकास को डस लेता है. और इस देश मे एक तबका ऐसा भी है जो चोरी के बाद सीना जोरी भी करता है, और जब तक उस सीने पे वजनी बठ्करे से प्रहार नहीं किया जायेगा तब तक वह तबका सीनाजोरी कर सर उठाता रहेगा. 

इन तत्वों को सहारा देते जो दीखते हैं जो अपने को सेकुलर कहते हैं, सांप के जहर का इलाज है लेकिन सेकुलरों का नहीं, यदि आपके एक दरवाजे पे एक कुत्ता और एक सेकुलर आ जाय तो कृपया कुत्ते को रोटी दें, लेकिन अब आप कहेंगे कि कोई सेकुलर तुम्हारे दरवाजे पे आयेगा क्यों ? तो आते हैं भाई, बिलकुल आते है, यूपी वालो के दरवाजो पे श्वान समूहों ने स्वांग रचकर रोटी ले ली, खा के मोटे और ताकतवर हो गए, सत्ता मिल गयी, अब वहाँ क्या हाल है पूरा देश देख रहा है.  कमोबेश अधिकतर सेकुलर पार्टियां यही करती है, 

जम्मू कश्मीर के किश्तवाड मे भी सेकुलरों का राज है, वहाँ क्या हुआ आज तक किसी को पता नहीं, और मिडिया उस समय एक बधूवा मजदुर दिखी  जिसके हाथ पाँव ही नहीं काट दाये गए बल्कि जीभ तक काट के उसके कानो मे भर दिए गए ताकि वो न बोल सके न सुन सके, मिडिया ने खुद अपने बैन का मुद्दा तक नहीं उठाया, कही कोई चर्चा नहीं. वहाँ भी शुरुवात एक सेकुलर स्थल से हुयी थी. अब समझ मे आता है कि क्यों  अमेरिका पुलिस द्वारा सेकुलर स्थलों कि निगरानी करने कि पहल कि गयी. भगवान जाने भारत सरकार को कब अक्ल आयेगी.  पता नहीं गुजरात कि तर्ज पे किश्तवाड के लोगो को सजा कब मिलेगी ? फिर भी ये सेकुलर है. इनका "नॉन सेकुलरों"  को साम्प्रदायिक कहना कुछ वैसा ही लगता है जैसे किसी  वेश्या का किसी दूसरे नारी के चरित्र पे अंगुली उठाना. 

पिछले साल यूपी मे रमजान के दौरान हर लगभग हर शुक्रवार और उस महीने मे कई दंगा हुआ, और शुरू होता था सेकुलर स्थल से, माफ करिये जहाँ से लोग निकल कर इतने उन्मादी हो जाए वह सेकुलर स्थल डाकुवों के अड्डे से कम नहीं, और न हीं उसको  किसी भी प्रकार स्थल मानना चाहिए, हाँ उसको "अड्डा" कह सकते हैं, जैसे कुछ अड्डे चम्बल मे डाकुवो ने विकसित कर रखे है, जहाँ सबकी जाने मे रूह कांपती है क्योकि उनका  भी धर्म अलग है, "डाकू धर्म" उनपे भारतीय कानून काम नहीं करता. इसलिए उनके अपने वहाँ अपने डाकू धर्म के कानून होते है, और सरकार ये नहीं कह सकती कि चम्बल या एसी जगहों पे जहाँ डाकू रहते हों वहाँ सिविल कोड ही होने चाहिए. क्योकि सरकार वही है जिन विषैलों कि बात ऊपर सीन मे कि गयी थी. 


हाल मे मुजफ्फरनगर मे एक लड़की को छेड़ने कि घटना का का विरोध करने पे दो भाईयों को पिट पिट कर मार दिया गया, उसके विरोध के लिए पंचायत बुलाई गयी, लेकिन एम्बुश लगा के उन पर आक्रमण किये गए वो भी अत्याधुनिक हथियारिओं के साथ. और तो और एफ आई आर उन मा बाप के खिलाफ लिखा गया जिनके बेटी,बेटो कि हत्या हो गयी.  

मिडिया तब तक चुप थी जब तक मामला सोशल मिडिया मे जन के नहीं उछला, ये तो उसको भी पचा जाते "खास किस्म के चूरन" के साथ लेकिन मामला तब बिगड गया जब एक मुस्लिम और हिंदू पत्रकार मारा गया. और दिखाया भी है तो खाने के बाद बस एक पाचक कि तरह, असली खाना तो इनका अभी आश्राम बना है, शायद आशाराम  जैसा इंसान इनके लिए जादा महत्वपूर्ण  बजाय कि दसियों जानो कि चिंता करने कि, इस समय मिडिया का सबसे बड़ा दुःख ये है कि ये हालत गुजरात मे क्यों नहीं बन रहे ? 

बावजूद इसके धर्म निरपेक्षता , गंगा जामुनी तहजीब और भाई चारा का हवाला दिया जाता है, गंगा -जमुनी तहजीब समझ मे नहीं आता ?  वास्तव मे  "गंगा - जेहादी" तहजीब सही टर्म है. क्योकि गंगा तो समझ मे आता है जो एक तहजीब से संबंध रखता है और दूसरा जेहादी और जेह्दाइयों का कोई धर्म नहीं होता. क्या अब  भी गंगा - जामुनी तहजीब कहना वाजिब है ? 

रही बात भाईचारा कि तो भाड़ मे जाए एसी भाईचारा जिसमे एक पक्ष बस "भाई" कहता रहे और  भाई दूसरे पक्ष को "चारा" मान उसका मनमानी तरीके से भक्षण करता रहे.  

खैर ऐसा तब तक होता रहेगा जब तक हम सब एक न  हो जाएँ और एक होकर उस गाँव वाले बागी को नेता मान कमान सौंप  दें ताकि इन सांपो के जहर का इलाज और डाकुवो को आत्म समर्पण करवाया जा सके और गाँव मे सुख और शांति आये. 

सादर 

कमल कुमार सिंह.  

Tuesday, August 27, 2013

साहब जी और फ़ूड सेक्योरिटी बिल


सुबह सुबह "साहब" जी  जब खटिया से अपना पैर नीचे उतार, उनके हिसाब से "भारत डायन"  के सीने पे पाँव रखा तो खुश हुए, हलाकि यह काम वो रोज करते थे. लेकिन आज ख़ासा खुश थे.

"अजी सुनती हो,  जरा डेटाल साबुन देना, आज नहाना पड़ेगा, अमेरिका ने हमको मगाया है" -  अपनी पत्नी से कहा.

क्या हुआ जी ? सब ठीक तो है, कहीं "दिल्ली वाली मम्मी" ने आपको भी बेच तो नहीं दिया उन्हें ? - बेगम  ने कहा.

"कभी कभी ढंग की बात किया करो, तुम बेगम हमेशा हमें अंडर इस्टीमेट करती हो- तमतमाते  बोले.

"काश कुम्भ मेले वाले भी करते तो उनकी जान बच जाती., लो पकड़ो डेटाल, इससे शरीर का कीड़ा तो मार लोगे, दिमाग साफ़ तो पहले ही हो चूका है"- बेगम ने साबुन खुश होते हुए इस तरह से दिया मानो जहर दे रही हो.

डायन के सीने से टुल्लू फिट कर निकले गए पानी से जम  के नहाने के बाद कच्छे को सूरज के नजरो के इनयात कर सूरज  पे अपनी नज़ारे इनायत कर कहा, 
"दो मिनट में सुखा दो , एके है, दूसरा स्वीटजरलैंड में है.  नहीं किया तो  सांप्रदायिक बता के अंदर कर दूंगा, बड़े बड़े आई ए एस को अन्दर- बाहर  किया है, तुम क्या हो ?"
 सुरज ने मारे  डर के धुप तेज कर दी, कच्छा सूखने लगा लेकिन खान साहब को पसीना आने लगा, फिर तमतमाए, "अबे  रोना  हो तो अपने आँख से पानी निकालो, न की  मेरे "वहां" से. 

खैर ये उनकी रोज की आदत थी, इस तरह के कारनामे कई बार कर चुके हैं,  पिछली बार  कूत्तो के समूह को जो की  सामाजिक व्यक्तियों को  काटने की वजह से मुनिसिपल वाले उठा ले गए थे उनको छुड़ाने की  दलीले थी की ये तो  पागल कुत्ते है, कटना इनका स्वभाव है, अब कुत्ते नहीं काटेंगे तो कौन  काटेगा ? इनको छोड़ दो नहीं तो  कुत्ताधिकार वाले बहुत  है अपने देश में तुम्हारी नौकरी खा जाऊँगा, इंसान और जानवरों में मतभेद करते हो ? साम्प्रदायीक  कही के. कुत्ते हमारे समाज के अभिन्न हिस्सा है. ये हमारी रखवाली करते है तो किसी को काटे भी तो हमें आपत्ति क्यों ?. अब कुत्ते कुत्तई नहीं करेंगे तो क्या आप करेंगे ? 

