नारद: February 2012

Wednesday, February 29, 2012

खूबसूरत चंदा



१८ साल का एक लड़का अपने ज़माने में एक एक लडकी पे फ़िदा था. अच्छी बात है , इसमें बुरा क्या है ? प्यार और आकर्षण होना इस उम्र में आम बात है. लेकिन दिक्कत ये थी वो कोई भी काम अकेला न करता, थोड़ी थोड़ी सबसे मदद मांगता अकेले की हिम्मत न थी. 

दोस्तों क पास गया, समस्या बताई, मित्रों ने मिलकर भागीरथ प्रयास किया तो उसका नाम पता चला, नाम था चंदा (इस नाम की युवतियाँ कृपया संयोग मात्र समझे). जिससे जितना हो सका सहयोग राशि प्रदान की ताकि उस सुंदरी के लिए एक तोहफा आये, खैर ये भी हो गया, बात भी आगे बढ़ गयी, सब सेट हो गया. तो उक्त प्रेमी बालिका को ले के नदारद हो गया.औ र गाज दोस्तों पे पड़ी,  काफी कुछ आमतौर वही सब हुआ जो अपराध में साथ देने के मामले में होता है.  लड़के पछताते रह गए की हाय रे किस्मत जिसको चंदा के लिए चंदा दिया उसी ने फसा दिया. 
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इस मामले से पता चलाताब है की चंदा में कितनी शक्ति थी की चंदा के लिए चंदा देने वाले विपत्ति में और और चंदा के लिए चंदा लेने वाला मजे में, कमोबेश यही हालत आजकल हमारे आस पास भी हो चुकी है. 

कुछ संघटन के नाम पे चंदा माँगते हैं कुछ पार्टी के नाम पे चंदा की खूबसूरती में कमी आते ही लोग चंदा को सवारने में लग जाते हैं ताकि धंधा मंदा न पड़े और जब सच्चाई पता लगती  है तब तक  पैरों से जमीन खिसक चुकी होती. और चंदा देने वाला अपने को ठगा महसूस करता है 

चाहे राजनितिक व्यक्ति हो या समाज सेवक चहु और  बस चंदा ही चंदा. चंदा का धंधा मंदा पड़ते है लोगो को बुखार आ जाता है, भूख मर  जाती है तो लोग अनशन पे उतारू हो जाते है, एक तीर से दो निशाने, चंदा के गम भूख  तो लगनी नहीं तो अनशन कर थोडा रास्ता बनाया जाये. इस लिहाज से देखा जाए तो टीम इंडिया के लगातार हारने से बेहतर है की मैच फिक्स कर लिया जाए जब तक सितारे साथ न हो, कुछ न कुछ तो लाभ अवश्य हो जायेगा. 

यदि राजनितिक चंदे  की बात की जाए तो नेतागण जनता का  वोट रूपी चंदा लेके अन्ना की तरह कहाँ गायब हो जाते पता ही नहीं लगता. जीतने के बाद फिर शुरू होता है असली चंदे का खेल. आईये चंदे का प्रभाव कुछ प्रदेशों में देखें. 

उत्तर प्रदेश:-कांशीराम की सर्वजन हिताय, सर्वमान्य  बहन जी को सांस लेने से लेके सोने तक को चंदा.चाहिए.. 
बिहार :- नितीश को मिडिया का सहयोग रूपी चंदा चाहिए. वैसे यहाँ के लालू जी जानवरों तक से सहयोग लेने में नहीं हिचकते थे. 
झारखंड : मधुकोढा जी चंदा के लिए कोड़ा तक इस्तमाल करते थे बात वो अलग है की सब खोडा हो गया. 
छत्तीस गढ़ :  रमन रमैनी मनुष्य से ले के जंगल तक किसी को नहीं छोडते. 
पंजाब : कप्तान साहब का सहयोग कोंग्रेस की पूरी जमात करती थी. 
राजस्थान : मदेरणा  को भंवरी का चंदा ( क्या था सबको मालूम है ).
कर्णाटक : जमीन खोद के बलात् चंदा ले लेते हैं भाई.  

