नारद: रामलीला और राजलीला

Wednesday, October 17, 2012

रामलीला और राजलीला


रामलीला आ रही है, सभी पूर्व पात्र अपने अपने रंग ढंग में  आने लगे है,  जो पिछले साल का राम था वह कही भगा हुआ है, उसकी जगह किसी नए अपरिपक्व लौंडे ने लिया है और पुराने वाले की तरह का अभिनय करने की कोशिश कर रहा है, हालाकि दोनों ही अभिनयी है लेकिन एक अनुभवी दूसरा "अनु -भवी" . पिछले साल दोनों ने साथ में राम लीला किया था, अबकी मेहनताना में गड़बड़ी हो गयी सो अनुभवी अभिनयी भाग लिया, या यों कहिये नए अभिनवी ने जादा मेह्नाताना के चक्कर में अनुभवी अभिनयी को भगा दिया और खुद नए परोगो से अनुभव जूटा मंझा हुआ अभिनयी बनने की कोशिश कर रहा है , धाय्न रहे सिर्फ अभिनय के लिए. 

खैर, लीला तो  सिर्फ लीला है, और ये होना भी चाहिए, इससे समाज में सन्देश जाए या ना जाये, लेकिन मनोरंजन जरुर होता है. और रामलीला यदि मिडिया प्रायोजित हो तो कसम से मजा दोगुना. इस तरह के रामलीला से किसी को कुछ मिले या न मिले लेकिन मिडिया को टी आर पि जरुर मिलता है और मिडिया को इससे जादा चाहिए भी क्या?? 

हे नकली राम ये कैसा बाण है तुम्हारा ?? छोड़ते हो लेकिन लगता किसी को नहीं ? निशाना गड़बड़ है या डाईरेकटर के हिसाब से हो ? भाई आपके अभिनय  का जो लोहा मानते है वो तो ये भी कहते है की तुम्हारा दिमाग ऐसा  है जिधर मुड़ेगा गोला दागेगा ?भाई गोला दागो, जनता को गोली मत दो, जनता वैसे भी हर प्रकार की गोली और गोले की अभ्यस्त है, जो सरकार समय समय पर दगती ही रहती है . भाई कैसा तोप है आपका ? कहीं लकड़ी का तो नहीं, जिसमे बारूद  की जगह "भूसा" भरा है ? 

आपके मानने वाले आपको सच  का राम समझाते है, खैर मनाने और मनाने का का क्या ?? मेरी दादी  जी आज भी अरुण गोविल  को राम  ही मानती है, किसी धारावाहिक में देखा तो बोल पड़ती है  देखो राम  जी, उनको अरुण गोविल और राम का भेद नहीं पता है. लेकिन इस प्रकार के भोले लोगो के भरोसे अपना अभिनय कब तक जारी रख पाओगे ?  क्योकि आजकल की दुनिया में भोले  लोग कम है और भालू लोग  जादा , भालू भी एइसे जो मधुमख्खी के छत्ते से भी मधु निकाल ले, बिना डरे. 

हे नकली राम, आप तो पहले एसे राम हो जिसका "हनुमान" पहले ही भाग खड़ा हुआ है, या यों कहिये के राजनीति के रामायण के चक्कर में आपने पहले ही भगा रखा है, बिना हनुमान के आप सुंदरी सत्ता , माफ़ करीए सीता तक कैसे पहुचोगे ?? असली राम ने बहुत पापड़ बेले थे , समुद्र बाँध लिया था..भोली जनता के राम बन  ये क्या कर रहे  हो आप ?  मजा तो तब है जब भोली के साथ भालू जनता भी आपके साथ हो, क्या आप भूल गए, सीता के पास पहुचने का मार्ग प्रशस्त करने वाला एक भालू ही था. लेकिन आप है, की भालू को भोला समझाने की भूल कर रहे हैं, और भालू का शहद अकेले डकारने के चक्कर में है. भाई आपसे आग्रह है असली वाला राम ही बनो, न की असली का खोल पहन नकली राम, क्योकि खोल पहनने का काम भेडिये का होता है. आपकी अन्युयाई भोली जनता आपको सचमुच का "राम" समझने लगी है, बहुत ही भ्रम में है है, कृपया इस भ्रम को तोडिये नहीं बिचारे किसी काम के नहीं रह जायेंगे. सूना था आज आपने कोई बड़ा तीर छोड़ने का कहा था, इतना सुनते ही भोली जनता अपना बुध्धि विवेक खो, आपके समर्थन " गोला , तोप , बन्दुक , या, वा" तमाम प्रकार के लेख भी डाले, लेकिन अफ़सोस एसा कुछ नहीं हुआ उनका लिखा बेकार चला गया, आपने बता दिया की आपके लिखने वाले समर्थक ब्रम्हा नहीं, और आपके  लोटे में पेंदा नहीं. आपने उनकी नाक कटा दी , दिल तोड़ दिया, बिचारो को "डी-मोर्लाईज्ड" कर दिया, आपने जिस कब्जे की बात को ले के गडकरी का नाम उछाला , उसी जमीन को आज सुबह सुबह एक किसान पाना बता रहा है और कहता अहि अभी भी हमारे पास है. 

अभी तक आपने जितने भी गोले छोड़े है सब फुस्सी, जितने तीर छोड़े सब रास्ते  ही काट दिए गए, ये असली वाले राम के लक्षण तो नहीं, कृपया अपना असली रूप जल्दी सामने लाये, भोली -भालू जनता को बेवकूफ न बनाये, क्योकि खोल का रंग भी एक समय पे आके उतरने लगता है, तब आपकी पहचान अपने आप होती जाएगी, और समय आपके लिए बड़ा दुखदायी होगा, क्योकि तब न माया मिलेगी न सत्ता, माफ़ करीए सीता. 

आपका एक दर्शक 

कमल कुमार सिंह 


2 comments:

रविकर said...

गए खोजने गडरिया, बहेलिया मिल जाए |
उग्र केजरी लोमड़ी, तीरों से हिल जाए |

तीरों से हिल जाए , फुलझड़ी निकला गोला |
फुस फुस दे करवाए, व्यर्थ ही हल्ला बोला |

सदाचार केजरी, अल्पमत सच्चे वोटर |
बनवाएं सरकार, बटेरें तीतर मिलकर ।।

lymacsau said...

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