खैर नहा धो के साहब ने अपने "कमजोर नाडे" को बड़े कसीदे के बाँधा ताकि कमर पर टिकी रहे. मुलायम हाथो द्वारा भेंट की गयी मूल्यमान इतर का छिडकाव किया ताकि किसी भी प्रकार के गन्दगी की बदबू न आये, दिमाग इन सब से मुक्त था अतः इतर से उसको भी मुक्त रखा हमेशा की तरह. इनका मानना था की दिमाग की खुशबू से प्रभावित करना खतरनाक हो सकता है, कही किसी चोर चुहाडे की नजर पड गयी तो रहा सहा भेजा भी उड़ा ले जायेगा, अतः जैसा भी है अपना है, खोपड़े में सुरक्षित तो रहेगा. 

घर से अभी कुछ दूर गए होंगे की किराने  के दूकान पर लम्बी लाइन नजर आई. आप सामाजिक  थे वहां गए, "क्यों रे इत्ती लम्बी लाइन कहे की ? खुदा की खैरात बट रही क्या ? 

"खुदा की खैरात ले के क्या करेंगे चाचा? मम्मी जी का भेजा कोटा आया है,  

 हायं ?? ये कैसे  भैया तो अपने मुलायम जबान में कुछ कुछ खिलाफत की थी, लेकिन क्या भैया और क्या गिरगिट ? चलो कोई नहीं पास हो गया तो हो गया. मन में बुदबुदाए साहब. 

"ये बताओ बिलवा में खाने के बाद पचाने का भी कुछ उपाय है,"  साहब ने धमकाने के अंदाज में पूछा. 

साहब,  जिसे दो जून का कहना न नसीब हो वो  पचाने की क्या सोचे? आप लोग खाइए, खूब  खाइए, मिल बाँट के पचाईए. यहाँ तो कब से लाइन में लगे है, पंसारी कुछ देने को तैयार नहीं होता, कहता है किसी की शिफारिश ले के आ , अब आप आ गए हो तो, तो आप ही कह दो. सुना की आपके शिफारिश से सम्परादायिक  यात्रायें रुक जाती है, साम्प्रदायिक लोग थर थर कांपते है. 

अबे ये जनता का काम है, हम ठहरे नेता, हम सिफारिश करंगे तो लोग क्या कहेंगे? साहब ने पहले से फुले हुए सीने को और फुलाने की कोशिश की. लेकिन सुनो, जितना मिलेगा उसका आधा हमारे बेगम को पंहुचा जाना बाकियों से भी यही कह दो, "अबे पंसारी, दो इन सबको, कहे तंग करते हो, माल बंद करावा दे क्या" ? साहब ने पंसारी से धमकी से लबालब शिफारिश की और चलते बने. 

गरीब बेचारा अपनी हथेली पे पड़े  उन सिक्को को जो उसने मम्मी के पोस्टरों को रद्दी के भाव बेच बेच के जमा किया  था, जमीन पर फेंकते हुए, ढेर सारा दुसित प्रवाह किया और  चलता बना, नंगा, भूखा.  

कमल कुमार सिंह. 

Friday, July 12, 2013

मलाला जैसे हो इस्लामिस्ट


अंग्रेजी में एक  कहावत है "Action speaks louder than words" जो सत्  प्रतिशत सही है. जिस  किशोरावस्था में स्कुल में दुनिया भर के सपने सजाते हैं, बगल वाले से जलते हैं किस उसका नंबर उससे जादा क्यों? उस छोटी उम्र मलाला जैसी किशोरी किसी आम हमउम्र से अलग हट कुछ एसा करती दिखाई देती है जो इस्लामिस्टो की नजर में चुभती है, यहाँ तक इस लड़की के ऊपर हमले भी हुए. जान बचने के बाद भी यह किशोरी बिना किसी दबाव में आये अपने धुन में लगी है. मलाल डे पे सयुंक्त राष्ट्र संघ ने इन्हें आमंत्रित भी किया है. 

अब सोचने वाली बात है की इस्लाम इस्लाम चिल्लाने वाले एक तरफ तो अफगान में दुसरे कि संस्कृति नष्ट करते हैं, गया में बम फोड़ते हैं  जो इस्लाम के चहरे पर चेचक  नुमा कभी न जाने वाले धब्बे हैं, वही दूसरी तरफ मलाला जैसे लोग भी हैं जो इन सब कट्टरवादिता से  आगे बढ़ इस्लाम  को दिए गए दाग को अनजाने में सही लेकिन चेहरा दरुस्त कर रही है. अनजाने में इसलिए कहाँ की वो कोई काम अपने दिल में इस्लाम को आगे बढाने के उदेश्य से नहीं कर रहीं, पूरी मानवता के लिए कर रही हैं, उनके कार्यो से हर किसी के दिल मीठा सा अहसास होता है, कि काश ये बम फोडू जो अपने आप को इस्लाम के लिए समर्पित कहतें हैं, एसा कुछ क्यों नहीं करते जिससे वास्तव में लगे की वास्तव में इस्लाम बेहतर है.  क्या इतने सारे नकारात्मक संगठनों के बावजूद भी मलाल एक सकारात्मक पहचान रहीं है तो इस पर इस्लाम को क्या एतराज या नुक्सान हो सकता है. 

जो लोग इंटरनेट पर इस्लाम का बखान करते नहीं चुकते उनके लिए भी ये बड़ा सबक है, जो इस्लाम इस्लाम चिल्लाते हैं, ख़ासकर भारत में इन्हें भोपाल के लोग नहीं दीखते जिन्हें कोंग्रेस सरकार ने एक करारा लेकिन गहरा जख्म दिया है, ८० के दशक में भोपाल गैस काण्ड जिस क्षेत्र में हुआ वहां अधिकतर मुस्लिम  बस्तियां ही है, जो आज बस इसलिए जिन्दा ताकि अगले दिन अस्तपाल जा सके. वहां उस क्षेत्र में आप जायेंगे तो आप की रूह काप जाएगी जब आप जिन्दगी को कराहते घसीटते हुए देखेंगे, और आप अपने आप को  दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान मानेंगे की आप भोपाल के उस दशक में पैदा नहीं हुए जहाँ कोंग्रेस ने मौत का हाहाकार मचा दिया. लेकिन उनके लिए यहाँ के किसी भी इस्लाम परस्तो का हाथ आगे नहीं बढ़ता. कोंग्रेस को बार बार निशाने पे इसलिए ले रहा हूँ, क्योकि उस समय अर्जुन  सिंह वहां के मुख्यमंत्री थे, भोपाल गैस काण्ड के अभ्युक्त "एंडरसन" काण्ड के बाद शाही व्यवस्था में अमेरिका विदा करने में उनका बड़ा हाथ था. हलाकि खबर राजिव गांधी को भी थी. इसके बाद सबसे बड़ा मजाक ये की  मुस्लिम जज "अहमदी" जी ने पूरी जी जान लगा दी की अभियुक्तों को कम से कम सजा मिले. 

जो लोग इस्लाम का झंडरबरदार बनते है, उनकी नजर बस इंटरनेट पे प्लास्टिक पीटने तक ही सिमित रहती है, बजाय  मलाला जैसे लोगो से कुछ सकारात्मक उर्जा लें,  एक मलाल जब मुझे मजबूर कर सकती है उनके बारे में लिखने के लिए तो जरा सोचिये यहाँ का १% मुसलमान इस तरह का कमान हाथ में लेले तो उसे नेट पर प्लास्टिक पीटने की कोई जरुरत नहीं रह जाएगी. 

हमें मलाला चाहिए, प्लास्टिक पिटवा नहीं . 

Thursday, July 11, 2013

मुसलमानो का मोदी विरोध


एसा नहीं है २००२ से पहले या बाद में कोई दंगे नहीं हुए, कब हुए, कितने हुए, कहाँ हुए, किसके सरकार में हुए  ये सब नहीं लिखूंगा, सभी जानते है. लेकिन २००२ के दंगो को ही निशाना जादा बनाया जाता रहा है. साथ उसको "स्टेट स्पोंसर्ड" का दर्जा राजनीतिज्ञों  द्वारा बताया जाना इस बात का  सबुत है की उन्हें अपनी करनी पे विश्वाश नहीं बल्कि दंगो का की राजनीति का ही सहारा है , नहीं तो "स्टेट स्पोंसर्ड" दंगा क्या होता है ??  क्या बाकी के दंगे सहमती से गोलमेज मीटिंग टाइप के बाद हुए  है ? ख़ासकर  उस  केस में जब तक किसी भी कोर्ट ने मोदी पे कोई टिप्पड़ी भी न की हो. असंम  में कोंग्रेसियों (कोंग्रेस - आई )  द्वारा  बांगला देशियों का बसाया जाना फिर दंगा होना क्या एक सुनियोजित  "स्टेट स्पोंसर्ड" दंगा  नहीं है ? ये वही पार्टियाँ हैं  जो  पीछे से दंगे करा के फिर आगे इन्साफ मांगती है खासकर मुस्लिमो के लिए. 