ये तो हैं  कुछ राज्यों की बाते. अब आईये जरा कुछ संघटनो पे प्रकाश डाले. 

नवज्योति :  समाज कार्य के नाम पे उगाही करना और चंदे का पैसा मार कर दलील देना की वापिस चंदे वाले गुल्लक में डाला जायेगा. 

इंडिया अगेंस्ट करप्शन: इनकी तो महिमा अपरम्पार है, ये  जनजागरण के नाम पे जनता के इमोशन का चंदा लेते हैं, फिर चक्र्वृध्धि ब्याज की तरह आर्थिक चंदा लेने के बाद खुद सोते हैं. अरविन्द का वोटरलिस्ट में नाम नहीं, अरविन्द नींद में हैं उनको पता नहीं. अन्ना कभी कभार जाग जातें हैं बशर्ते ठण्ड का मौसम न हो.६५ हजार की संपत्ति वाले अन्ना चंदे के बूते न जाने एसी इन्नोवा में यात्रा और महंगे इलाज करा चुके हैं, मनो लगता है उनके लिए रूपये की कीमत अभी भी ५० साल पुरानी वाली है जब ५ किलो चावल ४ रूपये में आता था.
चंदा लेने के लिए सर्वमान डैडी गाँधी (मेरा नहीं -जिसका हो वो संज्ञान ले ) का सहारा लिया. जब तक जनता समझ पाती तब तक मौसम निकल चूका था और मेंढक की भाँती जमीन के दस फूट नीचे घुस चुके थे . 
खैर अब ठण्ड का मौसम जा चूका सो आईसी अपने दूकान में एक नया प्रोडक्ट ले के आई है -"राईट तो रिकाल"

अबकी भी देखा जाए जनता से किस प्रकार का कितना चंदा मिलता है, बशर्ते स्थिति उस १८ साल वाले लडके जैसी न हो . 

सादर कमल 
२९/०२/२०१२ 

Friday, February 17, 2012

लेखन की दुकान





आश्चर्य मत मानिए, लेखन की भी दूकान होती  है, 
और यहाँ भी जादा से जादा ग्राहक की डिमांड होती है
यही   व्यवसाय ऐसा  जिसमे आय की कोई गारन्टी नहीं है 
अलबत्ता आपकी जेब से ही जाना निश्चित है 

 साहित्य के  ग्राहक  भी दूसरे किस्म के  होते हैं  
बिना पैसे के भी चीजों को नहीं लेते  है ,  
दुकानदार एक लिख, दिन के दस चक्कर लगाते है , 
कोई ग्राहक  आया की नहीं, बार बार जांचने आते  है 

 कुछ चोर  ग्राहक  दूसरे का माल अपनी दूकान में लगाते  हैं  , 
कुछ  चुपचाप मोल भाव कर जाते  और चुपके से खिसक जाते हैं.


आखिर हमें  भी  जानने का है अधिकार की  माल कैसा है . 
कहीं देखि है एसी जमात जहाँ का  दुकानदार, जांच परख  के लिए बैठा है ??
 बाकी की जमात  पैसे भी लेता  , और गाली भी देता  हैं. 
इस व्यवसाय के अलावा कहीं भी चले जाईये,
खुद ही जांच कर आईये ,

 सीमेंट में बालू , दाल में कंकड, रिश्तों में खटास  राजनीती में धर्म, की मिलावट है, 
और जो आपने उनपे अंगुली उठाई तो आपकी हजामत है. 

राजनीतिज्ञ तो जाति,  धर्म , भेद , क्षेत्र की इतनी  मिलावट करते हैं, 
और उलटे माप दंड विभाग को आँखे भी तरेरते  हैं , 

चिकित्सक  इलाज तो मलेरिया का करता है, 
बाद में आपका दिल किसी और के सीने में धडकता है.