असली बात वोट बैंक है, सभी जानते हैं. आज जबकि मोदी  किसी भी पार्टी के किसी भी नेता से जादा लोकप्रियता लिए हुए हिन्दू मुस्लिम किये बिना चुनाव जीतते है, तो बाकी पार्टी के  राजनितिज्ञो  का तिलमिलाना समझ में आता है.  मोदी को का भुत उन्हें जगाने सोने नहीं देता, एसा लगता है जैसे दंगो  ने उनके राजीनीति को भी खा लिया है.  उन्हें लगता है २००२ का दंगा उनके जितने की रेसिपी है हलाकि वो मुगालते में हैं जबकि वही मोदी तीसरी पारी खेल चुके हैं.  और २००२ के बाद जहाँ कोई दंगा नहीं हुआ तो दूसरी तरफ पुरे देश में न जाने कितने  दंगे हुए तो फिर मुसलमान मोदी से क्यों भड़कते हैं ?? 

 राजनीतिज्ञों का मोदी से भडकना समझ आता है, जलन कह लीजिये या दुर्भावना या राजनैतिक  प्रतिद्वंदता जो भी दूसरी पार्टियो का भडकना समझ में आता है, लेकिन साथ साथ ही  मुस्लिमो  मोदी का नाम से भडकना बड़ा गोल गोल घुमाता है,  क्या मोदी मुसलमान विरोधी है ? यदि एसा है तो गुजरात में कैसे जीतते ? या  मान लीजिये  मोदी देश के प्रधान मंत्री बन जाते है तो क्या देश से मुसलमानों का खात्मा कर देंगे ? तब ये सोचना चाहिए की क्या गुजरात में मुसलमान खतम हो गए ? बड़ी हास्यपद बात है, तो फिर मुसलमान मोदी से क्यों भड़कते हैं ?? 

अब आईये दुसरे पहलू पे सोंचे, आज तक मैंने किसी नेता को नहीं देखा जो अपने भाषणों में मुसलमानों की पैरवी न करते देखा गया हो, चाहे हो लालू  का  परिवर्तन रैली हो, या टोपीबाज नितीश की रैली, या मुलायम की "उत्तर प्रदेश के मुस्लिम को लडकियों वजीफा देना हो,  अरविन्द केजरीवाल का बुखारी वंदन हो (वो बात अलग है भगा दिए गए थे वहां से ) या अन्य कोई नेता, उनका पलड़ा एक तरफ इस मुसलमान "वोट बैंक" कि तरफ झुका होता है,  पलड़ा कभी बराबर  होते नहीं देखा गया.  नहीं तो क्या उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के अतिरिक्त और कोई लड़की उस योग्य नहीं है जिसको सहायता की दरकार है ?  वही कोंग्रेस के भारत विकास में एक मुस्लिम लड़की को एड में दिखाना क्या दिखता है ? 

ठीक  इसके उलट मोदी के भाषणों  में आजतक किसी ने हिन्दू मुसलमान की बात नहीं सुनी होगी. उन्होंने हमेशा बराबरी की बात की,  गुजरात मे हो तो ६ करोड़ गुजरात और  यदि देश में हो तो भारतीय कह के संबोधित करने वाले मोदी शायद यहीं चुक कर गए, उन्हें बराबरी और समानता की बात  न करके  बल्कि मनमोहन सिंह की तरह "देश में पहला हक़ अल्पसंख्यको का है" टाइप का कोई जुमला बोलते  तो शायद मुसलमान उने कभी नहीं भड़कता, क्योकि दंगे तो और भी कई  कोंग्रसी नेतावो ने करवाए हैं, सो दंगा उनके लिए ख़ास मुद्दा नहीं है क्योकि वो भी जानते हैं की वाजिब से ऊपर किस आशा रखना  उनकी आदत बन चुकी है, मिले न मिले वो बात अलग है. असली मुद्दा मोदी विरोध का है उनका "कान", जो नेतावो से " मुस्लिम मुस्लिम" सुनने का आदि हो चूका है , अभ्यस्त हो चूका है, एसे में मोदी यदि "मेरे प्यारे  भारतीय भाईयों और बहनों"  टाइप का एक सामानता की बात करेंगे  तो निश्चित और लाजिमी  है मुसलमानों का मोदी से भडकना.

Sunday, June 16, 2013

संघ और हिन्दू महासभा


१९२१ ई. में अंग्रेजो ने तुर्की को परास्त कर, वहां के सुल्तान को गद्दी से उतार दिया था, वही सुल्तान मुसलमानों के खलीफा/मुखिया भी कहलाते थे, ये बात भारत व अन्य मुस्लिम देशों के मुसलमानों को नागवार गुजरी जिससे जगह-जगह आन्दोलन हुए l हिन्दुस्थान में खासकर केरल के मालाबार जिले में आन्दोलन ने उग्र रूप ले लिया l मुसलमानों को शिकायत तो थी ब्रिटिश सरकार से, पर उसके सामने तो मुसलमानों की चली नहीं, परन्तु उनका कहर टूटा केरल की निर्दोष और असहाय हिंदू जनता पर, इस हिंसक बबाल में बड़ी संख्या में हिंदुओं का कत्ल हुआ, स्त्रियों की इज्जत लूटी गई तथा बड़े पैमाने पर बल पूर्वक हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कर उन्हें मुसलमान बनाया गया l (संदर्भ पुस्तक- “राष्ट्रपिता वीर सावरकर”)

१९२२ ई. में भारत के राजनीतिक पटल पर गांधी के आने के पश्चात ही मुस्लिम सांप्रदायिकता ने अपना सिर उठाना प्रारंभ कर दिया। खिलाफत आंदोलन को गांधी जी का सहयोग प्राप्त था - तत्पश्चात नागपुर व अन्य कई स्थानों पर हिन्दू, मुस्लिम दंगे प्रारंभ हो गये तथा नागपुर के कुछ हिन्दू नेताओं ने समझ लिया कि हिन्दू एकता ही उनकी सुरक्षा कर सकती है। ऐसी स्थिति में कई हिंदू नेता केरल की स्थिती जानने एवं वहां के लूटे पिटे हिंदुओं की सहायता के लिए मालाबार-केरल गये, इनमें नागपुर के प्रमुख हिंदू महासभाई नेता डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजे, डॉ. हेडगेवार, आर्य समाज के नेता स्वामी श्रद्धानंद जी आदि थे, उसके थोड़े समय बाद नागपुर तथा अन्य कई शहरों में भी हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए l ऐसी घटनाओं से विचलित होकर नागपुर में डॉ. मुंजे ने कुछ प्रसिद्ध हिंदू नेताओं की बैठक बुलाई, जिनमें डॉ. हेडगेवार एवं डॉ. परांजपे भी थे, इस बैठक में उन्होंने एक हिंदू-मिलीशिया बनाने का निर्णय लिया, उद्देश्य था “हिंदुओं की रक्षा करनाएवं हिन्दुस्थान को एक सशक्त हिंदू राष्ट्र बनाना”l इस मिलीशिया को खड़े करने की जिम्मेवारी धर्मवीर डॉ. मुंजे ने डॉ. केशव बलीराम हेडगेवार को दी l

डॉ.साहब ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने व्यक्ति की क्षमताओं को उभारने के लिये नये-नये तौर-तरीके विकसित किये। हालांकि प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की असफल क्रान्ति और तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने एक अर्ध-सैनिक संगठन की नींव रखी। इस प्रकार 28/9/1925 (विजयदशमी दिवस) को अपने पिता-तुल्य गुरु डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजे , उनके शिष्य डॉ. हेडगेवार, श्री परांजपे और बापू साहिब सोनी ने एक हिन्दू युवक क्लब की नींव डाली, जिसका नाम कालांतर में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ दिया गया l
यहाँ पर उल्लेखनीय है कि इस मिलीशिया का आधार बना - वीर सावरकर का राष्ट्र दर्शन ग्रन्थ(हिंदुत्व) जिसमे हिंदू की परिभाषा यह की गई थी- आ सिंधु-सिंधु पर्यन्ता, यस्य भारत भूमिका l पितृभू-पुण्यभू भुश्चेव सा वै हिंदू रीती स्मृता ll

इस श्लोक के अनुसार “भारत के वह सभी लोग हिंदू हैं जो इस देश को पितृभूमि-पुण्यभूमि मानते हैं”l इनमे सनातनी, आर्यसमाजी, जैन , बौद्ध, सिख आदि पंथों एवं धर्म विचार को मानने वाले व उनका आचरण करने वाले समस्त जन को हिंदू के व्यापक दायरे में रखा गया था l मुसलमान व ईसाई इस परिभाषा में नहीं आते थे अतः उनको इस मिलीशिया में ना लेने का निर्णय लिया गया और केवल हिंदुओं को ही लिया जाना तय हुआ, मुख्य मन्त्र था “अस्पष्टता निवारण एवं हिंदुओं का सैनिकी कारण”l

ऐसी मिलीशिया को खड़ा करने के लिए स्वंयसेवको की भर्ती की जाने लगी, सुबह व शाम एक-एक घंटे की शाखायें लगाई जाने लगी| इसे सुचारू रूप से चलाने के लिए शिक्षक, मुख्य शिक्षक, घटनायक आदि पदों का सृजन किया गया l इन शाखायों में व्यायाम, शरारिक श्रम, हिंदू राष्ट्रवाद की शिक्षा के साथ- साथ वरिष्ठ स्वंयसेवकों को सैनिक शिक्षा भी दी जानी तय हुई l बाद में यदा कदा रात के समय स्वंयसेवकों की गोष्ठीयां भी होती थी, जिनमें महराणा प्रताप, वीर शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, बंदा बैरागी, वीर सावरकर, मंगल पांडे, तांत्या टोपे आदि की जीवनियाँ भी पढ़ी जाती थीं l वीर सावरकर द्वारा रचित पुस्तक(हिंदुत्व) के अंश भी पढ़ कर सुनाये जाते थे l
थोड़े समय बाद इस मिलीशिया को नाम दिया गया राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ- जो आर.एस.एस. के नाम से प्रसिद्ध हुआ l प्रार्थना भी मराठी की बजाय संस्कृत भाषा में होने लगी l वरिष्ठ स्वंय सेवकों के लिए ओ.टी.सी. कैम्प लगाये जाने लगे, जहाँ उन्हें अर्धसैनिक शिक्षा भी दी जाने लगी l इन सब कार्यों के लिए एक अवकाश प्राप्त सैनिक अधिकारी श्री मारतंडे राव जोग की सेवाएं ली गईं l 


सन् १९३५-३६ तक ऐसी शाखाएं केवल महाराष्ट्र तक ही सीमित थी और इसके स्वंयसेवकों की संख्या कुछ हज़ार तक ही थी, पर सरसंघचालक और स्वंयसेवकों का उत्साह देखने लायक था l स्वयं डॉ. हेडगेवार इतने उत्साहित थे कि अपने एक उदबोधन में उन्होंने कहा की:-
“संघ के जन्मकाल के समय की परिस्थिति बड़ी विचित्र सी थी, हिंदुओं का हिन्दुस्थान कहना उस समय निरा पागलपन समझा जाता था और किसी संगठन को हिंदू संगठन कहना देश द्रोह तक घोषित कर दिया जाता था” l (राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ तत्व और व्यवहार पृष्ठ ६४ )
डॉ. हेडगेवार ने जिस दुखद स्थिति को व्यक्त किया, उसमें नवसर्जित राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और हिंदू महासभा के नेतृत्व के प्रयास से- हिंदू युवाओं में साहस के साथ यह नारा गूंजने लगा “हिन्दुस्थान हिंदुओं का- नहीं किसी के बाप का” इस कथन की विवेचना डॉ. हेडगेवार ने इन शब्दों में की:-
“कई सज्जन यह कहते हुए भी नहीं हिचकिचाते की हिन्दुस्थान केवल हिन्दुओ का ही कैसे? यह तो उन सभी लोगों का है जो यहाँ बसते हैं l खेद है की इस प्रकार का कथन/आक्षेप करने वाले सज्जनों को राष्ट्र शब्द का अर्थ ही ज्ञात नहीं l केवल भूमि के किसी टुकड़े को राष्ट्र नहीं कहते l एक विचार-एक आचार-एक सभ्यता एवं परम्परा में जो लोग पुरातन काल से रहते चले आए हैं उन्हीं लोगों की संस्कृति से राष्ट्र बनता है l इस देश को हमारे ही कारण हिन्दुस्थान नाम दिया गया है l दूसरे लोग यदि समोपचार से इस देश में बसना चाहते हैं तो अवश्य बस सकते हैं l हमने उन्हें न कभी मना किया है न करेंगे l किंतु जो हमारे घर अतिथि बन कर आते हैं और हमारे ही गले पर छुरी फेरने पर उतारू हो जाते हैं उनके लिए यहाँ रत्ती भर भी स्थान नहीं मिलेगा l संघ की इस विचारधारा को पहले आप ठीक ठाक समझ लीजिए l” (राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ पृष्ठ १४)

एक अन्य अवसर पर डॉ. हेडगेवार ने कहा था “संघ तो केवल, हिन्दुस्थान हिंदुओं का- इस ध्येय वाक्य को सच्चा कर दिखाना चाहता है l” दूसरे देशों के सामान, “यह हिंदुओं का होने के कारण”- इस देश में हिंदू जो कहेंगे वही पूर्व दिशा होगी ( अर्थात वही सही माना जाएगा) l यही एक बात है जो संघ जानता है, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के कार्यकर्ताओं के लिए किसी भी अन्य पचड़े में पड़ने की आवश्कता नहीं है l”(तदैव पृष्ठ ३८)

जब वीर सावरकर रत्नागिरी में दृष्टि बंद (नजरबंद) थे, तब डा. हेडगेवार वहां उनसे मिलने गये। तब तक वह वीर सावरकर रचित पुस्तक हिन्दुत्व भी पढ़ चुके थे। डा. हेडगेवार उस पुस्तक के विचारों से बहुत प्रभावित हुए और उसकी सराहना करते हुए बोले कि “वीर सावरकर एक आदर्श व्यक्ति है”।

दोनों (सावरकर एवं हेडगेवार) का विश्वास था कि जब तक हिन्दू अंध विश्वास, पुरानी रूढ़िवादी सोच, धार्मिक आडम्बरों को नहीं छोडेंगे तब तक हिन्दू-जातीवाद , छूत-अछूत, शहरी-बनवासी और छेत्रवाद इत्यादि में बंटा रहेगा, और जब तक वह संगठित एवं एक जुट नही होगा, तब तक वह संसार में अपना उचित स्थान नही ले सकेगा।

सन् 1937 में वीर सावरकर की दृष्टिबंदी (नजरबंदी) समाप्त हो गयी, और उसके बाद वे राजनीति में भाग ले सकते थे। उसी वर्ष वे हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चुने गये जिसके उपाध्यक्ष डा. हेडगेवार थे। 1937 में हिन्दू महासभा का अधिवेशन कर्णावती (अहमदाबाद) में हुआ। इस अधिवेशन में वीर सावरकर के अध्यक्षीय भाषण को “हिन्दू राष्ट्र दर्शन” के नाम से जाना जाता है।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापकों में से दो मुख्य व्यक्ति डा. मुंजे एवं डा. हेडगेवार हिन्दू महासभाई थे, और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने वीर सावरकर द्वारा प्रतिपादित हिन्दू एवं हिन्दू राष्ट्रवाद की व्याख्या को ही अपना आधार बनाया था, साथ ही वीर सावरकर के मूलमंत्र- अस्पर्श्यता निवारण और हिन्दुओं के सैनिकीकरण आदि सिद्धांत को मान्य किया था l

इसी परिपेक्ष्य में हिन्दू महासभा ने भी उस समय एक प्रस्ताव पास कर अपने कार्यकर्ताओ एवं सदस्यों को निर्देश दिया कि वे अपने बच्चों को संघ की शाखा में भेजें एवं संघ के विस्तार में सहयोग दें। आर.एस.एस. की विस्तार योजना के अनुसार उसके नागपुर कार्यालय से बड़ी संख्या में युवक, दो जोड़ी धोती एवं कुर्ता ले कर संघ शाखाओ की स्थापना हेतु दिल्ली, लाहौर, पेशावर, क्वेटा, मद्रास, गुवाहाटी आदि विभिन्न शहरों में भेजे गये।

दिल्ली में पहली शाखा हिन्दू महासभा भवन, मंदिर मार्ग नयी दिल्ली के प्रांगण में हिन्दू सभाई नेता प्राध्यापक राम सिंह की देख रेख में श्री बसंत राव ओक द्वारा संचालित की गयी। लाहौर में शाखा हिन्दू महासभा के प्रसिद्द नेता डा. गोकुल चंद नारंग की कोठी में लगायी जाती थी, जिसका संचालन श्री मुले जी एवं धर्मवीर जी (जो महान हिन्दू सभाई नेता देवता स्वरुप भाई परमानन्द जी के दामाद थे ) द्वारा किया जाता था। पेशावर में आर.एस.एस. की शाखा सदर बाजार से सटी गली के अंदर हिन्दू महासभा कार्यालय में लगायी जाती थी जिसकी देख रेख श्री मेहर चंद जी खन्ना- तत्कालिक सचिव हिन्दू महासभा करते थे।

वीर सावरकर के बड़े भाई श्री बाबाराव सावरकर ने अपने युवा संघ जिसके उस समय लगभग 8,000 सदस्य थे ने, उस संगठन को आर.एस.एस. में विलय कर दिया। वीर सावरकर के मित्र एवं हजारों ईसाईयों को शुद्धि द्वारा दोबारा हिन्दू धर्म में लाने वाले संत पान्च्लेगॉंवकर ने उस समय अपने 5,000 सदस्यों वाले संगठन “मुक्तेश्वर दल” को भी आर.एस.एस. में विलय करा दिया। उद्देश्य था कि हिन्दुओ का एक ही युवा शक्तिशाली संगठन हो। इस प्रकार संघ की नीतियों, पर हिंदू महासभा व वीर सावरकर के हिन्दुवाद का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था l

इस तरह डा. हेडगेवार के कुशल निर्देशन, हिन्दू महासभा के सहयोग एवं नागपुर से भेजे गये प्रचारकों के अथक परिश्रम एवं तपस्या के कारण संघ का विस्तार होता गया और 1946 के आते-आते संघ के युवा स्वयंसेवकों की संख्या करीब सात लाख हो गयी। उन प्रचारको की लगन सराहनीय थी। इनके पास महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, गुरु गोविन्द सिंह, बन्दा बैरागी की जीवनी की छोटी छोटी पुस्तके एवं वीर सावरकर द्वारा रचित पुस्तक हिंदुत्व रहती थी।