अभियंता  मकान  का नक्शा बताता है, 
साल भर बाद वही मकान  किसी नक़्शे में नहीं आता  है . 

समाज सेवी सेवा के नाम का फंड करोडो लेते हैं , 
बाद खुद समाज से अपनी सेवा के लिए रोते हैं , 

शिक्षा का भी दूकान जम के फूल रहा है, 
स्कूल -कोचीन से जम के डोनेशन जो मिल रहा है.

मैंने कहा एक भाई से , व्यंगकार हूँ मेरा व्यंग सुनोगे ??
बोला, सुन तो मै लूँगा , बदले में क्या दोगे ? 

मैंने कहा, मेरे तो बस मेरा व्यंग रूपी ज्ञान है , जिससे दुनिया अनजान है , 
सुन  ले ज्ञान की बात की  आँखे खुल  जाएँगीतू  तो बस लेने में परेशान  है.

बोला, भाई सुन , क्या तेरे ज्ञान से मेरा पेट भर जायेगा , 
दो पेग के बिना  भी क्या मेरी आँखे  खोल  पायेगा ? 
पहला व्यंग सुनने जब सौ रूपये देगा,तो दुसरे पे डिस्काउंट हो जायेगा, 
अच्छी न हुई फिर भी वाह वाही पायेगा,तीसरा फ्री हो जायेगा 

इतना सुनके मेरे दिल को लगा अघात , 
पोथी पत्रा फाड़ के  मै गया वहीँ ताप 
अब नहीं पूछता किसी से की मेरा व्यंग  सुनोगे ,
सिर्फ मैसेज भेजता हूँ , मेरा भी  लेख  है ,आप पढोगे .. 
कमल (18/02/2012)

Friday, February 10, 2012

"माँ की आँख"- के आँसू

माँ एक पवित्र शब्द है ऐसा शब्द जिसके आगे भगवान भी झुकता है , लेकिन अपने देश की एक पार्टी ने भी विदेश से आयातित एक इम्पोर्टेड मम्मी नियुक्त किया है, जिसके नमकीन आँसू में में आप व्हिश्की मिला के पी लें तो चखने को कोई जरुरत नहीं हाँ आवश्यकतानुसार बर्फ जरुर मिला सकते हैं. 

इस मम्मी को भगवान ने सब कुछ दिया, लेकिन सोलहो आना ठीक ठाक पुत्र न दे पाए, एक अमिताभ वाले "पा "फिल्म के चरित्र जैसा है, बड़ा तो हो गया लेकिन बेबी का तमगा लगा हुआ है, एक पागल, एक चोर और भी  ढेर सारे व्याधियों से युक्त, एक बेटी और दामाद भी मिला तो वो भी इतना स्वार्थी की अपने बच्चो को भी अपने साथ राजनीति के काम पर लगा दिया, ये जानते हुए की चौदह साल से कम उम्र के बच्चों से काम करवाना अपराध है .  शायद फैक्ट्री में ही कमी रही होगी या कच्चा माल में, सो इनके  बेटे भी अजीबो गरीब हैं, हलाकि इनकी संख्या भी रावन के पुत्रों के बराबर ही है फिर भी मेघनाद और अक्षय कुमार टाइप में बस कुछ लोग ही कुख्यात हो पाए. 

एक तो अपने है लुंगी वाले, सिद्धांतों के मसीहा, बीवी का हरम हो या संसद,  सिध्द्धांत  वश लुंगी नहीं छोडते या क्या पता  लुंगी में घोटाले छुपा के रखे हैं जो पैंट की जेब में नहीं आ पाता शायद. 
खैर ये उनकी अपनी व्यक्तिगत समस्या है अपन से क्या ?? 