1938 में वीर सावरकर दूसरी बार हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चुने गये और यह अधिवेशन नागपुर में रखा गया। इस अधिवेशन का उत्तरदायित्व पूरी तरह से आर.एस.एस. के स्वयं सेवको द्वारा उठाया गया। इसका नेतृत्व उनके मुखिया डा. हेडगेवार ने किया था। उन्होंने उस अवसर पर वीर सावरकर के लिए असीम श्रद्धा जताई। पूरे नागपुर शहर में एक विशाल जलूस निकाला गया, जिसमे आगे-आगे श्री भाऊराव देवरस जो आर.एस.एस. के उच्चतम श्रेणी के स्वयं सेवक थे, वे हाथी पर अपने हाथ में भगवा ध्वज ले कर चल रहे थे।
हैदराबाद( दक्षिण) के मुस्लिम शासक निजाम ने वहाँ के हिन्दुओ का जीना दूभर कर रखा था। यहाँ तक कि कोई हिन्दू मंदिर नहीं बना सकता था और यज्ञ आदि करने पर भी प्रतिबन्ध था। 1938 में आर्य समाज ने निजाम हैदराबाद के जिहादी आदेशो के विरुद्ध आन्दोलन करने की ठानी। गाँधीजी ने आर्य समाज को आन्दोलन ना करने की सलाह दी। वीर सावरकर ने कहा कि अगर आर्य समाज आन्दोलन छेड़ता है तो हिन्दू महासभा उसे पूरा-पूरा समर्थन देगी।

आंदोलन चला, लगभग 25,000 सत्याग्रही देश के विभिन्न भागों से आये| निजाम की पुलिस और वहाँ के रजाकारो द्वारा उन सत्याग्रहियों की जेल में बेदर्दी से पिटाई की जाती थी। बीसियों सत्याग्रहियों की रजाकारों की निर्मम पिटाई से मृत्यु तक हो गयी। इन सत्याग्रहियों में लगभग 12,000 हिन्दू महासभाई थे। वीर सावरकर ने स्वयं पूना जा कर कई जत्थे हैदराबाद भिजवाये। पूना से सबसे बड़ा जत्था हुतात्मा नाथूराम गोडसे के नेतृत्व में हैदराबाद भिजवाया, इनमे हिन्दू महासभा कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त संघ के भी कई स्वयं सेवक थे। इस तरह 1940 तक- जब तक डा. हेडगेवार जीवित थे, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को हिन्दू महासभा का युवा संगठन ही माना जाता था।- विभिन्न स्रोत 

Monday, April 1, 2013

भारत में मुस्लिम्स लाचार, बिना अधिकार


"मुस्लिमो को भारत में सच में अधिकार नहीं" ..­

क्यों ?

"अरे क्योकि हम कह रहे है." 

आप कौन ?

"अरे हमें नहीं जानते, लो स्टैण्डर्ड पीपल, हम  हिन्दू मुस्लिम एकता कार्यकर्त्ता के सदस्य, तुम  हमें सेकुलर भी कह सकते हैं."

आप ये कैसे कह सकते की यहाँ उनको कोई अधिकार नहीं है ? कोई वजह ? 

"कैसे नहीं है का क्या मतलब ? अरे नहीं है ? आप बता दो की कैसे है ? "

अरे सबकी तरह उनको वोट डालने का अधिकार है , अभिव्यक्ति का अधिकार है , देश सभी सुविधावो का अधिकार है , कुछ धर्मनिरपेक्ष पार्टियों का कहना है की उन्ही का पहला हक़ है , और आप कहते हैं उनको अधिकार नहीं है .

"आपको  पता नहीं है मेरे साम्प्रदायिक भाई , ये जो उनको मिल रहा है देश के सविधान के अधिकार है, जो सबके लिए हैं, लेकिन उनका अधिकार कहाँ है ?ये उनका अधिकार तो नहीं, ये तो वो है, जो यहाँ सबको मिलता है ?"

तो उनका क्या अधिकार है, और उनके लिए क्या किया जाए या उनको और क्या दिया जाना चाहिए  जिससे आपको लगे की उनके भी भारत में अधिकार है, वो भी भारतीय है.

"तुम कुछ नहीं समझते, शायद तुम आजकल सांप्रदायिक लोगो के साथ रहते हो, कही आर एस एस के तो नहीं ? जरुर संघी होगे जो जरा भी बात भी नहीं समझ में आती. मेरे साम्प्रदायिक भाई, देखो  हर मुस्लिम बहुल  देशो में सिर्फ उनके ही अधिकार होते, या मुस्लिम बहुल देश तो छोडो, मुस्लिम बहुल भारत  क्षत्रो तक में सिर्फ उनके ही अधिकार होते हैं ?   बाकी जगह नहीं, पुरे देश में नहीं, है की नहीं अन्याय ? जब वो हमारे भारत के नागरिक है तो उनके ईस्लामिक अधिकारों की रक्षा का हमारा कर्तव्य बनता है, उनको ये छुट  होनी चाहिए की वो किसी का जबरजस्ती  धर्म परिवर्तन करवाए,  लेकिन यहाँ भारत में, गैरमुस्लिम का क़त्ल भी इस्लाम का  हवाला  दे करवा दे तो ये गुनाह हो जाता है, क्या ये  है मुस्लिमो के साथ न्याय ? नहीं हरगिज नहीं ? वो भारत में इस्लाम में नाम पर गैर मुस्लिमो का घर नहीं  फूंक सकते ? उनको क़त्ल नहीं कर सकते ? आखिर भारत कर क्या रहा है उनके लिए ? कुछ भी तो नहीं , भाई चारा बढ़ाना है तो उनके अधिकार हमें देने ही  होंगे ?"

क्या आपको लगता है की  भारत के मुस्लिमो को इस तरह के अधिकारों की आवश्यकता है ? क्या वो एसा चाहते हैं,  क्या आपने उनसे या उनके किसी प्रतिनिधि से बात की है ? क्या उन्होंने  ऐसी  कोई इक्षा व्यक्त की है ?

"आ गए न अपने साम्प्रदायिक  रंग  वाले  औकात पे, उनके अधिकारों की बात सुनते ही जल भुन जाते हो तुम सांप्रदायिक लोग, वो चाहे या न चाहे, वो दबे कुचले हैं, उन्हें उनके अधिकारों को याद दिलवाना होगा, तब न चाहेंगे, तुम जैसे साम्प्रदायिक लोग किसी का भला कहाँ होने देते है , क्या  अब ये  हरित क्रांति वाले क्या गेहू से पूछ के क्रांति करते हैं, सुन्दरलाल बहुगुणा ने  पेड़ से पूछ के क्रांति किया था ? मुर्ख कही के," 

और भाई जी हिन्दू ?

"ये  क्या होता है ?"

अरे माने बाकी के यहाँ के गैरमुस्लिम ?

"क्या हुआ उनको ?" 

माने उनके कोई अधिकार नहीं ?

"तुम फिर लगे सांप्रदायिक बात करने, साले भगवा, तुम लोग मुर्ख हो, तुमसे बात ही करना बेकार है. सालों तुममे न कोई तमीज है न संस्कार, बस आ जाते हो खाकी चढढही पहिन के, तमीज से बात करने की भी अक्ल नहीं, मुर्ख कहीं के, ब्लडी नॉन सेकुलर ."
  

एसा कहने वाले आप कौन ?

"उफ्फ्हो, तुम भगवो  और गैर मुस्लिमो को कौन समझाए, तुम लोगो से बात ही करना बेकार है, यू पीपुल आर कम्युनल, नाट स्टैण्डर्ड पीपल टू टाक,  कितनी बार बताये,  वी आर द सेकुलर, वर्किंग फार हिन्दू मुस्लिम्स ब्रदर हुड. यू फूल नेवर अंडरस्टैंड, सेन्स लेस गाइज,  पहले जाओ कुछ पढो लिखो, ज्ञान सीखो, और सबसे पहले मूर्खो बात करने की तमीज सीख के आओ, बेवकूफ ,बेहूदा कहिं के पता नहीं कहाँ कहाँ से आ जाते है खाकी  पहिन के ." 

ह्म्म्म जी, वी फूल पीपल ....   

Friday, March 29, 2013

मोक्क्ष की प्राप्ति



दिल्ली में मकान  मिलना  मोक्ष मिलने के बराबर है, एक अद्द्द  मकान जहाँ मिला वही आप अपने आपकी हालत वैसी हो जाती जैसे जेहादियों को जन्नत मिल गयी. दिल्ली में इस खाकसार देशी मुजाहिर को भी इसका ख़ासा अनुभव है .

मकान ढूढने के लिए आपको श्री कृष्ण की तरह सोलह कला सम्पन्न  होना आवश्यक है, कम से कम मकान देने वाले  की आवश्यक अपेक्षाएं इतनी या इससे कुछ आगे की होती है. है इतने पर भी पुलिस का वेरिफिकेशन करना आवश्यक होता है, आज श्री कृष्ण  होते तो उनका दिल जरुर टूट जाता. वही किरायेदार इसका खासा ख्याल रखता है की जहाँ मकान मिले वहां वहां के आस पड़ोस  रहने वाली बालिकाए भी मकान की तरह  या जादा खुबसूरत हो जहाँ रहने के आलावा इश्क  करने का काम भी बखूबी किया  जा सके.  वैसे हम  कई  पराक्रमियों  को जानतें है जो अपने ज्ञान का उपयोग कर दोनों  परम स्थितयों को प्राप्त कर चुके है.

जो रिश्ता संसद में पक्ष और विपक्ष का होता है उससे कम मकान  मालिक और किरदार का रिश्ता तो नहीं  ही होता.पक्ष कहता है हम किराया बढ़ाएंगे, विपक्ष कहता है साल के बीच में बढ़ाना तो सनद में नहि लिखा था. फिर विपक्ष कहता है, आपने दरवाजे  पे लगे दीमक के बारे में क्या किया ? इस महीने ही ही प्रस्ताव दिया था नया पेंट लगवाने का.  नल की टोंटी भी टूटी हुई है, पानी की किल्लत है, बियर पिने को मजबूर करती है. अब जिस दिन माकन मालिक और किराए दार में सुलह की सनद लिखा दी जाएगी उसी दिन संसद में  पक्ष विपक्ष में सुलह होगा  और देश तरक्की करेगा, अब ये कब होता है राम ही जाने.

गुलाम अली की  भासा में कहा जाए तो डेल्ही शहर में भी घर है , जिसमे हजारो लोग के अपने घर हैं, वो बात अलग है की ऐसे हजारो लोगो की नजर  पड़ोस के घर या छत  पर बनाये रखते हैं. लेकिन हम  अभी तक राजा बलि का कलियुगी वर्जन हैं. महीने के पहले दिन ही मकान  मालिक वामन अवतार ले मेरा जेब नाप जाते हैं. राजा बलि निश्चित ही भाग्यशाली थे जो  विष्णु से वन टाईम सेटलमेंट कर लिया, और हम बलि से भी सौ गुना पराक्रमी जो हर महीने जानबूझ कर जेब नाप्वाने के लिए तैयार है. कुवारी लड़की की तरह महगाई भी घास फुंस की तरह बढती जाती है और इनकम किसी बेहुदे इमानदार के इमानदारी की तरह अडिग. आफत ये की बीच बीच में ज्वार भाटा की तरह मिलनेवाला इंसेटिव भी बस भाटा ही बन रह जाता है ज्वार तो कभी आता ही नहीं.

इसमें द्वापर के एक  कार्पोरेट ट्रेनर कृष्ण का हाथ है. पुरातन काल में मैनेजमेंट गुरु वेदव्यास के पास एक व्यापारी  समूह पंहुचा.  वेदव्यास उस समय दाढ़ी को हिला हिला उसकी मजबूती चेक कर रहे थे मानो समुन्द्र मंथन में बलि का बकरा वासुकी नाग को नहीं बल्कि उनके दाढ़ी को बनाया गया था. वैसे उस समय वो अविवाहित रहे होंगे, अविवाहित  आदमी अपने बालो और दाढ़ी को ही छेड़ सकता है. देवताओं को देख दाढ़ी को छेड़ना बंदकर अपनी दिव्य दृष्टी उठायी, “बोलो क्या काम है?” देवता बिना चुके कह उठे  “ गुरुवर हमारे एम्प्लोयी पगार और इंसेंटिव बढाने की मांग करते हैं इसके बिना कोई भी भाला, तीर धनुष इत्यादि बनाने को तैयार नहीं है, सारा काम ठाप्प पड़ा हुआ है, अमेरिकवादी भक्त लोग तपस्या कर अश्त्र् शश्त्र की डिमांड करते हैं,  एसा रहा हो तो, हम भी वर पूरा करने के रोजगार से बोजगार हो जाएगे, और दिवालिया हो  आपकी तरह मैनेजमेंटगुरु बनाने को मजबूर होना पड़ेगा.

उन दिनों वेदव्यास की दाढ़ी आजकल के नवयुवतियों के बाल की तरह लम्बी थी, उसमे शैम्पू कंडिशनर लगता भी था या नहीं, ये शोध का विषय है. माना जाता है ये अर्थिंग का काम करती थी ,जो आसपास के वातारण से ज्ञान सोख दाढ़ी के रास्ते दिमाग को आपूर्ति करती थी.  
वेदव्यास व्यस्त थे  या सरकारी कर्मचारी की तरह टरकाने की गरज से दायें और अंगुली दिखा दी जहाँ कृष्ण बासुरी बजाने के बाद पर्स से निकाल राधा का फोटो देख रहे थे.
देवता दल पहुचे व्यथा दुहराई.
कृष्ण ने शंका पूर्वक देख मुस्कराए, फिर मन्त्र दिया, और मातहतो को सुनाने के लिए कहा गया, मन्त्र था, “कर्मणे वाधिकारस्त , माँ इंसेटिव पगारम  कदाचन: “ फिर बोले, “अब चुकी यह मेरी जबान से निकला है सो जनता अब चुप रहेगी, सरकार के फरमान निकलने के बाद कोई कुछ बोलता है क्या ?
देवता खुश,लगाया उपाय जो काम कर गया. बाद में वो देवता लोग “ हैवेन अर्थ कल्चरल  एक्सचेंज  प्रोग्राम “ के तहत पृथ्वी पे आ  मुंशी मैनेजर बन गए, इस्लामिस्ट की तरह वह यहाँ के रंग ढंग और संस्कृति में नहीं ढले आज भी अपने को भगवान् समझते हैं और  जहाँ तहां कटौती करते हैं .

हाँ अब आईये मुद्दे पे, क्या था ?  मोक्ष , नहीं मकान, हलाकि बात एक ही है.
एक बार ‘मकान एक खोज” के हमने भी  गली गली की धुल फांकी जिससे गलिया धुल मुक्त और साफ़ सुथरी हो गयी, हालाकि ये साफ़ सफाई आजकल बेरोजगार भी बखूबी करते हैं. या यूँ कह सकते हैं सरकार साफ़ सफाई चाहती है इसलिए इन्हें नवयुको को बेरोजगार रखती है.

काफी  कार्यकर्त्ता प्रयास करने के बाद टिकट रूपी एक पता मिला जहाँ पहुचने पे पता चला की मकान मालिक जी भगवान् को रिश्वत देने की प्रक्रिया में है. एक हाथ में आग लगी अगरबत्ती, और दुसरे हाथ में घंटा लिए भगवान्दो को घूरे जा रहे थे, बीच बीच में बगल में रखा सुखा लेकिन मजबूत नारियल की तरफ भी देखते थे मानो कह रहे हो अबकी इक्षा पूरी न की तो यही नारियल  पैर की जगह कहीं और फोड़ दूंगा. दो घंटे तक  घंटे तक भगवान् को धमकाने के बाद उन्होंने हमारे मुखमंडल को निहारा. 

वह  लम्बे वालो एक औरतनुमा मर्द था. शायद देखते ही समझ गया था की मई क्यों आया हूँ . नाक में कानी अंगुली घुसा के नाक से  अंगुली साफ़ करते हुए बोला, “लड़की नहीं लाओगे”, अचानक धमाक से बम फोड़ते हुए   उसने मेरी नब्ज पे हात रख दिया था. मैंने पूर्व में कितनी कोशिश की थी की कोई माकन मालिक ये शब्द कहे और मई मन मसोस कर रह जाऊं हाय अब नहीं ला सकता, लेकिन जब लेकिन जब मुद्दा ही न हो तो अफ़सोस किस बात का ?हलाकि घर पर प्रेयसी लानो वालो को मई टनो गालियाँ देता, जिसको सुनकर कोई विद्वान गाली पुराण या या गाली – ये – हदीस  लिख जाए तो भविष्य में उत्तर प्रदेश के नेतावो के  इस “विशेष भासा शब्दकोष”  की “कुंजी” बन सकती थी .  

“नहीं नहीं आंटी मई उन लंपटो(ऊपर से, मन से उन सौभाग्शाली)  में से नहीं, जो आफिस की बजाय घर पर अवैध कार्य करते हैं”  मैंने दांत  निपोर के कहा. वैसे भी वर्तमान सरकार जैसी मेरी  स्थिति नहीं थी की  बाहरी ऍफ़ डी आई घर में लाता.

फिर काफी देर तक इधर उधर (नौकरी और तनख्वाह मिलने की तारीख की बाते करते रहे. फिर नाक में से अंगुली निकाल बनियान में पोछते हुए अगली शर्त रखी “हम लोग शाकाहारी है, हमारे घर में मांस आज तक नहीं पका, तुम भी नहीं  पकाओगे.” मुझे लगा गोया फ़्लैट किराये पे नहीं बल्कि लड़की के साथ ढेर सारा दहेज़ दे  अपनी बात मनवाने की कोशिश कर रहे हों. हँह,  शाकाहारी, क्या भेजा मांस में नहीं आता,  मापने लायक लायक कुछ होता तो  ५ एकड़ खा चूका था . क्या जमाना आ गया है , कभी सुना था बिहार के  एक मुख्यमंत्री माँसाहारी से शाकाहारी हो चुके है,  गाय  बकरा छोड़  उसके चारा को खाना शुरू कर दिया है, और  यहाँ यह दूसरी प्रजाति, शाकाहार  के नाम मेरे दिमाग का बाल्तकार किये जा रहे  है .  
"जी, मुझे  बनाने नहीं आता”,  अपने दातो को दुबारा बाहरी दुनिया दिखाते हुए बोला.