एक और  लाडले सुपुत्र है जिनको एम्. पी . वालो ने लात मार के भगा दिया,और तब से वो विप्क्षित से रहने लगे हैं, और कहा जाता है न की कमजोर पुत्र से माता को जादा लगाव होता है , सो मम्मी जी को इस दिमागी विकलांग से भी खासा लगाव है. 

एक हैं अपने कानून बनाने वाले मंत्रालय के लाडले, कहा जाता है न संगत से गुण होत है और संगत से गुण जात , या आप " खरबूजे को देख खरबूजा रंग पकड़ता है " मुहावरा भी सेट कर सकते हैं. सो विकलांगो के टोली के साथ रहने से कुछ प्रभाव इन पर भी आ गया है. 

और सारी बाते चुनावी ज्वार के ज्वर में इस तरह से आ रही हैं जैसे देखने वालो के सामने लड़की का अवगुणों को छिपा, के उसे  बढ़ा चढा के अच्छा बताया जाता है.  

हालिया बयान में इन्होने कह दिया "आतंकवादी  जब मारे गए थे तो माता जी बहुत रोयीं थी."  

पता नहीं ये सच कह रहे थे या झूठ, या सिर्फ मुसलमानों की सहानुभूति हेतु, लेकिन इस पागल को क्या पता की मुसलमान भी उन्हें आतंकवादी ही मानता है सिवाए इन चुनाव वाले विकलांगो को छोड़ और अब समझ में आया की ओसामा के मारे जाने पर पार्टी ने क्षोभ क्यों जताया था. 

आज तक किसी का बयान नहीं आया की पार्टी ददिया सास, पार्टी के पापा और पार्टी के देवर के मरने पर पार्टी की मम्मी की आँखों में आँसू आये,जो माता इतने कठिन परिस्थितयों में भी हिम्मत से काम लिया,  जिसका ह्रदय विचलित नहीं हुआ वो अपने बच्चो के लिए रो पड़ी. आशा है आने वाले भविष्य में भी ये माता अपने बच्चों ,अफजल गुरु पे यूँ ही स्नेह बनाये रखेंगी, साधुवाद ! 

हाय रे मातृत्व - हाय रे "माँ की आँख "!!!!! तुम्हे कोटि कोटि प्रणाम. 

कमल , 
१० /फरवरी / २०१२ 

Thursday, February 2, 2012

दिल के मतदान का घमसान


दिल के मतदान की तिथि १४ फरवरी नजदीक है, सभी मेल /फिमेल  उम्मीदवार हफ्तों पहले से चाक चौबंद है,  युध्ध स्तर पर तैयारी पे लगे हैं, कोई इन्टरनेट से प्रचार कर रहा है, ढूंढ रहा है, छांट रहा है, मुह मार रहा है,  कोई मिस्ड काल से कैंडिडेट चुन रहा है, और जिनका क्षेत्र और सीट निर्धारण हो चूका है और जीतना भी लगभग तयवो आने वाले दिनों में घोटाला कब कैसे और कहाँ कैसे करे की योजना बना रहें है. , कुछ उम्मीदवार जो पहले किसी सीट से जीते थे वो इस साल निर्वाचन क्षेत्र बदलने की सोच रहें हैं, नयी सीट के जुगाड़ में है.


दिल और “शरीर” का "रवा" होना शुरू हो गया ताकि किसी भी स्तिथि से निपटा जा सके, पाँव को मजबूत बनाया जा रहा ताकि किसी शक्ति कपूर या अमरीश पूरी के पकड़ में आ जाएँ तो भागने में सुभीता हो.  कुछ उम्मीदवार  जिनकी उम्मीदवारी शादी होने के कारन निरस्त कर दी गयी है वो अपना सर धुन रहे हैं, बजरंग दल में शामिल होने की योजना बना रहें है.