इसके बाद उन्होंने दो चार क्लाज और रखे जैसे की आमतौर सभी धूर्त रखते हैं और हम उनके शर्तो को जहर की तरह शंकर बन आत्मसात करते  रहे.  

मुझे वैसे भी उनकी सारी  बात मानाने में भलाई लगने के कई कारन थे, एक तो मुझे एक नए फ़्लैट की शख्त जरूरत थी दूसरा इनका  लड़का जो इनके बगल में खड़ा मुझे लगातार घूरे जा रहा था,  ६ बाई ३ का एक बढ़िया क्षेत्रफल रखता था , उनकी साड़ी शर्ते मनानी जरुरी ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य वर्धक भी थी . बाद में सुनने में आया की वह एक  प्रतिभाशाली लुच्चा है, और उसकी दोस्ती एक स्थानीय नेता से भी है और इसी गति से कर्मठ रहा तो भविष्य में उसका प्रमोशन बाद  गैंग्स्टर बनान तय है, और यदि लड़के ने दिमाग लगाया तो नेता जी को निपटा के उनके स्थान पर टिकट भी ले सकता है, नेता जी भी इसी विधि से किराने की दूकान बेच, अपने पथ प्रदर्शक को निपटा  नेता बने थे जैसा की आमतौर पर आजकल के अधिकंश्तात  नेतान्नोमुख लोग करते हैं .  उदहारण के तौर पर केजरीवाल को लिया जा सकता है जो अन्ना को निपटा नेताबाजी का भरपूर मजा ले रहे है .वास्तव में वह एक जिम्मेदार व्यक्ति था, जिम्मेदारी के साथ ठेका ले एक मुश्त वोट डलवाना, जिम्मेदारी के साथ सुनदर स्त्र्री देख दिल पे काबू न कर पाना, जिम्मेदारी के साथ बिना बात के लड़ना उसके विशेष रुचियों में से एक था, सारी बतकही यहाँ बता नहीं सकता, बाकि आप लोग अनुभव से सूंघ सकते है आपके ऊपर छोड़ता हूँ.

सब मिला के वह कमरा मुझे मिल गया है,  कुल मिला के दो साल का कारावास उसी कमरे में काट चूका  हूँ, अब उस मकान मालिक के लफंगे रत्न को किसी के गले मढने की तयारी की जा रही है, फलतः मुझे कमरा खाली करना है, और एक बार फिर मोक्ष की खोज में निकलना है.

कमल कुमार सिंह 

Thursday, March 28, 2013

आतंकी आईटम हराम, आतंकी हलाल

कोंग्रेसी सांसद फौजिया खान के स्नेही- "हलाल आतंकवादी  अबू जिंदाल " 

 जब अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान है, या यूँ मान ले अल्लाह गधो पर ही मेहरबान होता है, क्योकि ये जिसपर भी मेहरबान होता है वो सिर्फ चारो तरफ ढेंचू ढेंचू करता है,  दुसरे की नहीं सुनता. जिसने भी ये कहावत कही होगी वो किसी न किसी दिन सत्ता पक्ष में जरुर रहा होगा या फिर कोई सेठ रहा होगा जो जिसको सुबह शाम उसका कुत्ता सडको पर घुमाता होगा या कुकरम करने वाला कोई धर्मगुरु.  

आजकल स्पेशली  हिन्दुस्तान के लिए एक स्पेशल अल्लाह डेपुट हुआ है जिसका नाम  सरकार है, कोंग्रेसी सरकार, इस अल्लाह का लोगो के  भाग्य का फैसला करने का एक स्पेशल रेंज है -गरीब तबका, पैसे वाले क्षेत्र में इस भगवान् का काम धाम ठप्प हो जाता है, या यूँ कह ले दान दक्षिणा ले अल्लाह खुश हो जाता है.  ये भारत भाग्य विधाता टाइप टाइप के  स्पेशल आईटम के दो मुह है, एक खाने के एक निकालने के हलाकि है दोनों मुह. सेठ के कई कुत्तो की तरह इनके भी श्वान है जो ये मानते है की न्याय पैसे के हिसाब से होना चाहिए. 

१९९३ में  संजय दत्त को अवैध  हथियारों के मामले गिरफ्तार किया गया, जिसमे साफ़ था की संजय दत्त के घर में किसी ने अनजाने में नहीं रखा बल्कि संजय के शौक का इसमें पूरा हाथ था. जबकि जेब्बुनिशा के घर में यही हथियार कुछ दिन तक किसी ने रखा था लेकिन जेब्बुनिशा की मर्जी इसमें थी, ये कहीं साबित नहीं हो सका, न ही उनका या उनके दिमाग या हाथ का   किसी  तरह के  "भाईवाद" या आतंकवाद में  शामिल होना पाया गया, उनका गुनाह था तो बस इतना की यह हथियार  बस कुछ दिन तक उनके घर में आराम फरमा रहा था. यदि जेब्बुनिशा की यही मात्र गलती है तो बाकियों को क्यों बक्शा जाय ?

 हथियार जिन्न की तरह प्रकट तो नहीं हुआ, वह गाडी भी उतनी दोसी है, बाहर से आया तो किसी रास्ते से आया होगा, वह रास्ता भी दोसी है, उन सबपे मुकदमा चलाना चाहिए जिस रास्ते, निर्जीव चीजों से होकर  यह हथियार गुजरा, भले उनका कोई रोल न हो, आखिर जेब्बुनिषा का घर भी एक निर्जीव चीज है और सजीव जेबू की  इसमें कोई मर्जी नहीं दिखती यहाँ तक की कानून की नजर में भी नहीं सिध्ह हुआ. यदि फिर भी सरकार या कानून इनको दोसी सिर्फ इसलिए मानती है की अनजाने में ही सही हथियार इनके घर में तो पाया गया. 

 दोस्तों याद है आपको वो कोंग्रेसी सांसद फौजिया खान जिनके घर में कुछ समय के लिए ही सही लेकिन आतंकी अबू जिंदाल था  खुद  फौजिया ने भी इस बात का माना है लेकिन ये मानने से इनकार कर दिया की उन्हें उसके आतंकी होने की जानकारी थी. अब देखिये फौजिया और जेबुनिषा दोनों अनजान लेकिन एक कानून के गिरफ्त  में और एक आजाद शायद  आतंकी आईटम हराम, आतंकी हलाल है ,   फौजिया पर क़ानून   और सरकार की आँखे कई कारणों से मूंदे हैं वह यह की फौजिया, इस ७० साला जेबुन्निषा की तरह गरीब नहीं, नहीं फौजिया इस बुजुर्ग की तरह बेबस है, और सबसे बड़ी  और  अंतिम बात, अरे भाई फौजिया कोंग्रेसी है. 

कमल कुमार सिंह 

Wednesday, March 27, 2013

सेहतमंद, दौलतमंद और अक़्लमंद बनने का साइंटिफिक मैथड


भाईयों हर आदमी आज  टकाटक, फटाफट अमिर बनना चाहता है, इसके लिए की पूजा करता है, कोई नमाज पढता है, और कुछ बिदेशी धन से अपनी  डाक्टरीयत झाड़ते हैं. कुछ हम जैसे भी है जो सुबह सुबह उठ के पार्क में जा के  सेहत चूसते है, धन के लिए आफिस जाना होता है, अक्ल के लिए अच्छे अक्लमंद लोगो के साथ कुछ अक्लमंद लोगो के लेख पढ़ते है, और यही हमें बचपन से सिखाया  भी गया, "जिसका जैसा संग, वैसा होगा मन". 

यदि पूजा पाठ और नमाज से लोग आमिर बनते तो मंदिर का पंडा और मस्जिद क मुल्ला धीरुभाई  के साथ उठाना बैठना होता, अलबत्ता मैं तो यही जाना है की ये सब बस  माध्यम  है जहाँ अच्छे लोग पाए जा सकते हैं , लेकिन कुछ लोग इन सब की आड़ में  अपने बिदेशी पैसे का हक़ अदा करते हैं. यदि कोई तर्क दे की नियम पूर्वक नमाज पढने की आदत से लोग सुबह उठते हैं  जिससे लोग आमिर बनते है तो हसी आती है,  ये चोरो के लिए की एक अच्छी बात हो सकती है. '

क्योकि एक शातिर चोर रात के अंतिम बेला, और ब्रम्हा मुहूर्त में उठ भगवान्/ अल्लाह का नाम ले  पैसे से परिपक्व घर को चुनता है, मौका लगा तो हाथ साफ़ कर कुछ दिन का आमिर बन जाता है, फिर इश्वर को साधुवाद  देता है.  यदि इस  प्रकार का फायदा है तो ला हौल बिला कुवद. 

मेरा एक मित्र था, वह नियम पूर्वक  सुबह सुबह उठ, सड़क पर खड़ा हो तमाम आने जाने वाली महिलाओ को ताका करता था पूछने पर पता चला की "उस्किवाली " उस नियत समय पर उसी रास्ते से आती जाती है, जिसको देख वह "फील गुड " करता है, और उसका चेहरे और दिल का  स्वास्थ्य अच्छा होता है. 