इस दौरान बजरंग दल के साथ साथ कुछ माता पिता या भाई जैसे चुनाव विरोधी संगठन भी सक्रीय हो सकते है इसको ध्यान में रखते हुए सारे उम्मीदवार ख़ास किस्म की सतर्कता बनाये हुए हैं. जिन सीटो पे कई उम्मीदवार हैउम्मीदवारों ने ख़ास किस के अलग अलग लुभावने प्रस्तावों  से आकृष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है.


उम्मीदवार बड़े मेहनत से दिन रात जुटे हुए हैं, न भूख की चिंता, न प्यास की, कुछ उम्मीदवार तो अपने निर्वाचन  क्षेत्रो के दस दस चक्कर लगा रहे हैं, और दिल से मन ही मन या नजरो से अपनी उम्मीदवारी मजबूत कर रहे है, कुछ मोटर सायकिल से करतब दिखा रहे हैं, कुछ नए नए गाने याद और उसका रिहाल्सल कर रहे,  फिर भी अपनी बात पार्टी तक नहीं पंहुचा पा रहें हैं, कुछ तेज तर्रार शातिर उम्मीदवार बड़े आसानी से प्रचार प्रसार पा  रहें हैं, कुछ तो कई सींटों क्षेत्रो से चुनाव लड़ने की तयारी में है, शायद कोई न कोई सीट निकल जाए और सीट के हिसाब से समय सारिणी तय कर रहें हैं.

इन उम्मीदवारों के समर्थक और मित्र भी जम के साथ दे रहें हैं और बदले में रोज शाम मुर्ग और दारू का भक्षण किया जा रहा है, महिला समर्थको को हफ्ते भर का जीमना भी संज्ञान में आया है.

कुछ उम्मेदवार ऐसे भी है जिनको संसदीय क्षेत्र और सीट दोनों का निर्धारण करना बाकी है, वो असमंजस में है की कौन सा क्षेत्र बेहतर है. कुछ उम्मीदवार ऐसे भी है जिनको पिछले चुनाव में लात घुसे भी पड़े थे, वो सन्यास लेने का मन बना दूसरों का खोड़ करने के चक्कर में है. कुछ जिनका सीट ने खुद टिकट कट दिया  या गद्दारी हुई, जिनका दिल टुटा हुआ है, वो इस चुनाव को ही सिरे से ख़ारिज करते हुए सीट और संसदीय क्षेत्र के बारे में नए उम्मीदवारों को बताने की सोच रहें हैं. उनका कहना है इस तरह की  चुनावी घपले बाजी ठीक नहीं, प्यार वाली राजनीति  बस शारीरिक सत्ता के लिए होती है,  आदि आदि .

इसी कड़ी में कुछ नए उम्मीदवार अपनी जित पक्की करने के उद्देश्य से पुराने उम्मीदवारों से सलाह मशवरा कर रहें हैं, पेचिदिगीया समझ रहे हैं और उनको दूर करने का उपाय भी बताया जा रहा है,कुछ भ्रष्ट उम्मीदवार जिनके घोटाले भूत में सामने आ चुके हैं, माँ बाप आयोग ने संज्ञान में लेते हुए उम्मीदवारी निरस्त कर दी है और मतदान के दिन  घर में नजर बंद रखा जाना तय है. कुछ उम्मीदवार जिनकी सीट भूत में किसी दुसरे उम्मेदवार ने छीन ली थी, इस बार वापस लाने को प्रतिबध्ध है.


अब देखा जाना है की १४  फरवरी को जीत का सेहरा कितनो सर पे बधना है, और कितने अपना सा मुह ले के कहीं मुह मारने लायक नहीं रह जायेंगे. जो चुनाव जीत जाएँ उनको शुभकामना, और जिनकी डेट एक्स्प्यार हो चुकी है, वो हनुमान भक्त हो ब्रह्मचर्य का पालन करें. 

तब तक के लिए नमस्कार .

कमल

०२/०२/२०१२