सब मिला के  विदेशी पैसे के एक  विदेशी धर्म एक्सपर्ट मूर्खा वन्दनीय  श्री श्री धमालेशवर महाराज जी के, कहने के मतलब था सुबह उठो, लेकिन इसका श्रेय का कनेक्शन "लेखक मोहम्मद" के एक टाइम टेबल नुमा पुस्तक से जोड़ कर निचोड़ निकाला की सुबह उठो या मत उठो इस टाइम टेबल का फालो करो अब चुकी ये टाइम टेबल बिदेशी है तो उम्दा है वैसे भी लोग भारत में बिदेशी चीजो का बहुत क्रेज है चाहे सरकार की अध्यक्षा  हो या टाईम टेबल या टाइम टेबल के मानने वाले एक शब्द में  हम इस प्रकार के लोगो को "बताशेबाज" कहते हैं क्योकि इनका टाईम टेबल ८० साला बुजुर्ग के दिल की तरह है जो बात बात में झटका खा जाता है, उस पर खतरा मडराने  लगता हैं, नाजुक तो  बताशे से बभी जादा.

खैर अब मुद्दे पे आते हैं, अब बात है सुबह उठने की, हो सकता है नींद न खुले, या पब्लिक आलसी हो जाए तो मुझे एक और  नुकशा सुझा है, अमल फरमाएं, शाम को  खाना के बाद सोने से पहले तीन चुटकी त्रिफला चूर्ण गरम पानी के साथ ले, और सो जाएँ, विश्वाश माने  ब्रम्हा मुहूर्त में आपके पेट में कर्बला होने लगेगा, तब  शहर के लोग सोने के  १० फीट की दुरी जा और गाँव के लोग लोटा ले दौड़ लगा दें तो  युध्ध विराम हो जायेगा, इससे आप शांति और सेहतमंद महसूस  करेंगे, साथ स्वास्थ्य लाभ भी.  सब मिला के टाइम टेबल से बेहतर है हिन्दुस्तानी त्रिफला और शौचालय, क्यों क्या कहते है  आपलोग ? 

कमल 

Sunday, March 17, 2013

इस्लामिस्ट कभी खुश नहीं रह सकते - तसलीमा

बांग्लादेश एक इस्लामिक देश है, हर इस्लामिक देश की तरह यहाँ के गैर मुसलमान  अपने खिलाफ हुए अन्याय की प्रतिक्रिया नहीं दे सकते 

हिन्दुओ के जले घर , - नोवाखली 

बांग्लादेश में मुसलमानों ने हिंदुवो के घर और मंदिर जलाये, क्या  वो इस्लाम के  विरोधी या इस्लाम के लिए खतरा थे ?
"नहीं "

तो फिर मुसलमानों का उनके ऊपर आक्रमण क्यों ?
"क्यों की मुसलमान  बांग्लादेश को विशुध्द रुप से दारुल इस्लाम बनाना चाहते हैं जहाँ, गैर मुस्लिम के रहने पे रोक हो ."

यदि गैरमुस्लिम बांग्लादेश छोड़ दें तो क्या मुसलमान खुश रहेंगे ?
" नहीं तब वो अहमदिया और नॉन सुन्निस को को मारेंगे"

यदि नॉन - सुन्नी भी बांग्लादेश छोड़ दें तो क्या वो खुश रहेंगे ?
" नहीं, तब वो उन सुन्नियो को मरना शुरू करेंगे जो ५ बार नमाज नहीं पढ़ते, या जो रमजान के महीने में रोज उपवास नहीं रखते"

अब तो  खुश रहेंगे ?
"नहीं"

क्यों ?
"अब उन्हें नरक का डर रहेगा", की क्यों इतने लोगो ओ मारा "

अब वो क्या करेंगे ?
"अब वो हज  करना मक्का जायेंगे "

---- तसलीमा नसरीन द्वारा . (http://freethoughtblogs.com/taslima/2013/03/17/islamists-are-never-happy/)


शायद तभी ये कहावत बनी होगी " नौ सौ चूहे खा के बिल्ली चली हज को

सादर

कमल






Wednesday, February 20, 2013

मीडिया फिर बनाएगी हिन्दुओ को हत्यारा



तिथि - 19 फ़रवरी 2013. अशांति का क्षेत्र - गाँव - हेरोभंगा , पी एस कैनिंग. जिला दक्षिण 24 परगना.

मुसलमानों के बाहर से हजारों की दसियों वहाँ एकत्र हुए. बड़े पैमाने /  गंभीर रूप से घायल है और अस्पताल में भर्ती कराया. 2 पुलिस वाहनों जला दिया.

गड़बड़ी बसंती, जयनगर , कुलतली  जैसे अन्य  क्षेत्रों में फैल गया. इसके अलावा संदेशखाली   उत्तर के क्षेत्र में 24 परगना जिले के लिए.

ट्रेन सियालदह पर बंद कर दिया कैनिंग लाइन.

ये सभी एक "मौलवी  कल रात की हत्या की प्रतिक्रिया में हुआ. कोई नहीं जानता कि इस मौलवी की   हत्या  किसने की क्यों की ? हलाकि की मौलवी के बैग से ११ लाख रूपये बरामद हुए हैं , वो कहाँ से ये ? कर दी है, जो उसकी हत्या की है. एक अन्य मौलवी  नाम अब्दुल वहाब अज्ञात शरारती तत्वों द्वारा किया गया है इस हमले में घायल हो गए.

हेरोभंगा  के क्षेत्र में, जहाँ तक मुझे पता है, वहाँ किसी भी हिंदू संगठनों का कोई अस्तित्व नहीं है. सुबह  मौलवी  के मृत शरीर के बाद, सभी मस्जिदों से पास, मुसलमानों के लिए बदला लेने के लिए इकट्ठा बुलाया गया. फिर मुसलमानों की एक बहुत बड़ी भीड़ निकटतम गांव 'Naliakhali' पर हमला किया. यह पूरी तरह से किया गया है नीचे जला दिया और लूट लिया - 200 घरों के बारे में कुल. पैसे, आभूषण, चावल, धान, साइकिल, मोटर बाइक, बर्तन लूट लिया और मोटर वैन से दूर ले जाया सहित सभी लेख. गांव के मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया है. महिलाओं को पीटा रहे हैं.
आगजनी और Naliakhali गांव की लूटपाट के बाद, भारी भीड़ अन्य गांवों के लिए रवाना हुए. गोपालपुर गांव में 3o हिंदू घरों को लूट लिया गया है और जला दिया. यहाँ केवल प्रशांत अधिकारी घर में सब कुछ लूट लिया, उसकी चावल और 1 बोलेरो कार के 4 शेयर नीचे जला दिया गया है. इस गांव में, वहाँ 4 मुस्लिम घरों रहे हैं. उन्हें कोई नुक्सान नहीं हुआ है . 

हेरोभ्न्गा  गांव में, 40 हिन्दू घरों और गोलदार गांव 40 हिंदू घरों में जला दिया गया है. इन सभी पुलिस की उपस्थिति में हुआ. यह सूचना दी है कि प्रशांत अधिकारी के घर की लूटपाट और आगजनी के समय पर, कैनिंग एसडीपीओ वहाँ उपस्थित था और सब कुछ चुपचाप देखा के रूप में अगर वह यह के पूर्ण समर्थन में है.
कुल / इन 4 गांवों की संपत्ति की क्षति के करोड़ों रुपए में होगा.
मुसलमानों द्वारा लक्ष्मी  (38 वर्ष) सहित 5 हिंदू महिलाओं से गंभीर छेड़छाड़  की गयी . एक स्थान पर, 
सचिन सरदार, बिमल प्रमाणिक और गोपाल सरदार की किराने की दुकान के सैलून की दवा की दुकान पर हमला कर दिया गया है और क्षतिग्रस्त.

शरीफ के निकट गांव कोरापारा  में अनुसूचित जाति के हिंदुओं पर हमला किया गया है और पिटाई. पुलिस और प्रशासन उनकी पूरी स्थिति नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं. और विभिन्न क्षेत्रों से कोलकाता और मलिकपुर के दर्जनों मुसलमानों की ट्रक के दर्जनों सभी दिन कैनिंग की दिशा में नेतृत्व किया.  बड़े पैमाने पर क्षति और हिंदुओं के अपमान के बाद, अंत में प्रशासन कोई ठोस कदम उठाया मुसलमानों की हिंसा रोकने.
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 इतना सब हो तह है और देश का मिडिया सो रहा है, अब जरा सोचिये यहीं यदि बस कोई एक हिन्दू किसी मुस्लिम को थप्पड़ भी मार देता तो मिडिया उसे हत्यारा बता के खबरों के बाजार में बेच देता.  या मीडिया इसे तब तक नहीं बताएगा जब  हिन्दू प्रतिक्रिया देना शुरू नहीं करते.  हाँ सुदर्शन समाचार ने  के साथ  एक दो समाचार पत्रों ने इनके इस्लामी अभिव्यक्ति की  खूबियाँ जरुर बताई, और बाकी इन्तजार कर रहे है  कब हिन्दू को हत्यारा बताया जा सके .